छिलकों की छाबड़ी : रीढ़, पायदान व पदोन्नति

हो सकता है कि आप मुझसे पूछें कि रीढ़, पायदान और पदोन्नति का आपस में क्या सम्बन्ध है। तो साधो! सदी के लिजलिजे महानट के पिता डॉ. हरिवंश राय बच्चन ने अपनी कविता ‘मैं हूँ उनके साथ, खड़ी जो सीधी रखते अपनी रीढ़’ में रीढ़ सीधी रखने वालों की विशेषताओं का वर्णन किया है। लेकिन यह निर्विवाद सत्य है कि अगर रीढ़ की सिधाई पर कोई प्रश्नचिन्ह न होता तो डॉ. हरिवंश कभी यह कविता नहीं लिख पाते। हर युग में रीढ़ और पायदान भले एक-दूसरे के विलोम नजऱ आते रहे हों, पर सरकार में पदोन्नति लेने के लिए दोनों का सहोदर होना पहली शर्त है। अगर आप रीढ़विहीन हैं और हर सरकार में फुटमैट (पायदान) होने की शर्त को पूरा करते हैं तो सेवानिवृत्ति से कुछ दिन पहले भी रीढ़ दिव्यांगता की श्रेणी में विभाग के सर्वोच्च पद पर पदोन्नति पा सकते हैं। प्रकृति ने भी इसमें कोई लिंग भेद नहीं किया है। नर हो या नारी कोई फर्क नहीं पड़ता। बस आपको निर्लिप्त भाव से नेताओं और सीनियर्स के सामने बतौर पायदान बिछना होगा। कोई योग्यता न होने के बावजूद किसी विभाग का मुखिया होने के एवज़ में सौदा बुरा नहीं। सावरकर भी 15 बार माफी माँगने के बाद अंग्रेज़ों से साठ रूपल्ली की मासिक पैंशन पाने के हक़दार हुए थे। आज़ादी के अमृतकाल में यही सावरकर न केवल वीर हो गए हैं, बल्कि प्रासंगिक भी हो चुके हैं। पिछले हफ़्ते झुन्नू लाल मुझे राजधानी के सचिवालय की सीढिय़ों पर उदास मिले। मैंने उदासी का कारण पूछा तो बोले कि मैं बाबू से अपनी उस पदोन्नति के बारे में पूछने आया था जो पिछले महीने से ड्यू है। लेकिन उसने कहा कि पहले तुम्हारे उस सीनियर की प्रमोशन होगी जिसे डायरेक्टर बनाया जा रहा है। मैंने कहा कि कम से कम यह तो बता दें कि मेरे सारे पेपर्स आपके पास पहुँच गए हैं। इस पर बाबू बोला कि बाद में आना, अभी तो सरकार रिटायरमेंट से पहले मैडम को डायरेक्टर बनाने पर तुली है।

मैंने पूछा कि बनाने पर तुली है, इसका मतलब? बाबू बोला कि उसकी लियाक़त यही है कि उसने सारी उम्र राजधानी में काटी है। कभी फील्ड में नहीं रही। हर बार समय से पहले प्रमोशन लेना उसकी उपलब्धि है। झुन्नू लाल ने पूछा कि फिर मेरे साथ यह अन्याय क्यों? इस पर बाबू हँसते हुए बोला कि इसमें न्याय-अन्याय का प्रश्न ही कहाँ उठता है। बात तो तुम्हारी रीढ़ की है। क्या तुम आगे-पीछे एक सौ अस्सी डिग्री पर झूल सकते हो या तीन सौ साठ डिग्री दाएं-बाएं घूम सकते हो? अगर नहीं तो तुम्हारी प्रमोशन जब होगी, तब होगी। झुन्नू बोले कि मैं तीन सौ मील से आपके पास आया हूँ। दुबारा आना संभव न होगा। कम से कम इतना तो बता दें। बाबू गुस्से होते बोला, ‘अभी मेरे पास समय नहीं। मैडम की प्रमोशन आज ही होगी। मुझे उनका केस तैयार करने दो।’ झुन्नू लाल सहमते हुए बोले, ‘मुझे भी यह तरीक़ा बता दें ताकि मैं भी देर से सही, प्रमोशन ले सकूं।’ बाबू हँसते हुए बोला, ‘अगर तुम में यह क़ाबिलियत होती तो क्यों सुदूर कबायली इलाक़े में अपनी ऐडियाँ रगड़ रहे होते। महकमे में इतने साल हो गए। कम से कम उनसे ही सीख लिया होता। उनकी नियुक्ति निक्कर वाली सरकार में हुई थी। लेकिन सरकार चाहे टोपी वाली हो या निक्कर वाली। हर सरकार में समय से पहले प्रमोशन होती रही। उनके बॉयोडाटा में हर बार समय से पूर्व प्रमोशन लेना ही उनकी एकमात्र योग्यता और उपलब्धि है। अगर इससे भी मन न भरे तो राज्य के मुख्य सचिव को देख लो। भारत सरकार के सचिवों के पैनल में न होने के बावजूद वह राज्य के मुख्य सचिव हैं। राजधानी आए ही हो तो उन सभी पदों पर नजऱ मार लो, जहाँ ऐसे योग्य व्यक्ति राज्य की तरक्की के लिए दिन-रात मेहनत कर रहे हैं। अगर मैंने तुम्हें कुछ ऊँच-नीच बोला हो तो मुझे क्षमा करना। पर अगर यही योग्यता मुझमें होती तो मैं आज सैक्शन ऑफिसर होने की बजाय ज्वाइंट सेक्रेटरी होता।’

पीए सिद्धार्थ

स्वतंत्र लेखक