प्रदेश में घटते जल स्तर की समस्या एवं समाधान

पंचायत स्तर पर पंचायत प्रधान एवं पंचों को परंपरागत वाटर रिसोर्सेज के उचित रखरखाव के लिए जनभागीदारी से जल संरक्षण के लिए बेहतर प्रयास करने चाहिए। नौजवानों को आगे आकर जल संरक्षण के लिए सकारात्मक प्रयास करने चाहिएं…

जल को जीवन का अमृत कहा गया है। पानी मनुष्य की प्रमुख जरूरतों में से एक है। आदमी भोजन के बिना तो शायद कुछ दिन जीवित रह भी सकता है, लेकिन पानी के बिना नहीं रह सकता। इसके बावजूद कुछ वर्षों में मानवीय भूल और प्रकृति से छेड़छाड़ के कारण जल का स्तर भारत में दिन प्रतिदिन कम होता जा रहा है। फाल्कनमार्क जल सूचकांक, जोकि दुनिया भर में पानी की कमी को मापने के लिए प्रयोग किया जाता है, के अनुसार भारत में करीब 76 प्रतिशत लोग पानी की कमी से जूझ रहे हैं। जल मनुष्य को प्रकृति के द्वारा दिया गया एक बहुमूल्य उपहार है। पृथ्वी एक जलीय स्थान है। पृथ्वी की सतह का लगभग 71 प्रतिशत भाग पानी से ढका हुआ है, और महासागरों में पृथ्वी का लगभग 96.5 प्रतिशत पानी मौजूद है। पृथ्वी का केवल 3 फीसदी पानी ही ताजा पानी है। इस ताजे पानी का एक फीसदी पीने के लिए उपयुक्त है, बाकी जमीन, ग्लेशियरों और बर्फ की चोटियों में पाया जाता है। इस हिसाब से अगर हम देखें तो पाएंगे कि इस धरती पर पीने योग्य पानी बहुत ही कम है, और हमें पानी के स्त्रोतों का प्रयोग समझदारी से करना होगा। वर्तमान में लगभग 72 प्रतिशत जल स्त्रोतों के सूख जाने से एक विकट स्थिति उत्पन्न हुई है। जल तृतीय विश्व युद्ध का मुख्य कारण हो सकता है।

पानी को लेकर युद्ध हमारी दुनिया के लिए कोई नई बात नहीं है, जिसमें 2500 ईसा पूर्व मेसोपोटामिया, 720 ईसा पूर्व में असीरिया, 101 ईसा पूर्व में चीन और 48 ईसा पूर्व मिस्र में आग भडक़ उठी थी। तमिलनाडु और कर्नाटक, जो भारत के दो राज्य हैं, के बीच कावेरी नदी के जल का विवाद कई दशकों से चल रहा है। भारत के और भी कई राज्यों में पानी के लिए डिस्प्यूट की खबरें आती रहती हैं। कहने का अभिप्राय मात्र इतना है कि हमें इतिहास से सबक लेकर पानी को बचाने और गिरते हुए जल स्तर को बेहतर बनाने के लिए अभी से प्रयास करने होंगे। अगर हम बात करें हिमाचल प्रदेश की तो प्रदेश कुछ समय से सूखे की मार झेल रहा है। राज्य के लोग फरवरी की शुरुआत तक बारिश और बर्फबारी के लिए तरसते रहे। राज्य की कई जलविद्युत परियोजनाओं में बिजली का उत्पादन 90 प्रतिशत तक कम हुआ है, जिससे प्रदेश में पानी के साथ-साथ बिजली का संकट भी पैदा हो गया है। वर्तमान हालत को देखते हुए गर्मियों में जल संकट की भारी कमी प्रतीत होती दिख रही है। एक समय था जब हिमाचल को बारहमासी बहने वाले झरनों, झीलों और बांवडिय़ों का घर माना जाता था, लेकिन वर्तमान में जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पानी के परम्परागत सोर्सेज या तो पूरी तरह सूख गए हैं या फिर मौसमी हो गए हैं। वर्ष 2018 में प्रदेश की राजधानी शिमला में जिस तरह के हालात पैदा हुए, उसकी वैश्विक स्तर पर चर्चा हुई। सरकारें दावा करती हैं कि प्रदेश के हर घर में नल से जल पहुंच रहा है, लेकिन हकीकत में अभी भी प्रदेश के कुछ हिस्सों में लोगों को कई किलोमीटर का सफर करके पानी का इंतजाम करना पड़ता है।

लोगों की इस परेशानी को दूर करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने कुछ गंभीर प्रयास किए। वर्ष 1977 में पहली बार मुख्यमंत्री बनने पर पेयजल समस्या का समाधान ही उनकी प्राथमिकता थी। शांता कुमार ने अपने मुख्यमंत्री काल के प्रथम एक साल में प्रदेश भर में पेयजल योजनाएं लागू करके पानी की कमी को दूर करने का एक बहुत ही सफल प्रयास किया। जब 1990 में शांता कुमार दोबारा मुख्यमंत्री बने तो पूरे प्रदेश में जरूरत के अनुसार हैंडपंप लगा कर लोगों की पानी की कमी को दूर करने का प्रयास किया गया। इसी से प्रेरणा लेकर धूमल सरकार में जब मैं आईपीएच मिनिस्टर बना तो मेरे कार्यकाल में पूरे हिमाचल में कई जल परियोजनाएं शुरू की गर्इं। सबसे महत्वपूर्ण करप्शन और टेंडर सिस्टम में भाई भतीजावाद पर कड़ा प्रहार किया गया, जोकि वर्तमान सरकार में फिर से हावी होता दिख रहा है। केंद्र में मोदी सरकार जल संरक्षण के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठा रही है। अटल भूजल योजना, केच दि रेन इत्यादि कुछ प्रमुख योजनाएं हैं जो जल संरक्षण के लिए बनाई गई हैं। जल जीवन मिशन के अंतर्गत हिमाचल को 6000 करोड़ का प्रावधान किया गया।

हिमाचल में इसके अंतर्गत करोड़ों की स्कीम्स लगाई गईं। मेरे कार्यकाल में ज्वालामुखी विधानसभा क्षेत्र में करीब 150 करोड़ जल संरक्षण पर खर्च किए गए। प्रदेश सरकार पानी का प्रबंधन विभिन विभागों में बेहतर समन्वय बना कर अच्छे से कर सकती है। लोगों को वृक्षारोपण के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। जंगलों के अंधाधुंध कटान पर रोक लगा कर वन माफिया पर नकेल कसनी चाहिए। सरकार को चैक डैम तथा पाइपों में जल रिसाव की समस्या को भी दुरुस्त करने का प्रयास करना चाहिए। कूहलों के पानी का भी सिंचाई में बेहतर प्रयोग हो, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए। हिमाचल के मैदानी इलाकों में चैक डैम लगा कर पानी को अपलिफ्ट करके सिंचाई में प्रयोग किया जा सकता है। इन डैमों में मछली पालन को प्रोत्साहन देकर युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान किए जा सकते हैं।

इसके लिए सरकार को बजट में प्रावधान करना चाहिए ताकि कृषि को सुदृढ़ करके लोगों की जनभागीदारी से उनकी आर्थिकी को सुधारा जा सके। इसके अलावा कई बार यह भी देखने में आता है कि लोग गांवों में रैन वाटर हार्वेस्टिंग के नाम पर सब्सिडी से पानी के लिए टैंक का निर्माण करके कुछ समय के बाद लोग उसको सेप्टिक टैंक के रूप में प्रयोग करने लग जाते हैं, ऐसे लोगों पर विभाग को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। गांव और शहर में कुछ रसूखदार लोग पीने के पानी को टुल्लू पंप लगा कर सिंचाई के लिए प्रयोग करते हैं, ऐसे लोगों के नल कनेक्शन काट कर कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। इसके अलावा सरकार को विभिन्न संचार माध्यमों से लोगों को पानी के संरक्षण के लिए जागरूक करना चाहिए। पंचायत स्तर पर पंचायत प्रधान एवं पंचों को परंपरागत वाटर रिसोर्सेज के उचित रखरखाव के लिए जनभागीदारी से जल संरक्षण के लिए बेहतर प्रयास करने चाहिए। नौजवानों को आगे आकर जल संरक्षण के लिए सकारात्मक प्रयास करने चाहिएं।

रमेश धवाला

पूर्व मंत्री