शिव का असल रूप

श्रीश्री रवि शंकर

शिव के हाथों में त्रिशूल, तीनों गुणों सत्व, रजस और तमस का प्रतिनिधित्व करता है। शिव तत्त्व इन तीनों गुणों से परे है। डमरू ‘नाद’ का प्रतिनिधित्व करता है। इस प्रकार ढोल की ध्वनि आकाश तत्त्व का प्रतीक है। सिर से बहती हुई गंगा, मानव चेतना में संचित विविध ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती है…

शिव या महादेव सनातन संस्कृति में सबसे महत्त्वपूर्ण देवताओं में से एक है। इन्हें देवों के देव महादेव भी कहते हैं। भगवान शिव एक ऐसा विषय है जिसे जितना जानें कम है क्योंकि महादेव को जानना या समझना एक आम इनसान के बस की बात नहीं उसे जानने के लिए हमें अपनी बुद्धि के स्तर को बढ़ाना होगा इसलिए सबसे पहले हमें शिव को जानना होगा। शिव कोई व्यक्ति नहीं है, शिव एक तत्त्व है। वह तत्त्व जिससे सब कुछ चल रहा है। शिव तत्त्व इस ब्रह्मांड का सार है। जिस प्रकार पृथ्वी, अग्नि, जल और वायु सभी तत्त्व आकाश तत्त्व में विद्यमान होते हैं, ठीक उसी प्रकार शिव तत्त्व संपूर्ण ब्रह्मांड का सार है। इसीलिए शिव को नीले रंग में दर्शाया गया है, जो अनुभव की गहराई को दर्शाता है, जिसे एक अबोध बालक भी समझ सकता है। शिव का कोई रूप नहीं है, इसीलिए हर जगह शिव की ‘मूर्ति’ की पूजा नहीं की जाती, इसके बजाय ‘शिवलिंग’ की पूजा की जाती है। शिव को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में न सोचें जो 15,000 वर्ष पहले कहीं बैठे ध्यान में लीन थे। शिव तत्त्व का दिव्य सार मानवीय समझ से परे है और इसीलिए इसे एक अमूर्त रूप दिया गया है। शिवलिंग की पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि यह शिव के निराकार स्वरूप का प्रतिनिधित्व करता है। जहां वाणी और मन प्रवेश नहीं कर पाता, वही तत्त्व शिव तत्त्व है। ध्यान करने से शिव तत्त्व की अनुभूति होती है। शिव और प्रकृति का क्या संबंध है? कहते हैं शिव का विवाह शक्ति अर्थात प्रकृति से हुआ है माने यह समस्त प्रकृति शिवतत्त्व में ही है।

शिवतत्त्व को पहचानने से प्रकृति के अन्य तत्त्वों को समझा जा सकता है। प्रकृति में कुल 36 तत्त्व बताए जाते हैं, जिसमें पहला तत्त्व है पृथ्वी और 36वां तत्त्व है शिव तत्त्व। शिव तत्त्व ब्रह्मांड की हर वस्तु में व्याप्त है। शिव के प्रतीकों का गूढ़ अर्थ क्या है? स्वयं को समझना शिव तत्त्व को जानने के समान है। शिव के मस्तक पर अर्धचंद्र, हमारे मन के एक अंश का प्रतिनिधित्व करता है, जिसके भीतर ज्ञान की संभावना होती है। शिव के गले में सर्प, सतर्कता और जागरूकता का प्रतीक है। आप या तो जाग्रत अवस्था में होते हैं या गहरी नींद में। जागृत, निद्रा और स्वप्नावस्था के मध्य चेतना की चौथी अवस्था, तुरीय अवस्था कहलाती है। वही शिव तत्त्व है। यह आत्म सजगता की स्थिति है। शिव के गले में पड़ा हुआ सर्प सोता हुआ प्रतीत होने पर भी भीतर से सजग और जागृत रहने का प्रतीक है। यह एक सतत प्रयास है। समझने से, ध्यान में रखने से, जागरूकता बनाए रखने से इस अवस्था की थोड़ी सी झलक मिलती है। इसके अंशमात्र को जान लेने से आत्मबोध हो जाता है। शिव के हाथों में त्रिशूल, तीनों गुणों सत्व, रजस और तमस का प्रतिनिधित्व करता है। शिव तत्त्व इन तीनों गुणों से परे है। डमरू ‘नाद’ का प्रतिनिधित्व करता है। इस प्रकार ढोल की ध्वनि आकाश तत्त्व का प्रतीक है। सिर से बहती हुई गंगा, मानव चेतना में संचित विविध ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती है।