कांग्रेस के छह विधायकों की बलि

यह युद्ध नायक व खलनायक के बीच था और अंतत: हिमाचल विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप पठानिया के फैसले से साबित हो गया कि ऊंट किस करवट बैठा है। दुष्चक्र अब वक्त के चक्र में नए फौलाद के पिघलने का इंतजार करेगा, तो यह युद्ध अब सीधे से संवाद करेगा। राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को लगी चपत अब नए समीकरणों में जब्त हो गई। कांग्रेस ने सत्ता की दीवार और मोटी कर ली या घर के भीतर से कुछ लोग कान से पकड़ कर बाहर कर दिए। कल तक जो घटनाक्रम कांग्रेस आलाकमान को भयभीत कर रहा था, वह आज अपना रक्षा कवच सुदृढ़ करने में जुटा है। दलबदल कानून के तहत कांग्रेस के छह बागी विधायक अयोग्य करार घोषित हो गए। यानी अब सदन के सामने कांग्रेस के 34 तो सत्ता के सामने विपक्षी भाजपा के 25 सदस्य ही रहे, लेकिन तीन निर्दलीय अपनी आस्था जोडक़र इस घर में भविष्य का आक्रोश या सियासी खोट भर सकते हैं। कहानी जो अतीत में थी, वह अब नए चौराहे पर लिखी जा सकती है। इस सफर में कांग्रेस का राष्ट्रीय इम्तिहान जरूर सफल रहा। विधानसभा अध्यक्ष का इंतजाम सफल रहा। मुख्यमंत्री सुखविंदर सुक्खू का इंतखाब सुरक्षित रहा, लेकिन राज्यसभा सीट जीतकर भी भाजपा अपनी उम्मीद के अनुसार कहीं खरी नहीं उतरी। दूध से जली कांग्रेस ने भले ही छाछ को फूंक फूंक कर नहीं पिया, लेकिन सरकार का अभिमान टूटने से बचा लिया।

यह अगर मिशन था, तो कांग्रेस अपने बचाव में इससे बेहतर नहीं कर सकती थी, लेकिन भाजपा या बागियों के लिए यह सफर नई खटास भर गया। अब सवाल अगली चाल का है, तो भाजपा के शिकार का भी है। भाजपा ने जल्दी की या बागी जल्दबाजी में थे, लेकिन यहां किसी सिंधिया की तलाश पूरी नहीं हो सकी, लेकिन प्रश्र अभी जिंदा हैं-मरे नहीं। धड़ेबंदी जिंदा है-मरी नहीं। क्षेत्रीय जज्बात जिंदा हैं-मरे नहीं। जीते हुए विधायकों की करामात जिंदा है-मरी नहीं। विक्रमादित्य सिंह का इस्तीफा जिंदा है-मरा नहीं। बगावत के सुर भले ही छह विधायकों की बलि ले गए, लेकिन ये तोपें अभी मरी नहीं। कहना न होगा कांग्रेस ने एक सरकार, एक मुख्यमंत्री का किरदार और एक राज्य फिलहाल बचा लिया ताकि लोकसभा चुनाव तक सारे चरित्र पहलवान बनें, लेकिन क्या अपने ही विधायकों को घर भेज कर कांग्रेस मजबूत हो गई। क्या कांग्रेस के मोहल्ले, कांग्रेस के चूल्हे आइंदा साझेदारी में मेहनत करेंगे। इस परीक्षा के बाद जाहिर तौर पर कई और परीक्षाएं होंगी, घर के झगड़े बेजुबान नहीं होंगे। कांग्रेस ने सख्त फैसले की कसौटी में सारे तीर भले ही इन विधायकों पर उतार दिए, लेकिन शिकायतें जिन कानों को खबर दे गई, क्या वे भी मर जाएंगी। सत्ता का विपक्ष से मुकाबला बढ़ेगा जरूर और अब कांग्रेस के बीच कुछ तो और कांग्रेस होगी। हिमाचल में पहले ही वीरभद्र के नाम पर एक कांग्रेस परेशान थी, तो एक कांग्रेस सत्ता के नाम पर सुक्खू पर परवान थी।

ऐसे में आलाकमान ने राष्ट्रीय कांग्रेस का सुक्खू कांग्रेस से मिलान करके यह ऐलान तो कर दी दिया कि इसके खिलाफ कोई बोला तो हश्र कैसा होगा। कांग्रेस की मचान पर हलाल हुए छह विधायक फिलहाल नुकसान में हैं और उन्हें फिर से जनता की अदालत या न्यायालय के सामने खुद को निर्दोष, खुद को सही और खुद को ऊर्जावान साबित करना है, जबकि इससे पार्टी को क्या लाभ हुआ यह भविष्य के गर्त में है। जाहिर तौर पर आलाकमान की आंखों में तारा साबित हुए सुक्खू के वर्चस्व को सलाम करना होगा। एक ताकतवर मुख्यमंत्री ही अपने विधायकों को घर बैठा सकता है। आइंदा कांग्रेस के भीतर असंतोष नहीं होगा या बाकी बचे विधायक अब सफेद भेड़ें हो जाएंगे, यह आलाकमान की गिनती और पर्यवेक्षक भेजने का प्रतिफल है। देखना यह है कि अयोग्य करार हुए विधायक अदालत के दरवाजे पर क्या कहते हैं तथा न्याय की दृष्टि में वे कितने पाक होकर निकलते हैं। फिलहाल कांग्रेस ने यह जेहमत उठाई कि अपनी ही पार्टी के विधायकों पर कड़ी कार्रवाई करके, भाजपा के पाले में गुजर बसर की सोचने वाले निहत्थे कर दिए। कांग्रेस ने जो करना था, वह तयशुदा ढंग से हो गया, अब आगे की कडिय़ों में कितने चुनाव, कितने चौराहे और कितने विद्रोह खड़े हैं, वक्त ही बताएगा।