घोटाला, घोटाला, घोटाला

हमारा देश घोटाला प्रधान है। घोटालों में हमारा मुकाबला नहीं है। ओलंपिक्स में यदि घोटाला प्रतियोगिता हो तो नि:संदेह हम हर हालत में स्वर्ण पदक प्राप्त करके रहें। एक घोटाले की जांच प्रारम्भ भी नहीं हो पाती कि दूसरा खुल पड़ता है। मेरे एक मित्र हैं। घोटालों के अनुभव सिद्ध पुरुष हैं। तीन बार गबन-घोटाले के चक्कर में निलंबित हो चुके हैं। लेकिन हर बार न्यायालय उन्हें बेदाग साबित करके पुन: सेवा में बहाल कर देता है और वे फिर घोटाला प्रक्रिया में लिप्त हो जाते हैं। एक दिन आए तो मैंने कहा-‘मित्रवर, घोटालों के कीर्तिमान तोड़े जा रहे हैं और आप हैं कि दम साधे पड़े हैं।’ ‘शर्मा क्या बताऊं यार, घोटाला तो कर चुका लेकिन अभी तक पकड़ा नहीं जा सका है।’ ‘तो क्या मैं आशा करूं कि यह घोटाला नए आयाम छू लेगा?’ मैंने पूछा। वे बोले-‘कह नहीं सकता, मैं जहां काम करता हूं, वहां का कुल बजट ही जब लाखों में है तो करोड़ों का घपला कैसे हो सकता है?’ ‘यह तो तुम जानो, लेकिन गुरू करो कुछ ऐसा कि एकदम ओरिजनल हो।’ मैं बोला। ‘भाई जैसी भी सेवा बन पड़ रही है, कर रहे हैं। जान जोखिम में डालकर भी हम लोग इतने बड़े रिस्क ले रहे हैं। क्या तुम घपला कर सकते हैं?’ उन्होंने पूछा। मैंने कहा-‘अजी मेरी क्या बिसात। मैं तो करते आप हो लेकिन डर मुझे लगता है।

कई बार तो लगता है कि कहीं तुम्हारा दोस्त हूं, कोई आंच की चिंगारी मुझ पर न लग जाए।’ ‘ऐसा बेवकूफ तो मैं भी नहीं हूं भाई। कीर्तिमान मुझे कायम करने हैं और गिनीज बुक में नाम तुम दर्ज कराओ।’ वे बोले। मैंने कहा-‘तो क्या गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकाड्र्स में नाम दर्ज कराने के लिए ही करते हो घोटाले?’ ‘देखो कोई न कोई लक्ष्य तो सामने रखना ही पड़ता है। बिना आदर्श योजना के काम करना मैं उचित नहीं मानता। घोटाले का भी अपना शास्त्र है तथा वह यह तो नहीं कहता कि घोटालों का कोई औचित्य नहीं है।’ ‘क्या खूब कही है आपने तो भाई। अब जरा यह भी तो बताओ जो तुम्हारे बड़े भाई अरेस्ट हो गए हैं शेयर घोटालों में, उनका भविष्य क्या है?’ ‘उनका भविष्य उज्ज्वल है। घोटालों पर पर्दा डालने में हमारा सरकारी तंत्र प्रवीण है। वह नहीं चाहता कि अरबों रुपए के घोटाले भी सामने आए, फिर आजकल तो बड़े-बड़े स्कैण्डल्स से जुडऩे का क्रेज भी है। मंत्रीगण वगैरह हर काण्ड में जुड़े मिलते हैं। सत्तारूढ़ लोगों की तो विशेषता ही यही है कि वे कुछ न कुछ करते ही रहते हैं।’ मित्र महाशय ने कहा। मैं बोला-‘लेकिन सरकार इन आर्थिक अपराधियों को शह क्यों देती है?’

‘शह, देकर मात देना शतरंज का खेल है। राजनीति शतरंज की चाल हो गई है, जिसमें हर मोहरा बड़ा सोच समझ कर रखना होता है। इससे होता यह है कि राजनीतिक दलों की पांचों अंगुलियां घी में तर रहती हैं और फिर अब तो चुनाव भी जल्दी-जल्दी कराने का फैशन सा हो गया है। चुनाव में पैसा पानी की तरह बहाना पड़ता है। उस समय चंदा मिलता ही घोटालों से है और चुनाव जीत लिया जाता है।’ उन्होंने कहा। मैंने कहा-‘लेकिन यह मूल्यहीनता है तथा सरासर दगा है।’ ‘मूल्यहीनता, जाओ पहले बाजार भाव मालूम करके आओ, कुछ क्रय शक्ति हो तो हमें भी बताओ। इतनी देर से गाल बजा रहे हो। हमें देखो जेबें नोटों से भरी रहती हैं तथा इसकी मार से जमाने को झुकाये चले जाते हैं। इसलिए यही तो घोटाला महात्म्य है।’ वे बोले। मैंने कहा-‘वाह भाई आपने तो आंख खोल दी, मैं भी इस दिशा में सोचने पर अपने आपको विवश सा महसूस कर रहा हूं।’ ‘बड़ी प्रसन्नता की बात है, चलो शुभ काम में देरी मत करो। करो, कोई घोटाला तुम भी कर डालो।’ बस उस दिन से मैं भी कर रहा हूं-घोटाला। लेकिन अब कोई मुझ पर कार्रवाई न करे तो मैं क्या करूं?

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक