भक्ति जीवन की मधुरता

सद्गुरु जग्गी वासुदेव

बुद्धि जीवन के टुकड़ों को जान सकती है, भक्ति जीवन की पूर्णता को जान सकती है। जीवन के अनुभव और संपूर्ण जीवन के बोध के संदर्भ में, एक भक्त जो जानता है, उसे एक बौद्धिक इंसान कभी नहीं छुएगा। लोग भक्ति को ऐसी चीज समझते हैं जिसे वे विकसित करते हैं। विकसित की हुई भक्ति भयंकर चीज है…

अगर आप जागरूक और सचेतन हैं कि आपसे कहीं अधिक विशाल कोई चीज अभी कार्य कर रही है, तो आप स्वाभाविक रूप से भक्त हैं। जब आप जागरूक हैं कि आपसे कहीं अधिक विशाल कोई चीज अभी आपके चारों ओर कार्य कर रही है, तो कोई दूसरा तरीका नहीं है, आप भक्त होंगे। अगर आप अपने जीवन अनुभव को देखते हैं तो आपको जब भी कोई खुशी होती है, इससे फर्क नहीं पड़ता कि उसका प्रेरणा स्रोत क्या था? हो सकता है कि आपने सूर्योदय देखा और आप खुशी से भर गए। हो सकता है कि आपने कोई संगीत सुना और आनंद विभोर हो गए।
हो सकता है कि आपको कोई सफलता मिली और आप खुश हो गए, वह हमेशा आपके भीतर से ही आई होती है। वह आप पर कहीं और से नहीं बरसी होती है। तो खुशी का स्रोत आपके भीतर ही है। आप अपने जीवन में जिस भी अनुभव से गुजरते हैं, वह आखिरकार आपका ही बनाया हुआ है। अगर आप इस बारे में सचेतन हो सकें कि यह आपका बनाया है। सिर्फ तभी आप होने का मधुरतम तरीका चुनेंगे। भक्ति अपनी भावनाओं को नकारात्मता से प्रसन्नता में रूपांतरित करने तरीका है।

भक्ति एक प्रेम प्रसंग का कई गुना बढ़ा हुआ रूप है। अगर आप किसी आदमी या औरत के प्रेम में पड़ जाते हैं और वे आपकी उम्मीद के मुताबिक नहीं चलते, तो वह रिश्ता अंतत: मुश्किल में पड़ जाता है। इसीलिए लोगों ने ईश्वर को चुना। यह बस एक सीधा प्रेम प्रसंग है और आप कोई उत्तर की अपेक्षा नहीं कर रहे हैं। आपका जीवन अत्यंत सुंदर हो जाता है क्योंकि आपकी भावना बहुत मधुर बन गई है। उस मधुरता के जरिए व्यक्ति विकास करता है। भक्ति होने का न सिर्फ मधुरतम तरीका है, बल्कि यह बुद्धिमत्ता का सर्वोच्च रूप भी है। आम तौर पर लोग बुद्धि की तुलना में भावना को हेय दृष्टि से देखते हैं। जो लोग सोचते हैं कि वे बुद्धिमान हैं, वे भक्ति के किसी भी रूप से हमेशा दूर रहने की कोशिश करते हैं।

लेकिन अब लोग भावनात्मक बुद्धिमत्ता की बात कर रहे हैं क्योंकि भावना में कई तरह से बुद्धि से अधिक तीव्र होने की काबिलीयत है। बुद्धि में एक खास ठंडापन और पैनापन होता है लेकिन भावना बस हर चीज को गले लगा सकती है। बुद्धि जीवन के टुकड़ों को जान सकती है, भक्ति जीवन की पूर्णता को जान सकती है। जीवन के अनुभव और संपूर्ण जीवन के बोध के संदर्भ में, एक भक्त जो जानता है, उसे एक बौद्धिक इंसान कभी नहीं छुएगा। लोग भक्ति को ऐसी चीज समझते हैं जिसे वे विकसित करते हैं। विकसित की हुई भक्ति भयंकर चीज है। आप भक्ति को विकसित नहीं कर सकते क्योंकि भक्ति और भ्रम के बीच की रेखा बहुत बारीक है।