ये काले काले नाग…

हो सकता है आपको इस व्यंग्य के शीर्षक पर ऐतराज़ हो। आप कहें कि शाहरुख़ ख़ान की फिल्म बाज़ीगर के एक गीत में काली-काली आँखों या आमिर ख़ान की फिल्म मन में काली नागिन जैसी ज़ुल्फों की बात की गई है। ऐसे में आप ये काले-काले नाग कहाँ से ले आए। पर ये काले नाग मैंने पैदा नहीं किए। इसके लिए हमें ह्माचल के मुख्यमंत्री महोदय का धन्यवादी होना पड़ेगा, जिन्होंने अपनी पार्टी के छह बाग़ी विधायकों को इस उपाधि से अलंकृत किया है। भला हो उनका, जिन्होंने इस घोर कलियुग में पहली बार अपने नाम के अनुरूप हमें सुख की अनुभूति से सराबोर किया है। वरना देश भर में फैली बेरोजग़ारी, महंगाई, लंगड़ी अर्थव्यवस्था, राष्ट्रवाद और ज़ात-धरम के खेल के इस दौर में ज़माने से अलग सोच रखने वाले मेरे जैसे चंद आदमियों के पास गोदी चिंतन के अलावा करने के लिए अब कुछ शेष नहीं। अब आप मुझसे पूछेंगे कि रवीश कुमार के गोदी मीडिया के बाद यह गोदी चिंतन कौनसी बला है। तो साधो! गोदी चिंतन अंधभक्ति से उपजा वह चिंतन है, जिसके चलते भारत अगले दो-चार सालों में विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है।

इसी अंधचिंतन के सहारे पिछले दस सालों से भारत में नोटबंदी लागू होने के बाद काले धन और आतंकवाद की समस्या दूर हो चुकी है, साँसों को छोडक़र शेष सभी चीज़ों पर जीएसटी लगाया जा चुका है, किसानों की आय दोगुनी हो गई है, सभी बेघरों को पक्के मकान मिल चुके हैं, पेट्रोल-डीज़ल पचास रुपए लीटर मिल रहे हैं और भारत सरकार द्वारा बाईस करोड़ लोगों को रोजग़ार दिए जाने के बाद वे जुमला-नवाज़ की तरह राष्ट्र निर्माण में अपनी सशक्त भूमिका निभा रहे हैं। यह गोदी चिंतन का ही कमाल है कि ह्माचल के मुख्यमंत्री ने अपने बाग़ी विधायकों को काले नाग की संज्ञा से अलंकृत किया है। वरना आज़ादी के अमृत काल से गुजऱ रहे देश में इतना संयम किसके पास है कि वह अपने विधायकों को केवल काले नाग कह कर छोड़ दे। जुमला-नवाज़ या तड़ीपार चाणक्य होते तो अपने बागिय़ों का स्वागत ईडी या सीबीआई के हाथों पान पराग से करवाते। दो-चार महीने जेल में उनसे चक्की पीसिंग करवाने के बाद अपने वाशिंग पॉउडर और मशीन में धोने के बाद उन्हें ऐसा सुखाते कि उनसे बग़ावत की सारी सीलन और बदबू ग़ायब हो जाती। मुख्यमंत्री के इस संयमपूर्ण व्यवहार के बावजूद इन बाग़ी विधायकों के तेवर देखिए। कह रहे हैं कि वे अपनी पार्टी के नहीं, सरकार या मुख्यमंत्री के खिलाफ हैं।

यह तो वही बात हुई कि हमें घर में तो रहना है, पर घर की नींव खोदने का मज़ा भी लेना है। उनके घर अर्थात कांग्रेस पार्टी की दीवारें पहले ही बेरंग और भोथरी हो चुकी हैं। जिस नींव के सहारे पार्टी के रहनुमा घर की रेट्रोफिटिंग की सोच रहे हैं, ह्माचल के बाग़ी विधायक उसी नींव को खोदने का मज़ा लेते हुए वृहत् हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना को साकार करने में अपना योगदान देना चाहते हैं। उन्हें शायद पता नहीं कि इस पुनीत कार्य के लिए अंधभक्त और गोदी मीडिया ही काफी हैं। ह्माचल के मुख्यमंत्री में संयम इतना कूट-कूट कर भरा है कि अपने बाग़ी विधायकों को काले नाग बोलते वक्त उनका गला रूंध गया। लेकिन अगर उन्होंने सारी रेवडिय़ाँ अपनों को देने की बजाय इनमें से कुछ रेवडिय़ाँ बागिय़ों में बाँटी होतीं तो वे भी रेवडिय़ाँ चाटते हुए मुख्यमंत्री और पार्टी के गुण गाते रहते। पर यह मुख्यमंत्री के संयम का ही कमाल है कि उन्होंने नेता प्रतिपक्ष को केवल सत्ता का भूखा बताया और अपने बारे में कहा कि उन्हें कुर्सी से अधिक जनता की सेवा का मोह है। पर पता नहीं सभी नेताओं में प्रतिपक्ष में रहते हुए सत्ता की इतनी भूख और सरकार में रहते हुए जनता की सेवा की इतनी चिंता क्यों रहती है। जनता की सेवा के लिए कुरसी इतनी ज़रूरी क्यों है। मुझे तो लगता है कि सत्ता की इस भूख और जनता की सेवा में कोई गहरा सम्बन्ध है जिसकी विवेचना अंधचिंतन से ही संभव है।

पीए सिद्धार्थ

स्वतंत्र लेखक