क्यों पीनी पड़े शराब

कुछ तो शुक्रिया अदा शराब की बोतल का करें, जिसकी बदौलत प्रदेश का चूल्हा जलेगा। कोशिश हर बोतल से पूछ रही है कि इस बार कमाई के छबील पर कितना नशा बहेगा। ठेकेदारों की खिदमत में बोलियां लगाता आबकारी विभाग अपने सिर की जुएं निकाल देगा और फिर यूनिट दर यूनिट, इस महफिल में कमाने का जरिया, हमारी ही दरिद्रता के सामने अमीर हो जाएगा। पिछले दस महीनों में जिन लोगों ने नौ करोड़ से भी अधिक शराब की बोतलें गटक लीं, उनका शुक्रिया अदा करें या हर बोतल से निकलते मिल्क सेस का तिलक करें जिसने नब्बे करोड़ की उपज पैदा कर ली। सब कुछ ठीक व अनुमान पर खरा उतरा तो इस बार करीब 2100 शराब के ठेकों की नीलामी 2700 करोड़ की कमाई कर देगी और अब तो किराना दुकान पर राशन के एक कोने में बोतल इस्तकबाल करेगी। पीने वालों के लिए अब राशन की कतार में शराब की बोतल भी अवतार है। हर आबकारी नीति का भरोसा शराब की अधिकतम बिक्री पर है, इसलिए नए आविष्कार में किराने का कोना मधुशाला बनेगा और विभाग की खिचड़ी में शराब पकेगा। स्मार्ट लीकर शॉप, हमारी आर्थिकी के बुरे दिनों की साथी है और हर शराबी सरकार के खजाने के लिए गा रहा है, ‘साथी हाथ बढ़ाना।’ हो सकता है इस बहाने हिमाचल की रगों में बहती शराब, प्रदेश की खातिर बहती गंगा में हाथ धो ले। पाप को पुण्य में बदलने के लिए शराब की महती कोशिश की सराहना करें या कभी उस आईने में देखें जहां नैतिकता के हिसाब से कोई न कोई खानदान हार रहा होता है।

फिर सस्ती शराब के चटकारे लेने वालों का क्या कसूर जो नकली शराब की हांडी में मुंह मारकर आंतडिय़ों में छाले पैदा कर लेते हंै। कितना महीन काम है शराब की बोतल पर नन्हें शब्दों में लिखना कि इसका सेवन करना हानिकारक है। बजट भले ही शराब पीने को प्रेरित नहीं करता, लेकिन गरीबी से बचाने के लिए कमाई का संतुलन पैदा करता है। अगर इस साल शराब पीने की आदत बढ़ जाए या एक बोतल पीने वाले एक साथ दो-दो पी लें, तो आबकारी विभाग की बल्ले-बल्ले हो जाएगी। जब से सभ्य समाज ने राज्य के बजट को करमुक्त देखना शुरू किया है, कमाई के लिए किसी को तो पीना ही पड़ेगा। कोई स्थानीय नगर निकाय के लिए, तो कोई दूध की खरीद बढ़ाने के लिए पी रहा है। जो ऐसा नहीं कर पा रहे, आज भी गुड़ की कच्ची शराब पीकर, सरकारी कमाई का गुड़ गोबर कर रहे हैं। हमें क्योंकि मुफ्त की बिजली चाहिए, सस्ते में पीने का पानी, कम किराए वाली बस, बिना बच्चों के मुफ्त पढ़ाई वाला स्कूल गांव में चाहिए, गरीब बनकर बीपीएल से सगाई चाहिए और सरकारी नौकरी में ओपीएस की शुमारी चाहिए, तो किसी को तो शराब पीनी होगी।

इसलिए कभी रात को हिमाचल का परिदृश्य में संभल कर देखना कि जो पीकर गिरा है, वह राज्य के कोष के लिए कितना संघर्ष कर रहा है। यह उसकी हिम्मत है कि गुर्दे फेल होने तक प्रदेश के खजाने की चिंता में बोतल पर बोतल लिए मर रहा है। हम शराब बिक्री के आंकड़ों में करमुक्त बजट की फौलादी बाहें देखते हैं- कितनी शिद्दत से सरकारी वादों के अमन में बिकती हुई शराब हमेशा शांत दिखती है। आश्चर्य है कि शराब की बिक्री आज तक अस्पताल के बिस्तर पर बिखरी शराबी की जिंदगी नहीं देख पाई। जिसने पीकर खजाना भरा, उसके अभिशाप में परिवार के अरमान किस तरह जिंदा जले, प्रदेश नहीं देख रहा। काश, हम करमुक्त राज्य के बजाय शराबमुक्त राज्य होने की कीमत अदा करने के योग्य हो जाते। शराब की बिक्री बढ़ाने के बजाय, कर उगाही में प्रदेश को सम्मानित कर पाते।