महिलाओं की जीत

राजस्थान के एक सुदूर रेगिस्तानी गांव की बेटी महिला सशक्तीकरण का प्रतीक बन गई है। उसने अविवाहित महिलाओं के साथ सरकारी स्तर पर किए जा रहे भेदभाव के खिलाफ लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी और आखिरकार उसमें जीत हासिल करके महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने में सफलता हासिल कर ली है। यह कहानी है राजस्थान के बालोतरा जिले के गूगड़ी गांव की निवासी 26 वर्षीय मधु चारण की। एक गरीब मजदूर पिता की बेटी मधु के संघर्ष की बदौलत राज्य की हजारों अविवाहित महिलाओं को आंगनबाड़ी केन्द्रों में कार्यकर्ता और सहायिका बनने का अधिकार मिल सका है। हाल में राज्य की उप-मुख्यमंत्री दीया कुमारी ने इस आशय के आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं। दरअसल, कई दशकों से राजस्थान में अविवाहित महिलाओं को आंगनबाड़ी केन्द्रों में कार्यकर्ता और सहायिका बनने से वंचित किया जा रहा था। महिला एवं बाल विकास विभाग ने इन पदों के लिए आवेदनकर्ता महिलाओं का विवाहित होना जरूरी होने की शर्त लगा रखी थी। यह शर्त सीधे तौर पर अन्याय था, लेकिन कोई महिला इसके खिलाफ आवाज नहीं उठा रही थी। कहते हैं, कभी न कभी तो अन्याय का प्रतिकार होना ही होता है। विभाग की ओर से वर्ष 2019 में गूगड़ी गांव में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद के लिए आवेदन मांगे गए।

मधु अपना आवेदन लेकर विभाग के कार्यालय में गई, लेकिन उसका आवेदन पत्र लेने से यह कहकर इनकार कर दिया गया कि उसकी तो अभी शादी नहीं हुई है। विभाग के अधिकारियों की बात सुनकर मधु हैरान रह गई। उसने प्रश्न किया कि जब वह आयु, शैक्षणिक योग्यता समेत तमाम शर्तों पर खरी उतर रही है तो उसके अविवाहित होने का सवाल क्यों? अधिकारियों ने उसे राज्य सरकार की शर्त होना बताकर वापस भेज दिया। मधु घर लौट आई, लेकिन लगातार सोचती रही। बार-बार यही ख्याल आ रहा था कि ऐसे तो पूरे राज्य में हजारों महिलाओं को सिर्फ इसलिए काम करने से वंचित किया जा रहा है क्योंकि वे अभी अविवाहित हैं। उसने इस बारे में जितना सोचा, उतना ही परेशान होती चली गई। आखिरकार, उसने इस अन्याय के खिलाफ लडऩे की ठान ली। अगले दिन उसने पिता मूलदान चारण को अपना इरादा बताया। पिता ने उसकी लड़ाई में साथ देने की हामी भर दी तो मधु का हौसला दोगुना हो गया। उसने तत्काल एक तरफ तो अपना आवेदन-पत्र डाक के जरिए विभाग कार्यालय में भेजा, दूसरी ओर महिलाओं के खिलाफ अन्याय को लेकर राजस्थान उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा दिया। न्यायालय ने उसकी याचिका पर राज्य सरकार से जवाब-तलब कर लिया। मुकदमा शुरू हो गया। मधु ने करीब पांच साल तक कोर्ट में तारीखें भुगतीं। अंतत: 4 सितंबर 2023 को वह दिन आ ही गया, जब हाईकोर्ट ने मधु के हक में फैसला सुनाया। हाईकोर्ट ने महिलाओं के विवाहित होने की शर्त को अविवाहित महिला उम्मीदवारों के लिए अतार्किक और उनके अधिकारों का उल्लंघन बताया। -(सप्रेस)

अमरपाल सिंह वर्मा

स्वतंत्र लेखक