पिता-माता के बाद विक्रमादित्य मंडी फतह करने के लिए तैयार

दिव्य हिमाचल ब्यूरो — कुल्लू

मंडी संसदीय सीट पर दो ही दलों के बीच चुनावी जंग छिड़ती आई है। कभी भाजपा ने जीत हासिल की, तो कभी कांग्रेस ने। इस सीट पर दोनों ही दलों ने कई बार चेहरे बदले। भाजपा ने तो कई बार ऐसे नए चेहरों पर दाव खेल डाला, जिनका जीनता किसी को भी आसान नहीं लग रहा था, लेकिन फिर भी भाजपा ने जीत हासिल कर पार्टी में चल रहे बदलाव को सामने रखा। वहीं, बात अगर कांग्रेस दल की करे, तो यहां लोकसभा का पिछला इतिहास देखें, तो अधिकतर बार चुनावी जंग में राज परिवार से संबध रखने वाले व्यक्ति पर अधिक चुनावी दाव खेला गया है, जबकि भाजपा ने पिछले कुछ वर्षो से हर बार नया चेहरा जनता को दिया है। इस बार तो भाजपा ने हिमाचल के मंडी से संबंध रखने वाली वालीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत पर दांव खेला है। इससे पहले भाजपा ने लोकसभा उपचुनाव में सेना के वीर सपूत बिग्रेडियर खुशहाल सिंह को चुनावी जंग में उतारा था। इससे पहले स्वर्गीय सांसद रहे रामस्वरुप पर भी भाजपा ने दांब खेला था, लेकिन यहां कांग्रेस के पास फिलहाल कोई नया चेहरा नहीं है। सांसद प्रतिभा सिंह ने चुनाव लडऩे से इनकार कर डाला और फिर कांग्रेस के पास कोई और विकल्प नहीं रहा। कुछ वरिष्ठ नेताओं के नाम पर चर्चा भले ही की हो, लेकिन वालीवुड अभिनेत्री और इसके साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व भाजपा के कुनबे का मजबूत स्पोट के आगे कांग्रेस को भी एक मजबूत प्रत्याशी की जरूरत है।

कांग्रेस में फिर से दिल्ली हाईकमान के साथ बैठकें हुईं और अब नाम हिमाचल सरकार के सबसे युवा नेता मंत्री विक्रमाादित्य सिंह के नाम की चर्चा चल पड़ी है। हालांकि उनके नाम की घोषणा अभी अधिकारिक रूप से नहीं हुई है, लेकिन कांग्रेस दल एक बार फिर राज परिवार के सदस्य पर ही दांव खेलने जा रही है। राज परिवार के मुख्य रहे पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का राजनीतिक इतिहास देखें, तो उन्होंने 60 वर्ष के राजनीतिक सफर में 14 बार चुनाव लड़ा। छह बार हिमाचल का प्रतिनिधित्व कर चुके वीरभद्र सिंह ने 1962 से महासू, शिमला, लोकसभा क्षेत्र से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की थी। पहली बार महासू से चुनकर तीसरी लोकसभा के सदस्य बने। 1967 में इसी संसदीय क्षेत्र से दूसरी बार सांसद चुने गए। इसके बाद शिमला लोकसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होने पर वीरभद्र सिंह ने 1971 में मंडी लोस क्षेत्र को अपनी कर्मभूमि चुना। उनके गृह जिला शिमला का रामपुर विधानसभा क्षेत्र इस संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है।

यहां से सांसद चुने जाने के बाद वह केंद्र में 1976 में उप नागरिक उड्डयन मंत्री बने। 1977 में जनता पार्टी के गंगा सिंह ठाकुर के हाथों हार का सामना करना करना पड़ा। 1980 में हार का बदला लेकर लोकसभा में पहुंचे। केंद्र में उद्योग राजमंत्री बने। यहीं से वीरभद्र सिंह की किस्मत का सितारा चमका। कांग्रेस हाईकमान ने रामलाल ठाकुर को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाया और वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री बनाकर दिल्ली से हिमाचल वापस भेजा। इसके बाद उन्होंने पीछे मुडक़र नहीं देखा।

पांच बार सांसद चुने पूर्व सीएम वीरभद्र सिंह

वीरभद्र सिंह 1983 से 1990, 1993 से 1998-2003 से 2007 तक प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। 2007 में प्रदेश की सत्ता से बाहर होने के बाद वीरभद्र सिंह ने दोबारा मंडी संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ा। भारी मतों से जीतकर हासिल कर पांच बार सांसद चुने गए। मनमोहन सिंह मंत्रिमंडल में इस्पात मंत्री बने। इसके बाद लघु एवं मझौले उद्यम मंत्रालय का जिम्मा मिला। 2012 में केंद्रीय मंत्री पद से त्यागपत्र दिया। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने। उनके नेतृत्व में 2012 का विधानसभा चुनाव लड़ा गया। कांग्रेस पार्टी ने दोबारा सत्ता में वापसी की और वह छठी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह भी दो बार मंडी संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं और वर्तमान में सांसद हैं।