शिमला सीट पर कांग्रेस को प्रत्याशी की तलाश

भाजपा का कैडीडेंट फाइनल अभी तक उम्मीदवार घोषित नहीं कर पाई कांग्रेस

सूरत पुंडीर – नाहन

हिमाचल प्रदेश की राजनीति में हाल ही में आई सुनामी के बाद कांग्रेस खुद को रेस्क्यू करने में जुटी हुई है। यही कारण है कि कांग्रेस लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नामों पर खूब मंथन कर रही है। कांग्रेस उम्मीदवारों के चयन में फूंक कर पांव रखना चाहती है। हिमाचल में मिशन लोटस के मुरझाने के बाद चित्त और पट के खेल में भाजपा भी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है। हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि जहां भाजपा ने शिमला पार्लियामेंट्री सीट पर प्रत्याशी घोषित कर पहले बाजी मारी है। वहीं कांग्रेस की उहापोह समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है।

असल में कांग्रेस के सामने न केवल पार्लियामेंट्री बल्कि उपचुनाव की विधानसभा सीट भी अब बड़ी चुनौती है। कांग्रेस के सामने सभी छह सीटें जीतना न केवल प्रतिष्ठा बल्कि खुद को सियासत में कायम रखने का भी एकमात्र रास्ता है तो वहीं भाजपा ने भी कांग्रेस का घर छोडऩे वाले नेताओं पर विश्वास जताकर पुराने संगठन कार्यकर्ताओं से नाराजगी मोल ले ली है। टिकट आबंटन को लेकर कांग्रेस भले ही कदम फूंक-फूंक कर चल रही हो, मगर उनके लिए जीतने के बाद गुरु दक्षिणा देने वाला एकलव्य कौन साबित हो सकता है इसको लेकर बड़ी टेंशन चल रही है। एचडीएम

दयाल प्यारी-अमित नंदा के नाम चर्चा में

शिमला पार्लियामेंट्री सीट पर जहां महिला प्रत्याशी के तौर पर दयाल प्यारी को देखा जा रहा था उसमें कई सवाल भी खड़े हो रहे हैं। यहां यह भी बता दें कि दयाल प्यारी भाजपा की कर्मठ सिपाही थी। एक छोटे से प्रकरण के बाद पार्टी को बाय-बाय करने वाली उनकी अदा कांग्रेस के रणनीतिकारों में भी चर्चा का विषय बनी हुई है। अब यदि बात की जाए दूसरे कांग्रेसी चर्चित चेहरे की तो अमित नंदा के नाम पर भी कांग्रेस विचार कर रही है। एंटी इनकंबेंसी के चलते सिरमौर के दो विधानसभा क्षेत्र को छोडक़र अमित नंदा शिमला और अप्पर शिमला बैल्ट में बेहतर स्थिति बन सकते हैं। हालांकि दयाल प्यारी इन सभी समीकरणों में बेहतर साबित होती है, मगर वह अपने विधानसभा क्षेत्र में तब तक कमजोर है जब तक उसके सिर पर दिग्गज कांग्रेसी रहे गंगूराम मुसाफिर का हाथ नहीं पड़ जाता। फिलहाल शिमला लोकसभा सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार की घोषणा में देरी भाजपा के लिए मददगार बनती जा रही है।