गीता रहस्य

स्वामी रामस्वरूप

परमेश्वर की कोई आकृति नहीं होती और (यस्मात) किसी भी कारण से (न जात:) उत्पन्न नहीं हुआ (इत्येष:) केवल यह परमात्मा ही उपासना के योग्य है। अत: मूर्तिपूजा वेद विरुद्ध है…

गतांक से आगे…
आपको देखकर अत्यधिक डरे हुए मन वाला मैं धैर्य और शांति को नहीं प्राप्त होता हूं। भाव- ‘ विष्णु पद’ विष्लृ व्यापतौ धातु से सर्वव्यापक भावार्थ प्रकट करता है। जैसे अथर्ववेद मंत्र 9/10/28 में कहा (विप्रा) वेदों के विशेष रूप से ज्ञान द्वारा परिपूर्ण तपस्वी (एकम) एक अर्थात वह एक परमेश्वर जिसके समान कोई दूसरा न था, न है, न होगा। (सत) वह परमेश्वर जो सत्य है और जिसकी सत्ता अनादिकाल से है (बहुधा वंदति) उस परमेश्वर को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारते हैं। मंत्र में आगे कहा जैसे इंद्र, मित्रम (वरूणम और अग्रिम) उसी एक परमेश्वर के नाम हैं।

इसी प्रकार विष्णु अर्थात सर्वव्यापक परमेश्वर भी उसी एक चेतन निराकार परमेश्वर का नाम है। यजुर्वेद मंत्र 32/3 में कहा (न तस्य प्रतिमा अस्ति) परमेश्वर की कोई आकृति नहीं होती और (यस्मात) किसी भी कारण से (न जात:) उत्पन्न नहीं हुआ (इत्येष:) केवल यह परमात्मा ही उपासना के योग्य है।

अत: मूर्तिपूजा वेद विरुद्ध है। ऋग्वेद मंत्र 1/22/16 में कहा (यत:) जिस नित्य कारण से (विष्णु:) ब्रह्मांड में व्यापक परमेश्वर (पृथ्वीया:) पृथ्वी, जल, अग्रि, वायु, विराट परमाणु और प्रकृति इन लोकों को (धामभि:) धारण करता है (विचक्रमे) रचता है (अन:) इसलिए (देवा:) वेदों के ज्ञाता, विद्वान (न:) हमारी (अवंतु) परमेश्वर के सर्वव्याक रूप और सातों लोकों का ज्ञान देकर हमारी रक्षा करें।

अत: मनुष्य वेदों के विद्वानों की शरण में जाकर ही जीवन का रक्षा कवच एवं खुशियां प्राप्त करता है। ऋग्वेद के अगले मंत्र 1/22/17 में भी कहा कि इसी निराकार विष्णु गुण वाले अर्थात स्वभाव के सर्वव्यापक गुण वाले निराकार परमेश्वर ने यह जगत रचा है और उसे धारण किए हुए है। – क्रमश: