गमलों में जुमले…

पड़ोसी चाहे मेरा हो या आपका, पड़ोसी का हंसना हर हाल में प्रलय लाता है। पड़ोसी की हंसी प्रलय से पहले की हंसी होती है। आदर्श पड़ोसी जब भी हंसते हैं, उनकी हंसी कहर बरपाती है। पड़ोस में नया बवंडर लाती है। आते ही वे मुस्कुराते बोले, मन से या मन से ये तो वे ही जाने, तुम्हारे लिए फूल लाया हूं। लाइफ टाइम फूल हैं। एक बार जो लग गए तो रात को भी मुस्कुराते रहेंगे। माफ करना! मैंने तुम्हारे साथ आज तक बहुत बुरा किया है, पर अब मैं चाहता हूं कि’…कह उन्होंने मेरी तरफ अलग अलग जात के फूल के आठ दस पौधे बढ़ाए तो मैं दहका। यार! ये हो क्या रहा है? आज दिन में सूरज की जगह चांद कहां से निकल रहा है? मेरे जो पड़ोसी शरीफी की मखमल में बदतमीजी लपेट मेरे मुंह पर मारते रहे और मैं इस मुगालते में जीता रहा कि आज नहीं तो कल, वे सुधर जाएंगे, और सच्ची को आज… फिर मैंने सोचा कि चलो, बरसों के भटके पड़ोसी घर आए हैं तो उनका स्वागत होना चाहिए। पुरजोर स्वागत होना चाहिए। सो मैंने उनका स्वागत ठीक वैसे ही किया जैसे हम हर बार अमेरिका से आने वालों का करते हैं। चाहे वे हमारे यहां किसी भी मकसद से आते रहे हों। चाय पानी के बाद मैंने उनके दिए फूल पहले उनके सीने से लगाए और फिर अपने गले से। और उसके बाद बड़े शौक से गमलों में एक एक कर लगा दिए, अपने पड़ोसी की मधुर स्मृतियां मान! कल गमलों में महीना पानी के बदले गंगाजल देते रहने के बाद उनके दिए फूलों के पौधों में कलियां आने लगीं तो मैं चहका। लगा, पहली बार वे सच्चे पड़ोसी बनने की ओर अग्रसर हो रहे हों! शुक्र है, फूल में फूल ही आ रहे हैं, बबूल नहीं। सारी रात तब सुबह खिले फूल देखने की चाह लिए सो नहीं पाया।

सुबह सुबह के जागने से पहले उठा और फूलों के गमलों की ओर लपका तो ये क्या! हर गमले में फूल के बदले एक एक जुमला खिला हुआ। गुलाब के पौधे में भी जुमला तो गेंदे के गमले में भी जुमला। सूरजमुखी के गमले में भी जुमला तो रात रानी के गमले में भी जुमला। इस गमले में भी महका हुआ जुमला तो उस गमले में भी गदराता जुमला। मैं डरा! यार ! ये पौधे विभिन्न दलों के होंगे कि फूलों के? अभी अपने से प्रश्न कर ही रहा था कि एक गमले का पौध बोला, ‘बंधु! तुम्हारे पड़ोसी दे तो तुम्हें फूलों के ही पौधे गए थे पर…। ‘पर बोले तो? मैंने गमले में लगे फूल की जड़ों की ओर देखा तो वह उसने आगे कहा, ‘जुमलों का मौसम चल रहा है न! ऐसे में फूलों के पौधों में फूल कैसे खिल सकते हैं? फूल के पौधों में फूल तो तब लगते जो फूलों का मौसम होता। ये जुमलों का मौसम है। वसंत पर चुनाव का मौसम भारी है। वासंती हवा में खुशबू की नहीं, जुमलों की खुमारी है। कान हो तो ध्यान से सुनो! वोटर रूपी भौंरे जुमले रूपी फूलों पर देखो तो कितनी मस्त मस्त गुंजार कर रहे हैं। अपनी आंखें फेसबुक, व्हाट्सएप से जरा हटाकर तो देखो, फेसबुक, व्हाट्सेप यूनिवर्सिटी के बफेलो!

गुल मेहंदी के गमले में भी जुमला खिल रहा है तो कंदपुष्प के गमले में भी जुमला खिल रहा है। नरगिस के गमले में भी जुमला खिल रहा है तो गुलबहार के गमले में भी जुमला खिल रहा है। अंगूर की बेल में भी अंगूर के बदले जुमले लटक रहे हैं। खट्टे या मीठे ! ये तो बाद में ही पता लगेगा। अंजीर के पेड़ में भी अंजीर की जगह जुमले लगे हुए हैं। अनार, आड़ू, अमरूद, आलू बुखारा, आम तक सब में अनार, आड़ू, अमरूद, आलू बुखारा, आम नहीं जुमले ही लगे हैं। हवा में जुमले गुलाल हो रहे हैं। पानी में जुमले कमाल हो रहे हैं। सडक़ पर भी आदमी नहीं, जुमले मस्तानी चाल हो रहे हैं’, मैंने तब आव देखा न ताव, फूलों के पौधों में लगे अलग अलग किस्म के जुमलों को जी भर सूंघा और बिस्तर हो लिया।

अशोक गौतम

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