फाइलों में योजनाएं, सडक़ों पर बेसहारा पशु

लोक गलांदे, हे प्रभु! असां हुण गड्डिया चलाइये कि डंगरेयां खेदीए, हाइवे पर आएं तो लाठी साथ लाएं

कार्यालय संवाददाता-नगरोटा बगवां
राष्ट्रीय उच्च मार्ग हो या कोई संपर्क सडक़। गेहूं के खेत हों या कोई साग भाजी का बगीचा। हर जगह अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहे बेसहारा पशु अब लोगों के लिए परेशानी का सबब बन रहे हैं। लोग अपनी फसलों को बचाने के लिए इन बेजुबानों को सडक़ों की ओर धकेल रहे हैं। लोग रात को पशु खुले में छोड़ रहे हैं। हालत यह हो गई है कि सडक़ मार्गों पर इन बेसहारा पशुओं के झुंड स्थान स्थान पर आम देखे जा सकते हैं। इनकी वजह से कई बार वाहन हादसे का शिकार हो रहे हैं।

हाइवे पर निकल रहे पशुओं के झुंड जहां जाम का सबब बन रहे हैं। वहीं जाम जैसी स्थिति से बेखबर सुस्ता रहे पशुओं को हटाने के लिए वाहन चालकों को स्वयं गाड़ी से नीचे उतरना पड़ रहा है। उनके मुंह से अकसर सुना जा सकता है कि ‘हे प्रभु, असां हुण गड्डिया चलाइये कि डंगरेयां खेदीए’। खरी मुसीबत है ऐह। हुण लाईसेंसे सोगी गड्डिया विच इक डांग भी रखणा पौणी। यह समस्या नगरोटा बगवां सहित पूरे प्रदेश में प्रतिदिन बढ़ती जा रहा है। सरकारों की ओर से इस समस्या का समाधान करने के लिए योजनाएं तो बनाई जाता हैं लेकिन धरातल कुछ नहीं हुआ।

नगरोटा बगवां की सडक़ों पर घूम रहे 381 पशु
हाल ही के सर्वेक्षण के सरकारी आंकड़े बताते हैं कि नगरोटा बगवां उपमण्डल में ही करीब 381 पशु पिछ्ले लंबे समय से सडक़ों पर हैं जबकि करीब 2 दर्जन पशु नगर परिषद क्षेत्र में ही लोगों के जी का जंजाल बने हुए हैं। इसी तरह पशु चिकित्सालय नगरोटा बगवां के अंतर्गत यही आंकड़ा 297 को पार कर रहा है जो चिंता का विषय है।

क्षेत्र की सबसे बड़ी समस्या नहीं हुई हल
वर्षों से प्रदेश में बड़ा मुद्दा बनने के बाद भी निराश्रित छोड़े गए पशुओं से आम आदमी को कोई राहत नहीं मिल पाई है। हाई कोर्ट के दखल के बाद भी सरकारी स्तर पर कोशिशें नाकाम ही रहीं। दूसरी तरफ सडक़ों में घूम रहे पशुओं की तादाद में भी कोई कमी नहीं आ रही जबकि सैंकड़ों एकड़ भूमि बिजाई के अभाव में बंजर का रूप ले रही है। अनाज, फल, सब्जियां तो दूर कई क्षेत्रों में लोगों को किचन गार्डन भी सुरक्षित रख पाना चुनौती बन गई है।