आवारा-जंगली जानवर मचा रहे तबाही

अगर हम गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि इस समस्या के लिए मानव का स्वार्थ जिम्मेदार है। जब तक गाय दूध देती है, या बैल हल जोतता है, हम उनको अपने घर में रखते हैं, बूढ़े होने पर आवारा छोड़ देते हैं…

हिमाचल प्रदेश की हलचल भरी सडक़ों, शहर के शोरगुल और ग्रामीण क्षेत्रों के शांत वातावरण में एक बात कॉमन है- आवारा जानवर और जंगली जानवरों का डर। ये आवारा भटकते जीव, जिन्हें अक्सर लोगों द्वारा खुली सडक़ों या जंगलों में अपनी स्वार्थ सिद्धि होते ही घर से दूर खदेड़ दिया जाता है, मानव के लिए कई खतरे पैदा करते हैं, जिसमें सबसे प्रमुख खतरा कृषि क्षेत्र में देखने को मिलता है। इसी तरह विकास कार्यों के कारण निरतंर जंगलों की कटाई के कारण जंगली जानवरों के निवास स्थानों पर सेंध लगाई जा रही है जिस कारण जंगलों से बाहर भोजन की तलाश और निवास स्थानों की तलाश में जंगली जानवर शहरों या गांव-घरों तक पहुंच रहे हैं। इस कारण ग्रामीण लोगों और शहरी लोगों को खासी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है जिसमें एक मुख्य समस्या है कृषि, फसलों में इनकी दखल। पिछले हफ्ते मैं ज्वालामुखी विधानसभा के एक छोटे से गांव मजीन में गया हुआ था। वहां रास्ते में कुछ लोग मिले जो कुछ आवारा पशुओं को सडक़ पर खदेड़ रहे थे। मैंने ये सब देख कर अपनी गाड़ी रोक कर ग्रामीणों से बात की तो पता चला कि कोई रात के अंधेरे में इन पशुओं को गाड़ी में छोड़ कर चला गया है। ग्रामीण परेशान थे क्योंकि अभी गेहूं पकने का समय है और इन आवारा जानवरों ने उनके खेतों में आतंक मचाया हुआ है।

कृषि हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था की आधारशिला है, जो कि आबादी के एक बड़े हिस्से को रोजगार प्रदान करती है और जीविका के एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में कार्य करती है। हिमाचल में आज भी कृषि के लिए गाय-बैल सहित अन्य कई जानवर भिन्न-भिन्न रूपों से सहायक है, किन्तु आज गाय, बैल, जंगली सूअर, हिरन और बंदरों सहित कई आवारा जानवर किसानों की आजीविका और कृषि भूमि की उत्पादकता के लिए गंभीर खतरा पैदा कर रहे हैं। ज्वालामुखी और देहरा विधानसभा क्षेत्रों के यही हाल हैं। हिमाचल प्रदेश की लगभग 90 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में रहती है और अधिकांश लोग किसान और बागवान हैं। आप चाहे ऊना के समतल में जाओ या शिमला और किन्नौर के पहाड़ों में, किसान आवारा और जंगली जानवरों से फसलों को हुए नुक्सान के कारण खेतीबाड़ी छोडऩे को विवश हैं। हालांकि यह समस्या केवल हिमाचल की ही नहीं, अपितु पूरे भारतवर्ष की समस्या है। देश के अन्य राज्यों में चाहे किसान इस समस्या के प्रति इतने मुखर न हों, लेकिन हिमाचल में किसान फलों और फसलों को हो रहे नुक्सान पर कई बार आन्दोलन एवं विधानसभा का घेराव कर चुके हैं। एक अनुमान के अनुसार ये जानवर हर साल करीब 500 करोड़ की फसलों का नुक्सान हिमाचल प्रदेश में करते हैं। हिमाचल के कई स्थानों पर किसानों ने फसल बीजना ही बंद कर दी है। मेरे ज्वालामुखी विधानसभा के कई क्षेत्र जैसे भडोली, कुटियारा आदि उपजाऊ क्षेत्रों में लोगों ने जंगली और आवारा जानवरों के कारण खेतीबाड़ी करना छोड़ दिया है, जो कि प्रदेश हित में एक सोचनीय विषय है। केन्द्र सरकार ने सन् 1972 में बंदरों के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगाया था, जो कि अब प्रदेश की हालत देखते हुए हटना चाहिए। राज्य सरकार के आग्रह पर हिमाचल की कई पंचायतों में बंदरों को वर्मिन (हिंसक जानवर) घोषित किया है एवं फल व फसलों को नुक्सान देने वाले बंदरों को मारने की अनुमति केंद्र से मिली हुई है। लेकिन इस सबके बावजूद राज्य सरकार ने बंदरों को मारने से हाथ खींच लिए हैं। सरकार चाहती है कि किसान खुद बंदरों को मारें, लेकिन हाथों में हल पकडऩे वाले किसान बंदूक कैसे पकड़ें? एक सर्वे के अनुसार प्रदेश में पौने चार लाख के करीब बंदर हैं, जो कि पिछले दो दशकों से फसलों को नुक्सान पहुंचा रहे हैं।

हिमाचल के किसान यह मांग करते आए हैं कि बंदरों के निर्यात पर जो प्रतिबंध लगा है, उसको हटाया जाए। पहले भारत विदेशों में प्रतिवर्ष करीब 60 हजार बंदरों को निर्यात करता था, जिस पर पशु प्रेमी संगठनों के विरोध के कारण प्रतिबन्ध लगाया गया है। हिमाचल सरकार ने पांच साल पहले यह प्रयास भी किया कि बंदरों को नागालैंड, मिजोरम, मणिपुर आदि राज्यों में भेजा जाए, किन्तु सरकार का यह प्रयास भी किन्हीं कारणों से सफल नहीं हो सका। बंदरों, सूअरों और हिरणों के साथ-साथ आवारा पशुओं की समस्या भी काफी चिंतनीय है। यह पशु फसलों को तो नुक्सान पहुंचाते ही हैं, साथ ही साथ कई बार रोड एक्सीडेंट्स का कारण भी बनते हैं। हिमाचल उच्च न्यायालय के आदेशों के बावजूद हजारों गायें और बैल राज्य भर में राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों पर घूमते रहते हैं, जो मोटर चालकों के लिए मुख्य रूप से एक्सीडेंट का कारण बनते हैं। एक सर्वे के अनुसार हिमाचल में प्रतिदिन एक एक्सीडेंट आवारा पशुओं के कारण होता है। मेरे खुद के विधानसभा क्षेत्र ज्वालामुखी में जहां हजारों लोग माथा टेकने मंदिर आते हैं, उनको पशुओं के जमावड़े के कारण भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है। कई बार ये पशु बीच सडक़ पर खड़े होकर ट्रैफिक जाम, तो कभी एक्सीडेंट्स का कारण बनते हैं। अपने कार्यकाल में मैंने इस समस्या से निपटने के लिए विधानसभा में कई गौशालाओं का निर्माण करवाया, जिससे आवारा पशुओं की संख्या में कुछ कमी हुई। अगर हम गौर से देखेंगे तो पाएंगे कि इस समस्या के लिए मानव का स्वार्थ जिम्मेदार है। जब तक गाय दूध देती है, या बैल हल जोतता है, हम उनको अपने घर में रखते हैं, जैसे ही मनुष्य की स्वार्थ सिद्धि पूर्ण हो जाती है तो इन्हें आवारा छोड़ दिया जाता है।

इसी तरह जंगलों की निरंतर कटाई के कारण, जंगलों को उखाड़ कई विकास कार्यों को धरातल पर लाने के कारण मनुष्य द्वारा जंगली जानवरों, जैसे कि बंदरों, हिरणों या जंगली सूअरों के निवास स्थानों को खत्म किया जा रहा है तथा साथ ही साथ इनके भोजन के मुख्य स्त्रोत जल-जंगल से इन्हें दूर किया जा रहा है, तो स्वाभाविक है कि ये जानवर भोजन की तलाश और सुरक्षित निवास स्थान की तलाश में शहरों या गांवों की ओर रुख करेंगे। सरकार को ज्यादा से ज्यादा नीड बेसिस पर सेंचुरी, पार्क और गौशाला का निर्माण करना चाहिए। अवैध वन कटान पर प्रतिबंध तथा इनके निवास स्थानों में कम से कम हस्तक्षेप किया जाना चाहिए। कई अन्य उपाय भी किए जा सकते हैं।

रमेश धवाला

पूर्व मंत्री