गरीब को उठाना है…

देश के तमाम राजनेता इस बात पर एक मत हैं कि गरीबों को उठाना है। नेताजी मिले तो मैंने कहा, क्यों साहब, यह तो आप लोग अपने भाषणों में आम तौर पर कहा करते हंै कि गरीब को उठाना है, तो इसका तात्पर्य क्या है? ‘गरीबों को उठाने का मतलब गरीबी मिटाने से है। इन्हें उठाए बगैर गरीबी नहीं मिट सकती।’ ‘तो क्या आप यह कहना चाहते हैं कि गरीबी को उठाकर इस देश से बाहर समंदर में डाल देना है, या उसे चार कंधे देेने हैं अथवा उसका वोट हथियाना है, गरीब आदमी तो वैसे ही आपको वोट देने को विवश है।’ ‘इसीलिए तो उसे उठाना है, मेरा मतलब यह है कि वह हमें वोट दे तो क्या हम खुशी में पागल होकर उसे शाबाशी रूप में भी नहीं उठा सकते। जब तक लोकतंत्र है तब तक गरीब को उठाया जाता रहेगा।’ वह बोला। मैंने कहा, ‘यह ठीक है कि गरीब को उठाना है, परंतु आपके पास गरीबी के अलावा भी कोई विषय है, जिस पर बातचीत की जा सकती है?’ ‘गरीबी ही देश की एकमात्र ज्वंलत समस्या है। गरीबों के देश में अमीरों की बात करना भी तो उचित नहीं है। उसमें पूंजीवादी, असमाजवादी तथा अलोकतांत्रिक होने की तोहमत लग सकती है। इसलिए प्यारे भाई, गरीबों के मुल्क में हमें गरीबी से सरोकार रखना ही पड़ेगा।’ उसका जवाब था। ‘दरअसल आपका फरमाना वाजिब है।

देश में बढ़ती महंगाई ने गरीब की कमर तोडक़र रख दी है। इसीलिए वह बुरी तरह गिर पड़ा है। ऐसे में भी यदि वह गिरा रह गया तो गिरा माना जाएगा। भारतीय गरीब की मौलिक पहचान गरीब होते हुए भी खड़े रहना है। वह इतना गिरा हुआ गरीब नहीं है कि गिरा हुआ ही रह जाए।’ मेरी इस बात पर नेताजी हिनहिनाए, ‘अरे अब समझे गरीबों के सरदार तुम मर्म की बात। गरीब को न तो आराम करने देना है और न सोने देना है। उसे अपनी गरीबी के खिलाफ निरंतर संघर्ष करते रहना है, अत: उसका हाथ पर हाथ धरे रहना ठीक नहीं है, इस दृष्टि से भी बैठे हुए गरीब की सही पहचान यही है कि वह निरंतर मेहनत-मशक्कत करता रहे। इससे सरकार को पता रहता है कि कौन गरीब है अथवा कौन अमीर है। यदि गरीब को अपने को उठाना है तो यह आभास निरंतर कराना होगा कि वह आराम से बैठा हुआ नहीं है।’ ‘वाकई बात तो नेताजी आपने मार्के की कही है। परंतु क्या इस देश में गरीबी का उन्मूलन कभी संभव भी होगा?’ मैंने शंका रखी। ‘तुम्हें तमीज कब आएगी?

यह देश गरीब है, इसकी यही पहचान है। यदि गरीबी मिट गई तो गरीब उठाने का कार्यक्रम खत्म हो जाएगा। जन-सेवा का क्या होगा? इसलिए गरीबों के मुल्क में गरीबी का अस्तित्व तब तक जरूरी है- जब तक यह वर्तमान समाजवादी, कल्याणकारी सरकार मौजूद है। जो लोग गरीबी मिटाने की बात करते हैं- वे गरीबी के दुश्मन हैं। गरीबी मिटानी नहीं, उठानी है, यानी बढ़ानी है। तभी यह संख्या में ज्यादा होंगे तथा देश का नाम रोशन होगा।’ नेताजी ने फिर वक्तव्य बदला।

पूरन सरमा

स्वतंत्र लेखक