‘वोट जेहाद’ के मायने

दुनिया के सबसे प्राचीन लोकतंत्र अमरीका और सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में आजकल जेहाद की गूंज है। संदर्भ और कारण अलग-अलग हैं। अमरीका के संदर्भ में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड टं्रप का कहना है कि अमरीका में जेहाद नहीं चाहिए। अमरीका में यूनिवर्सिटीज का इस्लामीकरण नहीं होना चाहिए। कुछ यूनिवर्सिटी ऐसी हैं, जिनके परिसरों में युवा शक्ति गाजा के फलस्तीनियों के पक्ष में आंदोलित हैं। वे हमास जैसे आतंकी संगठन के समर्थक या प्रतिनिधि हो सकते हैं। आश्चर्य है कि गाजा के मुसलमानों के हालात और इजरायल के हमलों पर अधिकतर इस्लामी देश अब खामोश हैं, लेकिन अमरीका की यूनिवर्सिटीज में आंदोलन जारी हैं। माइक पर नमाज पढ़ी जा रही है। परिसरों में नौजवानों ने तंबू तक गाड़ कर अवरोधक खड़े कर लिए हैं। यह अमरीका के लोकतंत्र की संस्कृति नहीं है। इन आंदोलनों को खत्म किया जाना चाहिए। हमने देखा है कि जब यूरोप ने जेहाद के लिए अपने दरवाजे खोले, तो क्या हुआ? पेरिस को देख लो। लंदन में देख लो। वे अब पहचानने लायक नहीं हैं। हम अमरीका के साथ ऐसा नहीं होने देंगे। हमारे पास अविश्वसनीय संस्कृति और परंपरा है। बहरहाल भारत में आम चुनाव का मौसम है। लोकसभा के लिए मतदान के चरण जारी हैं, लेकिन मारिया आलम खां ने ‘वोट जेहाद’ के जरिए मुसलमानों का आह्वान किया है। वह पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की भतीजी हैं। सम्पन्न और शिक्षित परिवार से हैं। फिर भी इतनी सांप्रदायिक और देश-विरोधी सोच की हैं, उनका आह्वान सुनकर हैरानी हुई।

जेहाद सिर्फ नारेबाजी तक सीमित नहीं था, बल्कि मारिया ने मौजूदा सत्ता के प्रति जिन शब्दों का इस्तेमाल किया है, वे बेहद नफरती और आपत्तिजनक भी हैं। सवाल है कि क्या भारत में हिंदू, मुसलमान, ईसाई, पारसी आदि के अलगाववादी आह्वानों पर ही चुनाव कराए जा सकते हैं? चुनाव आपसी समभाव, सौहार्द और भाईचारे के भाव के साथ नहीं हो सकते? भारत तो संवैधानिक तौर पर ‘पंथनिरपेक्ष’ देश है। दरअसल इस तरह जेहाद की बात करना आपराधिक मानसिकता है। मारिया जैसे लोग चाहते हैं कि एक-एक मुसलमान घर से निकले और अपने तय मुस्लिम उम्मीदवार के पक्ष में ही वोट सुनिश्चित करे। मुसलमानों को देश के संसाधनों पर भी पहला हक चाहिए। सरकारी नौकरियों, शिक्षा, स्वास्थ्य, सरकारी ठेकों, खेल एवं सांस्कृतिक गतिविधियों में भी आरक्षण चाहिए। कांग्रेस 2009 से अपने चुनाव घोषणा पत्रों में ऐसे आरक्षण या समान अवसर मुहैया कराने का आश्वासन देती आ रही है। उससे पहले भी ऐसी ही सोच रही होगी, लेकिन हमने खंगाल कर नहीं देखा। यह दीगर है कि मई, 2014 से कांग्रेस केंद्रीय सत्ता के बाहर है, लेकिन वह मुस्लिम अल्पसंख्यकों के पर्सनल लॉ, पोशाक, खान-पान और वक्फ के वर्चस्व को भी पूरी स्वतंत्रता दिए जाने की सुनिश्चित घोषणा कर चुकी है। क्या अब देश में ‘शरिया कानून’ भी लागू रहेगा? वोट के नाम पर जेहाद किस तरह होगा, किसी ने भी स्पष्ट नहीं किया।

न सलमान खुर्शीद ने और न ही कांग्रेस ने ‘वोट जेहाद’ का खंडन किया है। जेहाद किस लोकतंत्र का हिस्सा या पर्याय है? हमने तो भारत में आतंकवाद के नाम पर भी जेहाद सुना है। देश के विभिन्न हिस्सों में जो आतंकी हमले किए गए हैं या जेहाद के नाम पर जो कत्लेआम, लहूलुहान जारी है, वह ‘धर्मयुद्ध’ किस तरह कहा या माना जा सकता है? मारिया के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करना ही पर्याप्त नहीं है। उनके खिलाफ देश-विरोधी गतिविधियों वाले कानून में मुकदमा चलाया जाना चाहिए। कभी ‘लव जेहाद’ सुनते हैं, तो कभी ‘लैंड जेहाद’ के नारे बुलंद किए जाते हैं। ‘मुस्लिम आरक्षण’ पर भी अदालतों के खिलाफ जेहाद बोला जा सकता है, क्योंकि सबसे ताजा स्थापना अदालत की ही है कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। प्रधानमंत्री मोदी ने ‘वोट जेहाद’ को लोकतंत्र के खिलाफ माना है, लिहाजा उन्होंने मुस्लिम तुष्टिकरण पर कांग्रेस से तीन लिखित गारंटियां मांगी हैं। चुनाव के संदर्भ में सभी बिरादरियों की बात होनी चाहिए।