पेड़ बताते हैं, जमीन के अंदर कितना सोना

हिमाचली वैज्ञानिक की खोज से आस्ट्रेलिया में तहलका

मटौर – पेड़-पौधों के माध्यम से धरती के भीतर बेशकीमती खनिज खोजकर भारतीय मूल के वैज्ञानिक ने आस्ट्रेलिया में तहलका मचा दिया है। मूलतः हिमाचल प्रदेश कांगड़ा (परौर) निवासी जियो साइंटिस्ट प्रो.रवि आनंद ने खनिजों की खोज के लिए जो विधि अपनाई है, उससे दुनिया भर के वैज्ञानिक आश्चर्यचकित हैं। यहां ‘दिव्य हिमाचल’ के साथ उन्होंने एक भेंट में बताया कि वह  40 साल से आस्ट्रेलियन सरकार के अधीन शोध कार्य में जुटे हैं। इसी दौरान उनके शोध को वहां की प्रसिद्ध वैज्ञानिक संस्था कॉमनवैल्थ साइंटिफिक इंडस्ट्रियल रिसर्च आर्गेनाइजेशन ने कामर्शियल रूप देने के लिए प्रोत्साहित किया है। लिहाजा वह टनों के हिसाब से सोना इत्यादि खनिजों की खोज कर चुके हैं। प्रो. आनंद बताते हैं कि उन्होंने खोज के लिए सफेदे तथा बबूल का पेड़ चुना। विशेषकर सफेदे के पेड़ों ने जमीन के भीतर खनिज भंडार के कई राज खोलकर रख दिए। यह पेड़ चूंकि पानी की खोज में धरती के भीतर 60 फुट तक पहुंचता है, लिहाजा अपने साथ खनिजों के कण भी चूस लेता है। यही कण फिर पेड़ के पत्तों पर परिलक्षित होते हैं। इसी से पता चल जाता है कि कौन सा खनिज कहां कितनी मात्रा में उपलब्ध है। दुर्भाग्य से उन्हें अभी भी भारत की किसी एजेंसी ने इस हेतु संपर्क नहीं किया है। हालांकि वह एक बार अपनी टीम सहित जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के साथ संपर्क साध चुके हैं। तब आस्ट्रेलियन सरकार ने एक सर्वेक्षण हेतु अधिकृत भी किया था, मगर भारत सरकार ने उन्हें विदेशी प्रोजेक्ट कहकर टाल दिया। वह चाहते हैं कि अपनी इसी खोज का लाभ वह अपने देश की तरक्की में दे सकें। भारत में दक्षिण भारत के कई क्षेत्रों की मिट्टी में ये गुण पाए जाते हैं कि वहां उगाया सफेदा जमीन के खजाने की जानकारी दे सके। आस्ट्रेलिया की तरह दक्षिण भारत में लेट्राइट मिट्टी बहुतायत में पाई जाती है, जिससे शोध कार्य और आसान हो जाता है। इसी शोध से तांबा, सोना व लेड इत्यादि खनिज के भंडार ढूंढने में मदद मिलती है। इसी तरह उन्होंने चींटियों के समूहों पर भी अध्ययन किया है। वह बताते हैं कि चींटियां भी जमीन के कई रहस्यों को जमीन पर लाती हैं। इनकी मदद से भी वह कई खनिज ढूंढ चुके हैं।

आनंद को भारत सरकार से उम्मीद

इंटरनेशनल अप्लाइड साइंसेज जियो केमिस्ट-2015 के गोल्ड मेडलिस्ट प्रो. आनंद को उम्मीद है कि भारत सरकार उनके शोध कार्यों को देखते हुए उन्हें भी यहां मौका देगी। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देशों के होते दोस्ताना संबंधों का भारत को भी फायदा उठना चाहिए, ताकि विदेशों में रह रहा बुद्धिजीवी वर्ग अपने मूल देश की तरक्की में सहारा बन सके। प्रो. आनंद ने बीएससी एग्रीकल्चर कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर तथा एमएससी मृदा विज्ञान पंजाब कृषि विश्वविद्यालय लुधियाना से किया है। तदोपरांत उन्हें आस्ट्रेलिया सरकार से स्कॉलरशिप मिला और उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न आस्ट्रेलिया पर्थ से जियो केमिस्ट्री में पीएचडी की।