मोदी सरकार का तीनवर्षीय लेखा-जोखा

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

केंद्र की राजग सरकार के कार्यकाल में कई बड़ी उपलब्धियों के बावजूद ग्रोथ रेट में गिरावट आई है। वास्तव में अर्थव्यवस्था की गिरती हालत नोटबंदी एवं जीएसटी का सीधा परिणाम है। इसमें कोई संशय नहीं है कि इन कदमों से तमाम लोग टैक्स के दायरे में आए हैं और आएंगे। परंतु टैक्स में वृद्धि से ग्रोथ होना जरूरी नहीं है। टैक्स की वृद्धि और अर्थव्यवस्था की दुर्गति दोनों साथ-साथ हो सकते हैं। टैक्स में वृद्धि का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव काफी हद तक राजस्व के उपयोग से निर्धारित होता है…

मोदी सरकार ने बीते तीन सालों में अभूतपूर्व साहस का परिचय दिया है। जीएसटी लागू करने का रास्ता बनाया है। रीयल एस्टेट में धांधली रोकने को रेरा कानून (रीयल एस्टेट रेगुलेशन एंड डिवेलपमेंट एक्ट) लागू किया है। कानून मार्च, 2016 में संसद में पारित किया गया था। नए कानून में बायर्स का विशेष ध्यान रखा गया है। हाई-वे के निर्माण में तीव्र गति बनाई है। बिजली की उपलब्धता बढ़ी है। शीर्ष शासन पर चौतरफा कर्मठता आई है। इन कदमों के फलस्वरूप जमीनी अर्थव्यवस्था में सुधार हुआ है। सभी उद्योगों, विशेषकर असंगठित क्षेत्र के छोटे उद्योगों को बिजली एवं सड़क उपलब्ध होने से उनकी हालत में सुधार हुआ है। गाड़ी में अच्छा मोबिल ऑयल डाला जाए तो गाड़ी सहज ही तेज चलने लगती है। इसी प्रकार अर्थव्यवस्था में गति आई है। उत्तराखंड में दैनिक मजदूर की दिहाड़ी 300 रुपए से बढ़कर 400 रुपए हो गई है, चूंकि बिहार से श्रामिक कम आ रहे हैं। बिहार में असंगठित क्षेत्र में सुधार होने से वहां के श्रमिकों के लिए पलायन करना आकर्षक नहीं रह गया है। राजग गठबंधन वाली सरकार की यह महान उपलब्धि है। इस उपलब्धि के बावजूद ग्रोथ रेट में गिरावट आई है। यूपीए-दो सरकार के 2010-14 के पांच वर्षों में हमारी औसत विकास दर 7.1 प्रतिशत थी जो कि 2015-17 के तीन वर्षों में घट कर 7.0 प्रतिशत रह गई है। अब सरकार भी कहने लगी है कि वर्तमान वर्ष में 7.0 प्रतिशत की दर को बनाए रखना कठिन होगा। दूसरे विश्लेषकों का मानना है कि विकास दर छह प्रतिशत के नजदीक रहेगी। मेरा अपना अनुमान है कि यह पांच प्रतिशत के नजदीक रहेगी। वास्तव में अर्थव्यवस्था की गिरती हालत नोटबंदी एवं जीएसटी का सीधा परिणाम है। इसमें कोई संशय नहीं है कि इन कदमों से तमाम लोग टैक्स के दायरे में आए हैं और आएंगे। परंतु टैक्स में वृद्धि से ग्रोथ होना जरूरी नहीं है। टैक्स की वृद्धि और अर्थव्यवस्था की दुर्गति दोनों साथ-साथ हो सकते हैं। टैक्स में वृद्धि का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव काफी हद तक राजस्व के उपयोग से निर्धारित होता है।

मान लीजिए किसी व्यक्ति की आय 10 लाख रुपए है। पूर्व में वह पांच लाख की आय को दिखाकर केवल 20,000 रुपए आयकर के रूप में जमा करता था। अब नोटबंदी तथा जीएसटी के कारण वह पूरी 10 लाख की आय को दिखाता है और इस पर 1,20,000 रुपए का आयकर जमा करता है। इस प्रक्रिया में करदाता 1,00,000 रुपए से गरीब हो गया और सरकार 1,00,000 रुपए से अमीर हो गई। रकम के हस्तांतरण का प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि निवेश कौन अधिक करता है। मान लीजिए करदाता दुकानदार है। उसकी योजना थी कि इस वर्ष वह अपनी दुकान में एयर कंडीशनर लगाएगा, जिससे ग्राहक ज्यादा आएंगे और उसका धंधा बढ़ेगा। नोटबंदी तथा जीएसटी के कारण उसकी आय में एक लाख रुपए की कटौती हुई और वह एयर कंडीशनर नहीं लगा पाया। दूसरी तरफ सरकार ने एक लाख रुपए की अतिरिक्त आय से राफेल युद्धक विमान खरीदे। इस खरीद में वह रकम देश से बाहर चली गई। इस परिस्थिति में नोटबंदी और जीएसटी का प्रभाव नकारात्मक होगा। ग्रोथ रेट गिरेगी, चूंकि दुकानदार का धंधा मंद पड़ा।

दूसरी परिस्थिति भी संभव है। मान लीजिए कोई अय्याश है। वह पूर्व में एक लाख रुपए की आयातित शराब पीता था। नोटबंदी तथा जीएसटी के कारण उसने आयातित शराब पीना कम कर दिया। दूसरी तरफ सरकार ने एक लाख रुपए की अतिरिक्त आय से झुग्गी में पक्की सड़क बनाई। झुग्गी में छोटे कारीगरों का धंधा बढ़ गया। ऐसे में ग्रोथ रेट बढ़ेगी, चूंकि खपत कम होगी और निवेश बढ़ेगा। वर्तमान में ग्रोथ रेट के गिरने का अर्थ है कि निवेश में कटौती हुई है और सरकार द्वारा खपत में वृद्धि हुई है। सरकार इस गणित को नहीं समझ रही है और राजस्व में वृद्धि को लेकर प्रसन्न है। इसलिए ग्रोथ रेट में गिरावट का यह क्रम जारी रहने की संभावना है। एक और चिंताजनक विषय रोजगार का है। लेबर ब्यूरो के अनुसार यूपीए-दो के प्रथम वर्ष 2009-10 में संगठित क्षेत्र में 17 लाख रोजगार बने थे, जबकि एनडीए सरकार के प्रथम वर्ष 2014-15 में केवल पांच लाख बने हैं। मेरे आकलन में रोजगार में ढिलाई का यह क्रम वर्तमान में जारी है। इस प्रकार हमारे सामने दो परस्पर विरोधी प्रभाव उपस्थित हैं। असंगठित क्षेत्र में सुधार हुआ है जैसा कि पलायन में कमी आने से दिखता है, जबकि संगठित क्षेत्र में रोजगार का संकुचन हुआ है। ग्रोथ रेट और संगठित क्षेत्र में रोजगार बढ़ाने की दोहरी चुनौती सरकार के सामने है। श्रम सुधार, सड़क बनाने और सुशासन से पर्याप्त सुधार नहीं हुआ है। मेरे आकलन में नोटबंदी तथा जीएसटी से असंगठित क्षेत्र की कठिनाइयां बढ़ेंगी। वर्तमान में बड़ी फैक्टरियों का माल एक राज्य से दूसरे राज्य को आसानी से नहीं पहुंच पाता है। जैसे नागपुर में स्थापित हल्दीराम का माल बिहार को आसानी से नहीं पहुंचता है। इससे बिहार की आलू चिप्स बनाने वाली लोकल इकाई को प्राकृतिक संरक्षण मिलता है। जीएसटी लागू होने से हल्दीराम का माल आसानी से बिहार पहुंचेगा और बिहार की आलू चिप्स इकाई की कठिनाई बढ़ेगी।

रेरा से भी रीयल एस्टेट के क्षेत्र मे मंदी आई है। गाजियाबाद के एक मध्यम श्रेणी के बिल्डर के अनुसार रीयल एस्टेट रेगुलेशन एंड डिवेलपमेंट एक्ट का प्रभाव बड़े बिल्डरों पर नहीं पड़ेगा, चूंकि उनके दफ्तरों मेें शिक्षित अधिकारियों की फौज उपस्थित है जो रेरा का अनुपालन सुनिश्चित कर सकते हैं। छोटे बिल्डरों पर रेरा की क्षमता सीमित है। रेरा के कारण रीयल एस्टेट का धंधा बड़े बिल्डरों के हाथ में जाएगा, जो मशीनों का अधिक उपयोग करते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में एनडीए सरकार को अपनी नीतियों पर पुनर्विचार करना चाहिए। वैश्विक रेटिंग एजेंसियों ने भारत की रेटिंग में सुधार न करने का एक प्रमुख कारण सरकारी बैंकों की खस्ता हालत बताई है। सरकार को चाहिए कि इन बैंकों का निजीकरण कर दे। इससे इन बैंकों को और पूंजी उपलब्ध कराने के भार से सरकार मुक्त हो जाएगी। हमारी वैश्विक रेटिंग भी सुधरेगी। बैंकों के विनिवेश से सड़क आदि में निवेश के लिए सरकार को भारी रकम भी मिल जाएगी। दूसरे, सरकारी कर्मियों की जवाबदेही को सख्त कदम उठाने चाहिएं। इनका बाहरी मूल्यांकन कराकर हर वर्ष अकुशलतम दस प्रतिशत को बर्खास्त कर देना चाहिए। ऐसा करने से सरकारी राजस्व की वसूली बढ़ेगी तथा सरकारी खर्च की गुणवत्ता सुधरेगी, हमारा वित्तीय घाटा कम होगा और सरकार पर चढ़ा हुआ ऋण कम होगा। रेटिंग एजेंसियों के अनुसार वर्तमान में ऋण दूसरी समस्या है। रेटिंग एजेंसियों के अनुसार वर्तमान में ऋण दूसरी समस्या है। इससे छुटकारा मिल जाएगा। तीसरी समस्या रोजगार की है। सरकार की दृष्टि बड़े उद्योगों पर है। इस मोह को छोड़ कर छोटे उद्योगों को संरक्षण दें तो छोटे संगठित क्षेत्र के छोटे उद्योगों द्वारा रोजगार बनाए जाएंगे, तब राजग सरकार प्रथम श्रेणी में पास होगी।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com

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