आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की महत्ता

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

उन स्किल्ज की भविष्य में ज्यादा जरूरत पड़ेगी, जो ‘सृजनात्मक हैं, सहभागिता आधारित हैं, जो विभिन्न तरह के वातावरण में कार्य कर सकती है, जो विभिन्न संस्कृतियों को समझ सकती हैं और जिनमें सामाजिक एवं भावनात्मक क्षमता है।’ ये क्षमताएं आर्ट्स से संबंधित हैं, जैसे भाषा, संस्कृति, पेंटिंग, कला, साहित्य आदि से। इन क्षेत्रों में कम्प्यूटर द्वारा प्रवेश कठिन है जैसे तुलसी की रामायण अथवा बाइबल को कम्प्यूटर शायद ही लिख सके। अतः हमें अपनी युवा पीढ़ी को आर्ट्स के विषयों का महत्त्व समझाना चाहिए…

वाणिज्य मंत्रालय ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर टास्क फोर्स गठित किया है। टास्क फोर्स सरकार को सलाह देगी कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भारतीय अर्थव्यवस्था में समावेश कैसे किया जाए। कम्प्यूटर द्वारा किए गए बौद्धिक कार्य को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कहा जाता है। जैसे वर्तमान में आपको न्यायालय में कोई वाद दायर करना हो, तो वकील साहब का जूनियर उस तरह के पूर्व में उच्च न्यायालय अथवा उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों का अध्ययन करता है। इसके बाद वकील साहब विचार करते हैं कि कौन से निर्णय हमारे लिए लाभकारी होंगे। जो निर्णय हमारे वाद के विपरीत दिखते हैं, उनकी काट में कौन से दूसरे निर्णय कोर्ट के सामने प्रस्तुत किए जा सकते हैं। तब तय होता है कि वाद दायर करने लायक है या नहीं। तमाम समतुल्य निर्णयों का अध्ययन करने का कार्य अब कम्प्यूटर द्वारा किया जा रहा है। आप कम्प्यूटर को बताएंगे कि आपकी समस्या क्या है। कम्प्यूटर कोर्ट के तमाम निर्णयों को खंगालेगा। इसके बाद आपको दो-चार निर्णय देगा, जो कि आपके पक्ष में होंगे और दो-चार ऐसे निर्णय देगा, जो आपके विपक्ष में होंगे। विपक्ष के निर्णयों की काट को दूसरे निर्णय बताएगा। इस रिसर्च के बाद आपके वकील के लिए वाद दायर करने में सहूलियत होगी।

कम्प्यूटर द्वारा किए गए इस बौद्धिक कार्य के रोजगार पर दो परस्पर विपरीत प्रभाव पड़ेंगे। सीधा नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा कि वकील साहब के जूनियर का रोजगार समाप्त हो जाएगा। पूर्व में वकील साहब जूनियर से उपरोक्त रिसर्च कराते थे, जो अब कम्प्यूटर कर देगा। लेकिन कम्प्यूटर की मदद से वाद सही ढंग से बन सकेंगे। अकसर देखा जाता है कि वकील को वाद के विपरीत निर्णयों की जानकारी नहीं होती है। कोर्ट में प्रस्तुत होने पर वाद खारिज कर दिया जाता है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के उपयोग से वादों में सफलता के प्रतिशत में सुधार होगा, लोगों का वाद दायर करने का साहस बढ़ेगा, वादों की संख्या में वृद्धि होगी और वकीलों के कुल रोजगार में भारी वृद्धि हो सकती है। रोजगार पर इसी तरह का सुप्रभाव बुनाई करने की मशीनों का पड़ा था। आज से 500 वर्ष पूर्व एक आविष्कारक इंगलैंड की महारानी एलिजाबेथ प्रथम के पास गए और स्वेटर की बुनाई करने की मशीन के आविष्कार का पेटेंट जारी करने का निवेदन किया। महारानी ने पेटेंट देने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि ‘मेरी उन गरीब महिलाओं और असंरक्षित कुंवारियों के प्रति अपार साहनुभूति है, जो कि बुनाई करके अपनी दैनिक रोटी अर्जित करती है। मैं ऐसे अविष्कार को नहीं बढ़ा सकती हूं, जो उन्हें उनकी जीविका से वंचित करके भुखमरी के द्वार लाकर खड़ा कर दे।’ महारानी द्वारा पेटेंट न दिए जाने के बावजूद बुनाई मशीनों का उपयोग बढ़ा। तमाम कुंवारियां बेरोजगार हो गईं, परंतु साथ-साथ बुनी हुई स्वेटर के दाम में भारी गिरावट आई। लोगों ने ज्यादा मात्रा में स्वेटर खरीदना चालू किया।

बुनाई की मशीनें बनाने, मशीनों की देखरेख करने, ज्यादा मात्रा में बने माल की पैकिंग एवं वितरण करने, मशीन से नई डिजाइन की स्वेटर बनाने इत्यादि में तमाम नए रोजगार बने। अंत में बुनाई मशीन का समाज एवं अर्थव्यवस्था पर सुप्रभाव पड़ा। जो कुंवारियां स्वेटर बुनकर अपनी दैनिक रोटी अर्जित करती थीं, वे अब स्कूल जाने लगीं। पढ़ कर वे मशीन पर डिजाइन करने का रोजगार प्राप्त करने लगीं। आम आदमी को स्वेटर की उपलब्धता भी बढ़ी। वर्तमान में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का प्रभाव कुछ ऐसा ही होगा। एक तरफ वकील के जूनियर का रोजगार समाप्त होगा, तो दूसरी तरफ कोर्ट में दायर किए जा रहे वादों की संख्या में वृद्धि होगी। अधिक संख्या में लोगों को न्याय मिलेगा और समाज खुशहाल होगा। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का सामना करने के लिए हमें युवाओं को उन रोजगारों को हासिल करने के लिए सक्षम बनाना होगा, जो कि कम्प्यूटर के उपयोग के बाद भी बनते रहेंगे। जैसे ऑनलाइन ट्यूटोरियल को कतिपय कम्प्यूटर से छात्र हासिल कर सकता है, परंतु बच्चों को नर्सरी स्कूल में शिक्षा कम्प्यूटर से कम ही दी जा सकेगी। छोटे बच्चे नर्सरी में जाने पर रोते हैं। उन्हें मां का प्यार चाहिए, जो कम्प्यूटर कम ही दे सकता है। इसलिए हमें दोनों स्तर पर कार्य करना होगा। एक तरफ अपने युवाओं को ऑनलाइन ट्यूटोरियल के सॉफ्टवेयर बनाने की टे्रनिंग देनी होगी, जिससे वे उत्तम गुणवत्ता का सॉफ्टवेयर बना सकें और जीविकोपार्जन कर सकें। दूसरी तरफ नर्सरी शिक्षा की टे्रनिंग देनी होगी, चूंकि अधिकाधिक संख्या में अभिभावकों द्वारा बच्चे को नर्सरी स्कूल में भेजा जाएगा। इसी तरह स्वास्थ्य के क्षेत्र में ऑनलाइन सलाह उपलब्ध हो सकती है। ऐसा सॉफ्टवेयर संभवतः बनाया जा सकता है, जिसमें आप अपनी बीमारी का पूरा विवरण दर्ज करें जैसे बुखार, बीपी, शुगर, खांसी की अवधि, पसीना आना इत्यादि। इसके बाद सॉफ्टवेयर द्वारा आपसे कुछ पूरक प्रश्न पूछे जा सकते हैं। इनका जवाब देने के बाद कम्प्यूटर आपको पर्चा लिख कर दे सकता है। ऐसा सॉफ्टवेयर बनने से लोगों को मेडिकल सलाह सस्ते में उपलब्ध हो सकती है। उन्हें स्वास्थ्य लाभ होगा और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा। इस क्षेत्र में भी दो तरह से अपने युवाओं को टे्रनिंग देने की जरूरत है। उन्हें मेडिकल सलाह देने के सॉफ्टवेयर लिखने की टे्रनिंग देनी चाहिए। मेरे एक मित्र के बेटे ने गोल्फ के खिलाडि़यों को सलाह देने का सॉफ्टवेयर बनाया है। खिलाड़ी को अपने स्ट्रोक की विडियो सॉफ्टवेयर में लोड करनी होती है। सॉफ्टवेयर विश्लेषण करके बताता है कि स्ट्रोक को कैसे सुधारा जा सकता है। इसी प्रकार बीमारियों के विश्लेषण के सॉफ्टवेयर लिखे जा सकते हैं। बीमारियों का उपचार अलग-अलग क्षेत्रों में अलग पद्धतियों से किया जाता है। अतः तमाम बीमारियों, तमाम उपचार पद्धतियों एवं तमाम भौगोलिक क्षेत्रों के लिए अलग-अलग सॉफ्टवेयर लिखे जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य के क्षेत्र में ही तमाम ऐसे कार्य हैं, जो संभवतः कम्प्यूटर द्वारा कभी न किए जा सकें। जैसे फिजियोथैरेपी कराना, पंचकर्म का उपचार करना इत्यादि।

कुछ क्षेत्र हैं, जिनमें कम्प्यूटर द्वारा सुविधाएं शायद कभी भी उपलब्ध न कराई जा सकें। वाशिंगटन पोस्ट अखबार ने इस विषय पर कुछ विशेषज्ञों से बातचीत की। उन्होंने सुझाया कि उन स्किल्ज की भविष्य में ज्यादा जरूरत पडं़ेगी, जो ‘सृजनात्मक हैं, सहभागिता आधारित हैं, जो विभिन्न तरह के वातावरण में कार्य कर सकती है, जो विभिन्न संस्कृतियो को समझ सकती हैं और जिनमें सामाजिक एवं भावनात्मक क्षमता है।’ ये क्षमताएं आर्ट्स से संबंधित हैं, जैसे भाषा, संस्कृति, पेंटिंग, कला, साहित्य आदि से। इन क्षेत्रों में कम्प्यूटर द्वारा प्रवेश कठिन है जैसे तुलसी की रामायण अथवा बाइबल को कम्प्यूटर शायद ही लिख सके। अतः हमें अपनी युवा पीढ़ी को आर्ट्स के विषयों के महत्त्व को समझाना चाहिए। भारत सरकार द्वारा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर टास्क फोर्स बनाए जाने का स्वागत है। जरूरत है कि इस उभरते क्षेत्र के प्रति हम सकारात्मक रुख अपनाएं। विशेषकर उन सेवाओं पर ध्यान दें, जो कम्प्यूटर द्वारा उपलब्ध नहीं कराई जा सकेंगी। आर्ट्स और कम्प्यूटर के जोड़ से नए क्षेत्रों में युवा रोजगार हासिल कर सकेंगे। इस दिशा में टास्क फोर्स सोचे।

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