बनी रहे चुनाव आयोग की स्वायत्तता

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

हाल ही में मुख्य चुनाव आयुक्त अचल कुमार ज्योति ने केवल हिमाचल के लिए चुनाव तिथियों की घोषणा की तथा कोई यह नहीं जानता कि गुजरात के लिए चुनाव तिथियां कब घोषित की जाएंगी। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी की टिप्पणी ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। उनका यह कहना उचित ही है कि जिन राज्यों में छह माह में विधानसभा की अवधि पूरी होने वाली थी, वहां के लिए एक साथ चुनाव घोषित करने की परंपरा थी, जिसे तोड़ना ठीक नहीं है…

चुनाव आयोग ने ऐसा पहले कभी नहीं किया तथा टीएन शेषन के समय उसने स्वतंत्र दर्जा हासिल कर लिया था। उसने एक वैधानिक दर्जा हासिल किया, जिसकी निर्वाचकों ने प्रशंसा की। लेकिन इस बार जिस तरह वह गुजरात में चुनाव तिथियां घोषित करने में देरी कर रहा है, उससे कई अटकलें पैदा हो गई हैं। इसमें कुछ लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हाथ भी देख रहे हैं, जो स्वयं गुजरात से हैं। अब लोगों को चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर संदेह होने लगा है। गुजरात विधानसभा की समय अवधि 22 जनवरी, 2018 को खत्म हो रही है, जबकि हिमाचल विधानसभा की अवधि सात जनवरी, 2018 को खत्म हो जाएगी।

पिछले हफ्ते मुख्य चुनाव आयुक्त अचल कुमार ज्योति ने केवल हिमाचल के लिए चुनाव तिथियों की घोषणा की तथा कोई यह नहीं जानता कि गुजरात के लिए चुनाव तिथियां कब घोषित की जाएंगी। इससे एक विवाद पैदा हो गया है, जिससे बेहतर प्रबंधन के जरिए बचा जा सकता था। पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी की टिप्पणी ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। उनका यह कहना उचित ही है कि जिन राज्यों में छह माह में विधानसभा की अवधि पूरी होने वाली थी, वहां के लिए एक साथ चुनाव घोषित करने की परंपरा थी, जिसे तोड़ना ठीक नहीं है। मुख्य चुनाव आयुक्त एके ज्योति का कहना है कि गुजरात में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में पुनर्वास कार्यों की गति जारी रखने के लिए अभी वहां चुनाव घोषित नहीं किए गए हैं। उनका यह तर्क किसी के भी गले नहीं उतर रहा है, क्योंकि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त टीएस कृष्णामूर्ति का कहना है कि बाढ़ राहत कार्य नौकरशाहों द्वारा किए जाते हैं, न कि राजनेताओं के द्वारा। आधुनिक आचार संहिता किसी भी तरह के आपातकालीन राहत कार्यों में बाधा पैदा नहीं करती है। वर्तमान में चल रही परियोजनाओं को जारी रखने पर यह कोई प्रतिबंध नहीं लगाती है।

मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट (एमसीसी) पीरियड के दौरान केवल नई परियोजनाओं की घोषणा नहीं की जा सकती। एमसीसी एक आम संहिता है, जिसका लक्ष्य सत्तारूढ़ सरकार, राजनीतिक दलों व प्रत्याशियों के आचरण को निर्देशित करते हुए चुनाव लड़ रहे सभी उम्मीदवारों को समान अवसर उपलब्ध करवाना है। कृष्णामूर्ति ने एक अखबार से कहा कि इस पूरे विवाद से बेहतर प्रबंधन करके बचा जा सकता था। उनका मानना है कि गुजरात तथा हिमाचल प्रदेश के लिए एक साथ चुनाव तिथियां घोषित की जा सकती थीं, चाहे यह एक हफ्ते पहले किया जाता अथवा एक हफ्ते बाद। उन्होंने कहा कि मैं यह नहीं देख रहा हूं कि यह फैसला प्रभावित किया गया अथवा नहीं। मुझे बस चिंता यह है कि प्रशासनिक ढंग से इस मसले का समाधान हो सकता था। अगर मैं होता तो मैंने इसका समाधान कर लिया होता।  पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त की इस राय ने चुनाव आयोग के सामने एक सवाल खड़ा कर दिया है। यह संदेह भी पुख्ता होता है कि चुनाव आयोग का संचालन केंद्र सरकार के निर्देशन में नौकरशाहों द्वारा किया जा रहा है। इससे चुनाव आयोग की छवि व ख्याति को क्षति पहुंची है। इस संदर्भ में कुछ उदाहरण लेते हैं कि राज्य में चुनाव तिथियों की घोषणा से गुजरात सरकार की आशाएं क्या थीं। मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने 780 करोड़ की विकास परियोजनाओं के उद्घाटन किए। इसके अलावा श्रीश्री रविशंकर के दिवाली इवेंट को सेवाओं के रूप में मदद पहुंचाई गई।

यही नहीं, अहमदाबाद नगर परिषद ने शहरी गरीब कल्याण मेला लगाया, जिसमें सरकार की कृपा प्राप्त करते हुए मानव गरिमा योजना के तहत चेक, फंड व बांड समेत 3262 किटें बांटी गईं। इसके तहत सिलाई मशीनें, बरतन, ट्राई साइकिल, डेयरी उत्पाद, स्ट्रीट वेंडिंग कार्ट्स व अन्य घरेलू सामान बांटा गया। इन सबका कुल मूल्य 165 करोड़ रुपए आंका गया है। इसके अलावा विद्यालक्ष्मी बांड्स के रूप में छात्राओं को दो हजार रुपए, नसबंदी के लिए अभिभावकों को पांच हजार रुपए, रिवाल्विंग फंड के रूप में 10 हजार रुपए तथा अंतरजातीय विवाह के रूप में 50 हजार रुपए दिए गए।

इसके अलावा माही नदी से एक शहर को पेयजल उपलब्ध करवाने के लिए 165 करोड़ रुपए मंजूर किए गए तथा सुरसागर झील के सौंदर्यीकरण को 38 करोड़ रुपए दिए गए। केंद्रीय मंत्रियों तथा भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने सरकारी योजनाओं की प्रशंसा की। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी जल्द ही राज्य का दौरा किया और नेहरू-गांधी परिवार पर हमला बोलते हुए अपना चुनावी अभियान शुरू किया। उन्होंने यह बोलना जारी रखा कि यह परिवार गुजरात को तबाह कर देगा, क्योंकि यह गुजरात तथा गुजरातियों को नापसंद करता है। उन्होंने गुजरात के आगामी विधानसभा चुनाव को विकास व परिवारवाद के बीच जंग का नाम दिया। यहां फिर पुराना सवाल उठता है कि क्या नौकरशाहों को आयोग का सदस्य बनाया जाना चाहिए? वे केंद्र सरकार के नियंत्रण में काम करते हैं तथा उन्हें प्रभावित किया जा सकता है। हालांकि टीएन शेषन इस मामले में एक अपवाद रहे हैं, लेकिन सभी नौकरशाह शेषन की तरह नहीं हो सकते। सरकार का प्रभाव अपरिहार्य है। सभी को वह राजनीतिक तूफान याद होगा, जब पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एन गोपालस्वामी ने सू मोटो लेते हुए राष्ट्रपति से सिफारिश की थी कि चुनाव आयुक्त नवीन चावला को पाक्षिक होने के कारण पद से हटा दिया जाना चाहिए। गोपालस्वामी की इस कार्रवाई से समय को लेकर सरकार के भीतर कइयों की भौंहें तन गई थीं। तब चावला को सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त बनाने की सिफारिश की थी। उसने चावला को चुनाव आयुक्त के पद से हटाने की गोपालस्वामी की सिफारिश को इस आधार पर निरस्त कर दिया था कि लगाए गए आरोपों में कोई दम नहीं है। चुनाव आयुक्त की नियुक्ति पर उठा शोर अनदेखा नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह एक संवैधानिक पद है।

सरकार को स्वयं सतर्क रहना चाहिए तथा उसे ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए, जिससे आयोग की स्वतंत्रता व गौरव पर प्रतिकूल असर पड़े। आयोग को स्वयं भी इस तरह काम करना चाहिए कि विवाद को कोई जगह न मिल पाए। स्थिति को सुधारने के लिए अभी भी वक्त है। चुनाव आयोग को अपनी निष्पक्षता पर उठे सवाल को सुलझाते हुए गुजरात के लिए सीधे चुनाव तिथियों की घोषणा करनी चाहिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्थिति को संभाल सकते हैं तथा यह सुनिश्चित बना सकते हैं कि आयोग तुरंत चुनाव तिथियों की घोषणा करे। गुजरात चुनाव की तिथियों के मामले में वह अनावश्यक रूप से संलग्न हो गए हैं।

ई-मेलः kuldipnayar09@gmail.com