शिवा के अनुभव का लाभ ले हिमाचल

भूपिंदर सिंह

राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

अब तक शिवा केशवन एशियाई स्तर पर चार स्वर्ण, चार रजत व दो कांस्य पदक देश के लिए जीत चुके हैं। अब समय आ गया है जब शिवा केशवन जैसे अनुभवी वरिष्ठ खिलाडि़यों का प्रशिक्षण अनुभव हमारे होनहार किशोर व युवा खिलाडि़यों को मिले…

आधुनिक ओलंपिक खेलों की शुरुआत 1896 में रोम के एथेंस शहर से हुई। हर चार वर्ष बाद ये खेल आयोजित होते आ रहे हैं। 1964 में शीतकालीन बर्फ की खेलों के लिए भी आस्ट्रिया के शहर इन्नस ब्रुक में पहले शीतकालीन ओलंपिक खेलों की शुरुआत हुई। 1992 तक ये खेल भी ओलंपिक बर्फ में आयोजित होते रहे, मगर पहली बार 1994 में इन खेलों को अलग आयोजित किया। 1998 के शीतकालीन ओलंपिक खेल जापान के नागानों में आयोजित हुए। इन खेलों में पहली बार ल्यूज स्पर्धा में भारत की ओर से 16 वर्ष के शिवा केशवन ने भाग लिया। आज तक शीतकालीन ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाला यह विश्व का सब से कम उम्र का खिलाड़ी है। मनाली में बसे केरल मूल के पिता व इटली मूल की मां से जन्मे शिवा की शिक्षा 1991 से लेकर 1999 तक लोरेंस सनावर में हुई। इसके बाद खेल वजीफे पर शिवा इटली के फ्लोरेंस विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र की पढ़ाई के लिए दाखिल हुआ। 2000 से 2003 तक स्नातक तथा 2003 से लेकर 2006 तक स्नातकोत्तर डिग्री अंतरराष्ट्रीय संबंधों में प्राप्त की। इसी समय में फ्लोरेंस विश्वविद्यालय के उपकरणों से उसने ल्यूज में प्रशिक्षण को धार दी। 2002, 2006 के ओलंपिक में भागीदारी के साथ-साथ 2005 की एशियाई ल्यूज प्रतियोगिता में पहली बार शिवा ने भारत के लिए पहला पदक तीसरी स्थान पर आकर जीता था तथा एशियाई ल्यूज प्रतियोगिता 2009 में रजत पदक जीतकर सुधार किया। 2010 के शीतकालीन ओलंपिक खेलों में चौथी बार क्वालिफाई कर शिवा ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। 2011 में पहली बार शिवा ने एशियाई ल्यूज में भारत को स्वर्ण पदक जीता। 2012 में फिर दूसरी बार एशियाई कीर्तिमान बनाकर शिवा ने 134.3 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता। 2014 के शीतकालीन ओलंपिक में पांचवीं बार भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए अब तक शिवा केशवन एशियाई स्तर पर चार स्वर्ण, चार रजत व दो कांस्य पदक देश के लिए जीत चुके हैं।

इस वर्ष दिसंबर के पहले सप्ताह में आयोजित एशियाई ल्यूज प्रतियोगिता में भी शिवा ने स्वर्ण पदक जीता है। जापान के तानाका शोहेई दूसरे स्थान पर रहे हैं। पिछली विश्व ल्यूज प्रतियोगिता में धन की कमी के कारण शिवा भाग नहीं ले पाया। ओलंपिक की तैयारी के लिए भी शिवा केशवन प्रायोजक तलाशता नजर आया है। हिमाचल सरकार को भी शिवा की आर्थिक मदद करनी चाहिए। राज्य की प्रतिभाओं  को उचित मंच पर सही प्रशिक्षण की बेहद जरूरत है। प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने के ईमानदार प्रयास कागजों की जगह हकीकत में जमीन पर होने चाहिएं। हिमाचल के  चंबा, कुल्लू, लाहुल-स्पीति, मंडी का ऊपरी क्षेत्र शिमला व किन्नौर, जहां बर्फ कई महीनों तक पड़ी रहती है, वहां बर्फ की खेलों के लिए जगह तलाशनी होगी। अब समय आ गया है जब शिवा केशवन जैसे अनुभवी वरिष्ठ खिलाडि़यों का प्रशिक्षण अनुभव हमारे होनहार किशोर व युवा खिलाडि़यों को मिले। इसके साथ ही हमें आकर्षक अनुबंध पर प्रशिक्षकों को अनुबंधित कर भविष्य के लिए अपने प्रशिक्षकों को तैयार करना होगा। शिवा 2009 में 50 युवाओं के लिए कैंप लगाकर उन्हें कनिष्ठ राष्ट्रीय प्रतियोगिता में प्रतिनिधित्व कराकर दस को जापान में भी प्रशिक्षण दिला चुके हैं। 2012 में अर्जुन अवार्ड तथा इसी वर्ष 2012 में हिमाचल के सबसे बड़े खेल पुरस्कार परशुराम अवार्ड से सम्मानित शिवा केशवन 2018 ओलंपिक, जो नौ से 25 फरवरी को दक्षिण कोरिया के शहर प्योंग चैंग में आयोजित होने जा रहा है। पदक विजेता प्रदर्शन कर प्रदेश में देश को गौरव प्रदान करेगा। यही अपेक्षा हर खेल प्रेमी रखता है। भारत का राष्ट्रीय पर्वतारोहण संस्थान मनाली में है। इसकी सारी की सारी गतिविधियां केंद्रीय खेल मंत्रालय के अंतर्गत आती हैं। केंद्र सरकार यदि शीतकालीन खेलों के लिए आधारभूत ढांचा विकसित करने के साथ इसमें प्रयुक्त होने वाले महंगे उपकरणों की व्यवस्था कर दे, तो शिवा हिमाचली युवाओं को भविष्य में प्रशिक्षित कर सकते हैं। 2001 में धूमल सरकार द्वारा बनाई गई खेल नीति में भी साहसिक व शीतकालीन खेलकूद गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए विशेष प्रावधान रखे हैं। इस नीति के आधार पर राज्य सरकार प्रदेश में बर्फ की खेलों के लिए आधारभूत ढांचा खड़ा कर सकती है। जहां दूसरे खेलों के दर्जनों प्रशिक्षक नियुक्त हैं, हिमाचल सरकार भी प्रशिक्षक नियुक्त कर प्रशिक्षण जारी करवा सकती है। हिमाचल में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है। रिकार्ड छह बार ओलंपिक जैसे संसार की सबसे बड़ी खेल प्रतियोगिता के लिए क्वालिफाई कर शिवा केशवन ने एक बार फिर से इस हकीकत को साबित कर दिया है। खेल प्रशिक्षण या तैयारी के लिए दूसरी सुविधाओं के बंदोबस्त यदि प्रदेश सरकार कर दे, तो कई प्रतिभाएं प्रदेश का नाम चमका सकती हैं। इसके साथ-साथ राज्य के अमीर शिक्षा संस्थानों तथा व्यापारिक घरानों को भी हिमाचली प्रतिभाओं को निखारने के लिए आगे आना चाहिए, ताकि इस बर्फ के प्रदेश के लोग भी बाहर निकलकर विश्व में अपनी तथा पहाड़ की पहचान कायम कर सकें।

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