तेल कीमतें ऊंची ही रहने दें

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

पेट्रोल पर ऊंचे कर बनाए रखने से ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों का विकास होगा। जैसे बिजली से चलने वाली कार की तुलना में पेट्रोल से चलने वाली कार सस्ती होती है। पेट्रोल सस्ता होगा तो लोग पेट्रोल की कार ही खरीदेंगे, चूंकि ईंधन और कार दोनों ही सस्ते हैं। लोग मेट्रो से भी कम यात्रा करेंगे, चूंकि निजी कार से यात्रा करना आसान होगा। इसके विपरीत यदि पेट्रोल महंगा होगा, तो लोग इलेक्ट्रिक कार खरीदेंगे या मेट्रो में ज्यादा यात्रा करेंगे…

जनवरी, 2016 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का दाम 27 डालर प्रति बैरल था। यह आज बढ़कर लगभग 70 डालर हो गया है। मेरे आकलन में आने वाले समय में तेल के दाम ऊंचे बने रहेंगे। अमरीका में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, मनुष्य का डीएनए तथा अंतरिक्ष से वापस आने वाले जहाज जैसे नए आविष्कार हो रहे हैं। इससे अमरीका के साथ-साथ संपूर्ण विश्व अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी। तेल की मांग तथा दाम बढ़ेंगे। पूर्व में जब तेल के दाम में वृद्धि हुई है, तो केंद्र सरकार ने इस पर लागू करों में कटौती की थी, जिससे जनता पर अतिरिक्त बोझ न पड़े। करों में कटौती की मांग फिर उठने लगी है। सुझाव है कि सरकार को करों में कटौती नहीं करनी चाहिए और तेल के ऊंचे दाम को जनता को स्वीकार करना चाहिए। इस सुझाव के पीछे पांच कारण हैं।

तेल पर कर कम करने का अर्थ होगा कि दूसरी किसी वस्तु पर कर बढ़ाया जाए। तेल पर कर घटाने से सरकार को राजस्व कम मिलेगा। इसकी भरपाई के लिए सरकार द्वारा कपड़े या रेल यात्रा पर कर बढ़ाया जाएगा। जनता को कर तो उतना ही देना है। तय सिर्फ यही करना है कि यह डीजल या पेट्रोल पर अदा किया जाए अथवा कपड़े पर। जाहिर है कि जिस माल पर कर ज्यादा अदा किया जाएगा, उसका दाम बढ़ेगा और खपत गिरेगी। अतः जनता को तय करना है कि वह पेट्रोल की खपत अधिक करना चाहेगी या कपड़े की। पेट्रोल की खपत कम ही गुणकारी है, चूंकि इसके विकल्प उपलब्ध हैं जैसे बस अथवा मेट्रो से यात्रा करना। साइकिल से भी गंतव्य तक पहुंचा जा सकता है। पेट्रोल की खपत उच्च वर्ग के लोग ज्यादा करते हैं। तुलना में कपड़ा जरूरी वस्तु है। इसका विकल्प नहीं है और यह आम आदमी द्वारा प्रचुर मात्रा में खरीदा जाता है, इसलिए कपड़े पर कर बढ़ाना उचित नहीं है। इसके विपरीत पेट्रोल महंगा हो तो चलेगा।

पेट्रोल पर ऊंचे कर बनाए रखने से ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों का विकास होगा। जैसे बिजली से चलने वाली कार की तुलना में पेट्रोल से चलने वाली कार सस्ती होती है। पेट्रोल सस्ता होगा तो लोग पेट्रोल की कार ही खरीदेंगे, चूंकि ईंधन और कार दोनों ही सस्ते हैं। लोग मेट्रो से भी कम यात्रा करेंगे, चूंकि निजी कार से यात्रा करना आसान होगा। इसके विपरीत यदि पेट्रोल महंगा होगा, तो लोग इलेक्ट्रिक कार खरीदेंगे या मेट्रो में ज्यादा यात्रा करेंगे। इलेक्ट्रिक कार को चलाने के लिए सौर अथवा परमाणु ऊर्जा का उपयोग किया जा सकता है। इलेक्ट्रिक कार का उपयोग बढ़ेगा तो देश में ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाना होगा। मेरी समझ से सौर ऊर्जा तथा वीरान क्षेत्रों में परमाणु ऊर्जा संयंत्र लगाना पेट्रोल से अच्छा है। पेट्रोल सस्ता होगा तो सौर तथा परमाणु ऊर्जा का विकास कम होगा जो कि तुलना में साफ होती है। यहां मैं यह कहना चाहूंगा कि बायोमास एवं जल विद्युत को मैं अच्छा नहीं समझता हूं।

जटरोपा जैसी फसलों से ईंधन तेल बनाने में बाजरा तथा रागी का उत्पादन कम होगा और हमारी खाद्य सुरक्षा प्रभावित होगी। जलविद्युत के तमाम पर्यावरणीय दुष्प्रभाव होते हैं जैसे मछलियों का संकुचन, मीथेन उत्सर्जन, तटवर्ती क्षेत्रों का कटाव इत्यादि। हमारी संस्कृति में नदी को माता का दर्जा दिया जाता है। तो क्या माता को जलविद्युत के उत्पादन के लिए बैल की तरह जोता जाएगा? अतः तेल के बढ़ते दाम को स्वीकार करने से सौर ऊर्जा और परमाणु ऊर्जा का विकास होगा, जो कि हमारे लिए उपयुक्त है। तेल पर कर बढ़ाए रखने से अर्थव्यवस्था भी सुरक्षित रहेगी। हमारे आयातों में तेल का हिस्सा लगभग 30 प्रतिशत है। इस समय हमारे निर्यात कम और आयात अधिक हैं। निर्यातों से हम कम डालर अर्जित कर रहे हैं, जबकि आयातों के लिए हमें अधिक डालर की जरूरत है। डालर के इस अंतर को हम विदेशी निवेश लेकर पाटने का प्रयास कर रहे हैं।

विदेशी निवेश का बड़ा हिस्सा गैर जरूरी वस्तुओं जैसे आलू चिप्स के उत्पादन को आ रहा है। विदेशी निवेशकों का उद्देश्य लाभ कमाना होता है। वे लाभ कमा कर हमारे देश से रकम अपने मुख्यालय को भेजते हैं। मेरे जैसे कुछ अर्थशास्त्रियों का मत है कि लंबे समय में लाभ का यह प्रेषण मेजबान अर्थव्यवस्था के लिए हानिप्रद होता है। अतः समीकरण इस प्रकार बनता है-पेट्रोल पर कर में कटौती यानी पेट्रोल के दाम न्यून। पेट्रोल की खपत ज्यादा यानी पेट्रोल का आयात ज्यादा। डालर की जरूरत ज्यादा यानी विदेशी निवेश ज्यादा। लाभ का प्रेषण ज्यादा यानी अर्थव्यवस्था को हानि। इस हानि का दूसरा नाम हमारी संप्रभुता का स्वाहा होना है। जैसे आज अपने देश की आर्थिक नीतियां वाशिंगटन में विश्व बैंक द्वारा निर्धारित की जा रही हैं, चूंकि हम विदेशी निवेशकों के पीछे भाग रहे हैं। तेल की खपत से हमारी संप्रभुता खतरे में पड़ती है। तेल की खपत में कार्बन उत्सर्जन होता है। तेल में निहित कार्बन जब जलता है, तो वायु में उपलब्ध आक्सीजन में मिलकर कार्बन डाइआक्साइड गैस बनाता है। यह पर्यावरण के लिए हानिप्रद होती है। कार्बन डाइआक्साइड की अधिकता से श्वास लेने में कठिनाई होती है। सिंगरौली जैसे स्थानों पर थर्मल बिजली का उत्पादन ज्यादा होता है। यहां कोयला बड़ी मात्रा में जलाया जाता है और कार्बन उत्सर्जन ज्यादा होता है। यहां लोगों को तमाम रोग ज्यादा होते हैं-विशेषकर श्वास से संबंधित। कहना न होगा कि तेल की अधिक खपत से यह दुष्प्रभाव सर्वव्यापी होता जा रहा है।

तेल की अधिक खपत से धरती का तापमान बढ़ता है। सौर ऊर्जा से ऐसा नहीं होता है। सूर्य की ऊर्जा राजस्थान के रेगिस्तान और हवा को गर्म करती है। सोलर पैनल के माध्यम से उसी ऊर्जा को एयर कंडीशनर में डाला जाता है और वह एयर कंडीशनर से गर्म हवा के रूप में निकलती है। दोनों स्थितियों में ऊर्जा सूर्य से मिलती है और गर्म हवा के रूप में परिणित हो जाती है। धरती का तापमान पूर्ववत रहता है। यूं समझें कि बाल्टी से पानी सीधे जमीन पर डाला गया अथवा नहाते समय। इसके विपरीत तेल की खपत से तापमान बढ़ता है और तूफान तथा बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं ज्यादा आती हैं, जो कि कष्टप्रद होती हैं। इन सभी कारणों से सरकार को चाहिए कि तेल के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दामों के चलते टैक्स की दरों को न घटाए, बल्कि हो सके तो इसे और बढ़ाए। सस्ते पेट्रोल के स्थान पर आम आदमी को सस्ता कपड़ा उपलब्ध कराना चाहिए और च्यवनप्राश खिलाना चाहिए।

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