विभाजन को नेहरू-पटेल जिम्मेदार नहीं

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

दुर्भाग्य से हिंदुओं में यह भावना पक्की होती जा रही है कि उनका देश में बहुमत है तथा ऐसी प्रणाली अपनाई जानी चाहिए जो हिंदुत्व को पोषित करे। कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के पंथनिरपेक्ष चेहरे तथा आजादी के बाद पहले पांच दशकों में चले शासन को याद कर सकता है। लेकिन आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत अलग ही नजरिया प्रचारित करते हैं। फारूख अब्दुल्ला को विभाजन के लिए नेहरू व पटेल को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए…

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री व नेशनल कान्फ्रेंस नेता फारूख अब्दुल्ला के इस बयान में आंशिक सच्चाई है कि मोहम्मद अली जिन्ना विभाजन के लिए जिम्मेदार नहीं थे। लेकिन फारूख तब गलत हो जाते हैं, जब वह इसके लिए जवाहर लाल नेहरू व सरदार वल्लभ भाई पटेल को जिम्मेदार ठहराते हैं। मैं उस युग का चश्मदीद गवाह रहा हूं और इसी कारण उस दौरान हुए घटनाक्रम को लेकर मेरी समझ विकसित हो पाई। जिन्ना हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे, जैसा कि एक बार कांग्रेस की बड़ी नेता सरोजिनी नायडू ने भी कहा था। यह बात स्पष्ट है कि हिंदू और मुसलमानों के बीच मतभेद 1940 तक इस कद्र बढ़ चुके थे कि विभाजन जैसी कोई चीज अपरिहार्य हो गई थी। जिन लोगों को आज भी विभाजन का पछतावा है, उन लोगों को मैं केवल यह कहना चाहूंगा कि ब्रिटिश सरकार इस उपमहाद्वीप को एक बनाए रखने में सफल हो गई होती अगर वह 1942 में, जब सर स्टैफर्ड क्रिप्स ने भारत के लोगों की अपेक्षाओं से सामंजस्य बैठाने की कोशिश की थी, केंद्र को ज्यादा शक्तियां देने से इनकार कर देती। कांग्रेस पार्टी भी यह करने में सफल हो गई होती अगर उसने 1946 के कैबिनेट मिशन, जिसने केंद्र की सीमित शक्तियों का प्रस्ताव किया था, को स्वीकार कर लिया होता। ऐसी स्थिति में उन शक्तियों के अलावा सभी शक्तियां राज्यों को मिल जातीं, जो केंद्र को दे दी जाती। जिन्ना ने कैबिनेट मिशन प्लान को स्वीकार कर लिया था। किंतु इतिहास के अगर-मगर सबसे अच्छे कल्पनात्मक और सबसे बुरे विषयपरक हैं। क्या विभाजन ने मुसलमानों का उद्देश्य पूरा किया है? इसके बारे में मैं कुछ नहीं जानता। पाकिस्तान में लोग विभाजन शब्द से बचते नजर आते हैं। 14 अगस्त को उन्होंने जो आजादी मनाई, वह ब्रिटिश हुकूमत से स्वतंत्रता की प्रतीक कम थी, जबकि हिंदू राज के डर से स्वतंत्रता की प्रतीक अधिक थी। जब-जब मैंने पाकिस्तान का दौरा किया है, तो लोग मुझे यह कहते हुए सुनाई दिए कि अलग देश पाकर वह कम से कम इतने खुश हैं कि उनके पास सुरक्षित महसूस होकर रहने के लिए एक स्थान तो है। एक ऐसा स्थान जो हिंदू आधिपत्य अथवा हिंदू आक्रामकता से मुक्त है। इसके बावजूद मैं सोचता हूं कि मुसलमानों को विभाजन का सबसे बड़ा घाटा हुआ क्योंकि वे अब तीन देशों अर्थात भारत, पाकिस्तान व बांग्लादेश में बंटे हुए हैं। उस प्रभाव की कल्पना करें जबकि उनकी जनसंख्या व वोट अविभाजित हिंदुस्तान में कमांड कर रहे होते। वे कुल जनसंख्या के एक-तिहाई से अधिक होते। सबसे बुरी बात यह है कि दोनों देशों के बीच धर्म के आधार पर एक रेखा खींच दी गई है। यह दोनों देशों के बीच शत्रुता के भाव को कायम रखेगी तथा दोनों ओर हथियारों की होड़ लगी रहेगी।

दोनों देशों के बीच 1965 व 1971 में पहले ही दो लड़ाइयां हो चुकी हैं। इसके अलावा भी वे झगड़ते रहते हैं तथा लोगों के पास शांति से जीने का कोई अवसर नहीं है। मैं इस उपमहाद्वीप के पुनएर्कीकरण की नहीं सोचता हूं। लेकिन मुझे यह विश्वास है कि एक दिन ऐसा जरूर आएगा कि शत्रुता व अविश्वास को पैदा करने वाली दीवार एक दिन ढहेगी तथा दोनों ओर के लोग अपनी अलग पहचान को बनाए रखते हुए साझा अच्छाई के लिए काम करेंगे। 70 साल पहले पाकिस्तान के सियालकोट कस्बे में स्थित अपने घर को जब मैंने छोड़ा था, तब से लेकर मेरा यह विश्वास है। दोनों देशों के बीच शत्रुता व घृणा से उत्पन्न जो खाई है, उसे मैं विश्वास के इसी तिनके के सहारे पाटने की कोशिश करता रहा हूं। एक बार कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना उस लॉ कालेज में आए, जहां मैं अंतिम वर्ष का छात्र था। उन्होंने अपने आम मसले को व्यक्त करते हुए कहा कि हिंदू-मुसलमान दो राष्ट्र हैं और वे तभी सुखी व सुरक्षित रह सकते हैं अगर अलग-अलग देशों में रहें। एक देश में हिंदुओं का आधिपत्य होगा, जबकि दूसरे में मुसलमानों का। मुझे यह पता नहीं है कि उनका यह विश्वास अथवा विचार क्यों बना कि अगर दोनों समुदाय अलग-अलग रहेंगे, तो दोनों ही सुखी रहेंगे। उस समय मैंने जो सवाल उनसे किया था, वह यह था कि वह इस बात को लेकर कैसे आश्वस्त हैं, यह भी तो हो सकता है कि अंग्रेजों के जाने के बाद दोनों एक-दूसरे के गले काटने को आतुर हो जाएं। उन्होंने कहा था कि जर्मनी और फ्रांस, जो कई वर्षों तक एक-दूसरे से लड़ते रहे, वे अब अच्छे दोस्त हैं। भारत और पाकिस्तान के संदर्भ में भी यह बात लागू होगी। उनकी यह भविष्यवाणी गलत सिद्ध हुई। दोनों समुदायों में अविश्वास के कारण दोनों ओर से एक-दूसरे देशों के लिए जबरन पलायन भी हुआ। इसके कारण असंख्य लोगों को अपने घर छोड़ने पड़े। उन्होंने अपने घर इस आशा के साथ छोड़े थे कि जब विभाजन के बाद स्थिति नियंत्रित व शांत हो जाएगी, तो वे अपने-अपने घरों को लौटकर फिर से आबाद हो जाएंगे। हिंदुओं और सिखों ने पश्चिमी पंजाब छोड़ा, जबकि मुसलमानों ने पूर्वी पंजाब छोड़ा। इस दौरान जातीय संहार भी किया गया। करीब एक मिलियन लोगों को अपनी जानों से हाथ धोने पड़े। मैंने लंदन में लार्ड रैडक्लिफ से बात करने की कोशिश की, जिन्होंने देशों के बीच सीमांकन किया था। वह विभाजन पर बात करने के इच्छुक नहीं लगे। मुझे यह भी बताया गया कि सीमांकन के लिए 40 हजार की जो फीस तय की गई थी, उसे लेने से भी उन्होंने इनकार कर दिया था। उनका विचार था कि जो कुछ हुआ, वह उनकी आत्मा को आघात था और हत्याओं के लिए वह अपने आप को माफ नहीं कर सकेंगे। जबकि लोग कई सदियों तक एक साथ रहे, तो उन्होंने एक-दूसरे को मारा क्यों? विभाजन के लिए कौन जिम्मेदार था, इसकी स्पष्ट व्याख्या करने से अब कुछ हासिल होने वाला नहीं है। पिछले 70 सालों में दोनों देशों के मध्य जो कुछ हुआ है, उसे देखते हुए अब इस तरह के प्रयासों का सिवाय अकादमिक अध्ययन के कोई लाभ नहीं है। पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना बार-बार यह कहते रहे कि हिंदू-मुसलमान दो अलग राष्ट्र हैं, इस बात ने दोनों समुदायों को एक-दूसरे से दूर कर दिया। महात्मा गांधी ने जिन्ना के तर्क का जवाब दिया था। उन्होंने कहा था कि क्या वह अलग राष्ट्र से संबंधित होंगे, अगर वह इस्लाम को गले लगाते हैं तथा तब क्या होगा अगर वह हिंदुत्व के अधीन वापस आ जाएं। सबसे बुरी जो बात हुई, वह यह है कि पाकिस्तान एक मुस्लिम देश बन गया। भारत ने पंथनिरपेक्षता को अपनाया, लेकिन हिंदुत्व पर अंकुश नहीं लगाया गया। दुर्भाग्य से हिंदुओं में यह भावना पक्की होती जा रही है कि उनका देश में बहुमत है तथा ऐसी प्रणाली अपनाई जानी चाहिए जो हिंदुत्व को पोषित करे। कोई भी व्यक्ति राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के पंथनिरपेक्ष चेहरे तथा आजादी के बाद पहले पांच दशकों में चले शासन को याद कर सकता है। लेकिन आज राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत अलग ही नजरिया प्रचारित करते हैं। फारूख अब्दुल्ला को विभाजन के लिए नेहरू व पटेल को जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए।

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