हिमाचल में खेल वातावरण कब तक

भूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

राज्य में खेल संस्थान की मांग पिछले एक दशक से हो रही है, ताकि उसमें प्रशिक्षण दिलाने वाले प्रशिक्षकों को पंजाब व अन्य राज्यों की तरह अनुबंधित किया जा सके। ये ही यहां खोजे गए किशोर खिलाडि़यों को लगातार लंबी अवधि का प्रशिक्षण कार्यक्रम दिलाकर भविष्य के विजेता बनाएंगे…

राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिमाचल की संतानें अपने खेल के दम पर भारत के तिरंगे को अंतरराष्ट्रीय खेलों में कई बार ऊंचा कर प्रदेश व देश के गौरव का अहसास करवाती रहती हैं, मगर उनके प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिमाचल का योगदान शून्य ही होता है। पूर्व में बात चाहे ओलंपिक रजत पदक विजेता विजय कुमार की हो या राष्ट्रमंडल खेलों में आधा दर्जन स्वर्ण पदक जीतकर सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी घोषित होने वाले शमरेश जंग की हो, इनके प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिमाचल का योगदान कहीं नजर नहीं आता है। अभी संपन्न हुए 21वें राष्ट्रमंडल खेल-2018 में हिमाचल प्रदेश के एकमात्र पुरुष भारोत्तोलक विकास ठाकुर तथा महिलाओं में भी एकमात्र भारतीय शूटिंग दल की सदस्य अंजुम मोदगिल जिसने भारत के लिए रजत पदक जीता है, इनकी तैयारी में भी हिमाचल का कोई योगदान नहीं है। अंजुम मोदगिल ऊना के धुसाड़ा गांव के सुदर्शन मोदगिल की बेटी है।

सुदर्शन पेशे से चंडीगढ़ में अधिवक्ता हैं तथा मां शुभ मोदगिल चंडीगढ़ में गणित की प्रवक्ता हैं। अंजुम का परिवार चंडीगढ़ में ही रहता है। वहीं पर मां शुभ मोदगिल ने खुद अंजुम को सातवीं कक्षा में ही पिस्टल पकड़ा कर भविष्य की विजेता होने की ट्रेनिंग श्ुरू करवा दी थी। शुभ मोदगिल स्कूल के एनसीसी विंग की एएनओ भी है। अंजुम की शूटिंग में रुचि व प्रतिभा देखकर तत्कालीन कमांडिंग आफिसर कर्नल चौहान की देखरेख में अंजुम की प्रतिभा में और निखार आया। बाद में डीएवी कालेज चंडीगढ़ से अंजुम ने बीए तथा उसके बाद मनोविज्ञान में एमए किया। पिछले लगभग एक दशक में अंजुम ने राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 100 से भी अधिक पदक जीते हैं। 2016 में गुवाहाटी में आयोजित दक्षिण एशियाई खेलों में अंजुम ने व्यक्तिगत व टीम स्पर्धाओं में दो स्वर्ण पदक जीतकर भारत का तिरंगा सबसे ऊपर करवाकर राष्ट्रीय धुन सबको सुनाई है। 2015 की एशियाई प्रतियोगिता में कांस्य पदक, 2014 में कांस्य पदक तथा 2012 दोहा में आयोजित एशियाई शूटिंग प्रतियोगिता में दो रजत पदक जीतकर अंजुम अब तक एक दर्जन पदक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ही जीत चुकी है।

इस प्रतिभावान शूटर के प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिमाचल का योगदान कहां है? राष्ट्रमंडल खेलों की रजत पदक विजेता को राज्य में सम्मानजनक नौकरी सहित नकद इनाम कब तक प्रदेश सरकार देने जा रही है, इस संबंध में अभी तक राज्य सरकार की तरफ से कोई घोषणा नहीं हो पाई है। जब तक हिमाचल में अति प्रतिभासंपन्न खिलाडि़यों के प्रशिक्षण कार्यक्रम के लिए वातावरण नहीं बन पाएगा, तब तक हिमाचली प्रतिभाएं राज्य से पलायन करती रहेंगी। सवाल यह भी है कि कब तक यह खिलाड़ी पड़ोसी राज्य में आश्रय लेकर अपनी प्रतिभा को कठिन हालात में निखारते रहेंगे? हिमाचल प्रदेश का खेल विभाग अपने यहां कब तक अपने प्रतिभावान खिलाडि़यों की प्रतिभा खोजकर उन्हें उच्च स्तरीय प्रशिक्षण कार्यक्रम दिलाएगा? राज्य में खेल संस्थान की मांग पिछले एक दशक से हो रही है, ताकि उसमें अन्य प्रशिक्षण दिलाने वाले प्रशिक्षकों को पंजाब व अन्य राज्यों की तरह अनुबंधित कर अपने यहां खोजे गए किशोर प्रतिभावान खिलाडि़यों को लगातार लंबी अवधि का प्रशिक्षण कार्यक्रम दिलाकर भविष्य के विजेता बनाया जा सके। पंजाब ने जब पंजाब खेल संस्थान बनाया तो उसने देश के उच्च गुणवत्ता वाले प्रशिक्षकों को अपने यहां अनुबंधित कर हाकी एथलेटिक्स सहित चुनिंदा खेलों में प्रशिक्षण शुरू करवाया। आज उसके परिणाम सामने हैं। हाकी के ही खिलाड़ी विश्व जूनियर हाकी प्रतियोगिता में भारतीय टीम का हिस्सा बनकर देश को स्वर्ण पदक दिलाने में कामयाब रहे हैं। आने वाले वर्षों में कई उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी में आज जब अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्ले फील्ड बनकर तैयार है तो वहां अनुभवी प्रशिक्षकों का प्रशासकों  को नियुक्त कर उच्च स्तरीय खेल परिणामों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम तय करना होगा, ताकि राज्य की संतानें प्रदेश में भी प्रशिक्षण कर प्रदेश को राष्ट्रीय पदक दिलाते हुए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के गौरव को चार चांद लगा सके। कब तक प्रदेश की अति प्रतिभावान संतानों को परिचय व प्रश्रय अन्य पड़ोसी राज्य व केंद्रीय विभाग देते रहेंगे। जब हिमाचली लोग विश्व स्तरीय प्रदर्शन खेलों में कर रहे हैं तो उन्हें राज्य में खेलों के लिए माकूल माहौल देना क्या सरकार का दायित्व नहीं बनता है।इसलिए जरूरी है कि प्रदेश में खेल वातावरण तैयार किया जाए।

हिमाचल में प्रतिभाओं की कमी नहीं है, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके प्रदर्शन से यह बात साबित हो जाती है। कमी है तो इस बात की कि यहां माकूल खेल वातावरण नहीं है। अगर यहां माकूल खेल वातावरण होगा, तो यहां की प्रतिभाएं दूसरे रज्यों को पलायन नहीं करेंगी। हिमाचल को पंजाब की तरह अच्छे प्रशिक्षकों की सेवाएं लेकर यहां के खिलाडि़यों को प्रशिक्षण देना चाहिए। जरूरत इस बात की भी है कि जो खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन करते हैं, उनके लिए रोजगार आदि की माकूल व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए। अगर अच्छे प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी रोजगार आदि की व्यवस्था करने में ही लगे रहेंगे तो इससे उनका प्रदर्शन प्रभावित हो सकता है। उन्हें इस चिंता से मुक्त करना होगा।

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