ट्रेड वार का सार्थक पहलू

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

यह बात सही है कि भारत और चीन के निर्यात प्रभावित होंगे, लेकिन भारत के निर्यात कम और आयात ज्यादा हैं। अतः निर्यातों में जो गिरावट होगी, उससे ज्यादा आयातों में गिरावट आएगी। जैसे अमरीका ने भारत से निर्यातित स्टील पर आयात कर बढ़ा दिए, उससे भारत से अमरीका को निर्यात किए जाने वाले स्टील की मात्रा में गिरावट आई, लेकिन साथ-साथ भारत यदि अमरीका से आयातित अखरोट और सेब के ऊपर आयात कर बढ़ा देता है, तो इनका आयात कम होगा और भारत में इनका उत्पादन बढ़ेगा…

वर्तमान में अमरीका और चीन में चालू ट्रेड वार को लेकर मध्यधारा अर्थशास्त्रियों द्वारा आशंका जताई जा रही है कि यह वैश्विक मंदी में पलट सकता है। तर्क है कि अमरीका द्वारा स्टील, एल्यूमीनियम तथा अन्य कच्चे माल पर आयात कर बढ़ाए जाने से अमरीकी उद्योगों की उत्पादन लागत बढ़ेगी। उन्हें कच्चा माल महंगा खरीदना पड़ेगा, इससे अमरीकी उद्योग दबाव में आएंगे। साथ-साथ चीन और भारत जैसे देशों के माल का निर्यात भी कम होगा। फलस्वरूप इनकी अर्थव्यवस्थाएं डगमगाएंगी। अमरीकी कंपनियों को कच्चा माल उपलब्ध नहीं होगा, जिससे उन पर पुनः दबाव पड़ेगा। इस प्रकार अमरीका भारत और चीन सभी देशों के उद्योग दबाव में आएंगे, उनका आत्मविश्वास घटेगा और वे निवेश करना बंद कर देंगे। अमरीका का विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्था होने से वहां आने वाली मंदी का वैश्विक फैलाव हो जाएगा और विश्व अर्थव्यवस्था में मंदी छा जाएगी। मेरी समझ से इस विचार के विपरीत बिलकुल अलग परिणाम हो सकते हैं। ऊपर के तर्कों का बिंदुवार वैकल्पिक विश्लेषण मैं देना चाहूंगा। पहला बिंदु है कि अमरीका द्वारा कच्चे माल पर आयात कर बढ़ाने से अमरीका के उद्योग दबाव में आएंगे, लेकिन कच्चे माल के साथ-साथ दूसरे उत्पादित माल पर भी अमरीका द्वारा आयात कर बढ़ाए जा रहे। मान लीजिए मैक्सिको और कनाडा से आयात होने वाली कारों पर अमरीका ने आयात कर बढ़ा दिए। ऐसा करने से आयातित कारों का मूल्य अमरीका में बढ़ जाएगा, अमरीका में कारों का उत्पादन बढ़ेगा।

मेरे एक जानकार ने बताया कि बीते समय में राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा निर्देश दिए गए हैं कि लोहे के ढले हुए माल का आयात करने के स्थान पर इनका उत्पादन अमरीका में ही किया जाए। वे पहले चीन से ढले हुए माल का आयात करते थे, उनका धंधा लगभग चौपट हो गया है, क्योंकि ढला हुआ माल अब अमरीका में उत्पादित होने लगा है। इसलिए आयात कर बढ़ाने से कच्चे माल का दाम अवश्य बढ़ता है, लेकिन साथ-साथ अमरीका में घरेलू उत्पादन भी बढ़ेगा, जो कि अमरीका के लिए हितकारी होगा। दूसरा बिंदु है कि अमरीका द्वारा आयात कर बढ़ाने से भारत और चीन के निर्यात प्रभावित होंगे, साथ ही इनकी अर्थव्यवस्थाओं में भी मंदी का प्रवेश होगा। यह बात सही है कि भारत और चीन के निर्यात प्रभावित होंगे, लेकिन भारत के निर्यात कम और आयात ज्यादा हैं। अतः निर्यातों में जो गिरावट होगी, उससे ज्यादा आयातों में गिरावट आएगी। जैसे अमरीका ने भारत से निर्यातित स्टील पर आयात कर बढ़ा दिए, उससे भारत से अमरीका को निर्यात किए जाने वाले स्टील की मात्रा में गिरावट आई, लेकिन साथ-साथ भारत यदि अमरीका से आयातित अखरोट और सेब के ऊपर आयात कर बढ़ा देता है, तो इनका आयात कम हो जाएगा और भारत में इनका उत्पादन बढ़ेगा। अतः टे्रड वार से उन देशों को लाभ होगा, जो विदेश निर्यात पर कम आश्रित हैं, और उनको नुकसान होगा, जो निर्यात पर ज्यादा आश्रित हैं, जैसे भारत के निर्यात कम और आयात ज्यादा हैं। अतः भारत के निर्यातों में जो कमी आएगी, उससे जो नुकसान होगा, उसकी तुलना में भारत द्वारा आयातों में जो कमी आएगी उससे लाभ ज्यादा होगा। अतः यह आशंका निर्मूल है कि विदेश व्यापार के कम होने से सभी देशों को नुकसान होगा।

तीसरा बिंदु है कि सभी देशों में टे्रड वार के कारण कच्चा माल महंगा हो जाएगा। सीधे देखा जाए तो यह बात सही है, लेकिन कच्चे माल के विकल्प उपलब्ध होते हैं। जैसे यदि अमरीका को भारत से निर्यातित एल्युमीनियम नहीं मिलेगा, तो वहां एल्यूमीनियम के दरवाजे बनाने के स्थान पर प्लास्टिक के दरवाजे बनाए जाएंगे। प्लास्टिक के दरवाजे बनाने में अमरीका में रोजगार ज्यादा उत्पन्न होंगे। इसलिए कच्चे माल का सीधा प्रभाव नकारात्मक पड़ने के बावजूद कुल प्रभाव नकारात्मक नहीं होगा। चौथा बिंदु है कि टे्रड वार के कारण सभी देशों के उद्यमियों में आत्मविश्वास की गिरावट आएगी। इस तर्क को सीधे स्वीकार नहीं किया जा सकता है, सच यह नहीं है। हम देख रहे हैं कि राष्ट्रपति ट्रंप के सत्तारूढ़ होने के बाद आयात कर बढ़ाए गए, लेकिन अमरीका की अर्थव्यवस्था की गति बढ़ी है। अमरीकी उद्यमियों में अत्मविश्वास बढ़ा है, यह घटा नहीं है। कारण यह कि संरक्षणवाद को अपनाने से घरेलू उद्योगों को आयातों से प्रतिस्पर्धा नहीं करनी पड़ती है। उन्हें बाजार में अपना माल बेचने का अवसर मिलता है। उनके द्वारा उत्पादन बढ़ता है, इसलिए टे्रड वार के कारण देशों के उद्यमियों में आत्मविश्वास बढ़ने की मेरी दृष्टि में संभावना ज्यादा है। अंतिम पांचवां बिंदु है कि अमरीका की अर्थव्यवस्था में आई मंदी का वैश्विक स्तर पर फैलाव हो सकता है, लेकिन जैसा ऊपर बताया गया है कि यही संदिग्ध है कि अमरीका में मंदी आएगी। इसके अलावा यदि यह फैलाव होता भी है, तो यह उन देशों को होगा,जो अमरीका को किए गए निर्यातों पर निर्भर हैं, जैसे चीन द्वारा अमरीका को निर्यात ज्यादा और आयात कम किए जाते हैं। इसलिए अमरीका द्वारा संरक्षणवाद चीन के ऊपर प्रतिकूल प्रभाव ज्यादा पड़ेगा। तुलना में भारत द्वारा अमरीका को निर्यात कम और वहां से आयात ज्यादा किए जाते हैं। अतः संरक्षणवाद अपनाने से भारत को लाभ होगा, हमारे निर्यातों पर कम और आयातों पर ज्यादा प्रभाव पड़ेगा। आयात कम होने से भारतीय उद्यमियों को मैदान मिलेगा। मेरा मानना है कि वर्तमान में टे्रड वार अंत में सभी देशों और वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी लाभप्रद होगा। प्रश्न है कि फिर मुक्त व्यापार के लाभ को हम कैसे समझें? यहां दो पहलुओं को अलग-अलग समझना होगा। यह सही है कि मुक्त व्यापार से सभी देशों को लाभ होता है। जैसे भारत द्वारा निर्यातित एल्यूमीनियम अमरीका को सस्ता उपलब्ध हो जाएगा और अमरीका द्वारा निर्यातित अखरोट भारत को सस्ता उपलब्ध हो जाएगा, लेकिन अंतर तब पड़ता है जब वैश्विक व्यापार का जुड़ाव बहुराष्ट्रीय कंपनियों से हो जाता है। संरक्षणवाद अपनाने से बड़ी कंपनियों को सीधे नुकसान होता है। उनका वैश्विक बाजार संकुचित होता है। तदानुसार छोटे व्यापारियों को लाभ होता है। इसलिए खुले व्यापार का सिद्धांत अपने में सही होते हुए भी जब खुले व्यापार का जुड़ाव बहुराष्ट्रीय बड़ी कंपनियों से हो जाता है, तब उसका अंतिम प्रभाव नकारात्मक हो जाता है। सच यह है कि वैश्विकरण को अपनाने से बड़ी कंपनियों को लाभ और छोटे उद्योगों को हानि हुई है। इसलिए अमरीका को संरक्षणवाद अपनाना पड़ा है। भारत सरकार को भी शीघ्र अति शीघ्र संरक्षणवाद को अपनाकर अपने घरेलू व्यापारियों को खुला बाजार उपलब्ध कराकर प्रोत्साहन देना चाहिए।

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