तेल के गिरे दाम से आश्वस्त न हों

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन और रूस  अमरीका के इस एकतरफा निर्णय से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि ईरान पर दोबारा प्रतिबंध लगाना उचित नहीं होगा। उनकी इच्छा है कि अमरीका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद ईरान से तेल को खरीदा जा सके। इसके लिए उन्होंने एक वैकल्पिक वित्तीय व्यवस्था बनाने के प्रयास शुरू किए हैं, जिसके अंतर्गत ईरान से खरीदे गए तेल का पेमेंट अमरीकी वित्तीय व्यवस्था से बाहर होगा…

वर्ष 2015 में ईरान के साथ प्रमुख देशों का एक समझौता हुआ था, जिसके अंतर्गत ईरान पर संयुक्त राष्ट्र के द्वारा लगे हुए प्रतिबंध को हटा लिया गया था। साथ में ईरान ने अपने परमाणु अस्त्र कार्यक्रम को स्थगित करने का वादा किया था। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा संगठन ने प्रमाणित किया है कि ईरान परमाणु अस्त्र बनाने के प्रति कोई कदम नहीं उठा रहा है। इसके बावजूद राष्ट्रपति ट्रंप ने नवंबर चार से अमरीकी बैंक के माध्यम से ईरान के साथ लेन-देन बंद कर दिया है। तेल का व्यापार मुख्यतः डालर में होता है, जो कि अमरीकी बैंकों द्वारा संचालित किया जाता है। अर्थ हुआ कि ईरान के लिए अपने तेल को बेचना कठिन हो जाएगा। अमरीका का मानना है कि 2015 में जो संधि हुई थी वह ईरान पर पर्याप्त अंकुश नहीं लगाती है।

उस समय विश्व बाजार में संकट था कि आने वाले समय में ईरान से तेल उपलब्ध होगा या नहीं। ट्रंप ने आदेश दे रखा था कि 4 नवंबर के बाद यदि कोई देश ईरान से तेल खरीदता है अथवा ईरान के साथ धन के लेन-देन में लिप्त होता है अथवा ईरान से लिए गए तेल की इंश्योरेंस आदि करती हैं, उन कंपनियों पर प्रतिबंध लगा दिया जाएगा। विश्व बाजार को संदेह था कि नवंबर से विश्व बाजार में तेल की उपलब्धि कम हो जाएगी, इसलिए उस समय तेल के दाम ऊपर चढ़ रहे थे। सितंबर के अंत में कच्चे तेल का अंतरराष्ट्रीय मूल्य 85 रुपए प्रति बैरल हो गया था। इसके बाद अमरीका ने भारत समेत आठ देशों को फिलहाल ईरान से तेल खरीदने की छूट दे दी है।

इसको देखते हुए अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम पुनः पुराने 65 रुपए पर आ टिके हैं, लेकिन मूल संकट विद्यमान है। अमरीका और ईरान के बीच जो गतिरोध चल रहा है, वह किसी भी समय पुनः उभर सकता है। इसलिए हमें इस विषय पर एक दीर्घकालीन नीति बनानी होगी। अमरीका का मानना है कि ईरान द्वारा आतंकवादी आदि गतिविधियों को समर्थन दिया जा रहा है। जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन और रूस  अमरीका के इस एकतरफा निर्णय से सहमत नहीं हैं। उनका मानना है कि ईरान पर दोबारा प्रतिबंध लगाना उचित नहीं होगा। उनकी इच्छा है कि अमरीका द्वारा लगाए गए प्रतिबंध के बावजूद ईरान से तेल को खरीदा जा सके। इसके लिए उन्होंने एक वैकल्पिक वित्तीय व्यवस्था बनाने के प्रयास शुरू किए हैं, जिसके अंतर्गत ईरान से खरीदे गए तेल का पेमेंट अमरीकी वित्तीय व्यवस्था से बाहर होगा। इन देशों के इस कदम से वर्तमान में जो डालर का विश्व अर्थव्यवस्था पर आधिपत्य है, उस पर चोट आएगी। तेल की वैकल्पिक व्यवस्था चालू हो जाने के बाद यह व्यवस्था अन्य सभी वित्तीय लेन-देन में लागू हो सकती है और विश्व की डालर के ऊपर निर्भरता न्यून हो जाएगी। 2015 के पहले संयुक्त राष्ट्र द्वारा ईरान पर प्रतिबंध लगाए गए थे। उस समय भी भारत ने ईरान से तेल खरीदना जारी रखा था। भारत ने ईरान से खरीदे गए तेल का आधा भुगतान ईरान फेडरल बैंक की मुंबई शाखा में रुपयों में जमा करा दिया था। ईरान ने उस रकम का उपयोग भारत से माल खरीदने के लिए उपयोग किया।

भारत प्रयास कर सकता है कि ईरान से खरीदे गए तेल का सौ प्रतिशत पेमेंट ईरान फेडरल बैंक को कर दिया जाए। ऐसा करने पर भारत द्वारा ईरान से तेल की खरीद जारी रह सकेगी। इस परिस्थिति में हमें तय करना है कि भारत अमरीका का साथ देगा अथवा जर्मनी का? अमरीका का साथ देंगे, तो आने वाले समय में अमरीका की हार होने पर उससे हम पर भी दुष्प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा अमरीका का साथ देने पर हमको ईरान से तेल की खरीद कम करना पड़ेगा, जिससे अपने देश में तेल के दाम में और वृद्धि होगी। मेरा मानना है कि हमें जर्मनी आदि देशों के साथ मिल करके ईरान से तेल की खरीद जारी रखनी चाहिए। यहां विषय यह भी है कि अमरीका के साथ जुड़े रहने से हम अमरीका के माध्यम से पाकिस्तान पर दबाव बना सकते हैं कि वह आतंकवादी आदि गतिविधियों को कम करे। यदि इस सामरिक विषय को महत्त्व दिया जाता है, तब ही अमरीका के साथ रहना उचित होता है अन्यथा अमरीका के साथ रहना हमारे लिए हानिप्रद होगा। विषय का दूसरा पक्ष रुपए के दाम में आ रही निरंतर गिरावट है। रुपए के दाम गिरने से अपने देश में आयातित कच्चा तेल महंगा हो जाता है। एक डालर के क्रूड आयल का आयात करने पर एक वर्ष पूर्व हमें 62 रुपए अदा करने पड़ते थे, तो आज उसी तेल का आयात करने में हमें 72 रुपए का भुगतान करना होगा। प्रश्न है कि रुपया क्यों लुढ़क रहा है? सच यह है कि बीते समय में भारतीय अर्थव्यवस्था की प्रतिस्पर्धा शक्ति कम हुई है। तेल के अतिरिक्त तमाम विदेशी माल भारी मात्रा में भारत में प्रवेश कर रहे हैं, जैसे चीन में बने खिलौने, फुटबाल इत्यादि। कारण यह है कि जीएसटी के कारण जमीनी स्तर पर छोटे उद्योगों के ऊपर दुष्प्रभाव पड़ा है और उनके द्वारा जो निर्यात होते थे, वे दबाव में आ गए हैं। जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार में भारी वृद्धि हुई है। जीएसटी और जमीनी भ्रष्टाचार में वृद्धि के कारण भारतीय उद्योग की उत्पादन लागत ज्यादा आ रही है और इस कारण हम अपने माल का निर्यात नहीं कर पा रहे हैं। हमारे माल की उत्पादन लागत ज्यादा होने के कारण विदेशी उत्पादकों को भारत में अपना माल बेचना आसान हो गया है। नौकरशाही के भ्रष्टाचार और जीएसटी के अनुपालन के पेंचों को हम यदि दूर नहीं करेंगे, तो अपनी उत्पादन लागत ज्यादा बनी रहेगी, रुपया लुढ़केगा और तदानुसार तेल का दाम पुनः बढ़ेगा। अतः सरकार को चाहिए कि ईरान से तेल के आयात बने रहें, इसके लिए कदम उठाए और नौकरशाही के भ्रष्टाचार और कानूनी पेंचों से उद्योगों को निजात दिलाए।

अमरीका तथा ईरान के बीच गतिरोध वर्तमान में कुछ नम पड़ गया है, परंतु मूलतः गतिरोध कभी भी पुनः आ सकता है। ऐसे में फिर से अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम बढ़ेंगे और हमारे सामने दोबारा संकट पैदा हो जाएगा। इसलिए हमको समय रहते ईरान के साथ रुपए में पेमेंट करने की व्यवस्था करनी चाहिए। हमें यह भी देखना चाहिए कि ईरान किन देशों से माल खरीदता है और उन देशों के साथ मिल कर एक वैकल्पिक व्यवस्था बनानी चाहिए, जिससे भारत द्वारा तेल का पेमेंट रुपए में किया जाए और उस रुपए से ईरान श्रीलंका से चाय खरीद सके। इस व्यवस्था को बनाने में समय लगेगा, इसलिए समय रहते हमें कदम उठाने चाहिएं।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com

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