बढ़ती जनसंख्या के लाभ

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

संयुक्त राष्ट्र का तर्क है कि बढ़ती जनसंख्या से जीवन स्तर गिरता है। मैं इससे सहमत नहीं हूं। बढ़ती जनसंख्या यदि उत्पादन में रत रहे, तो जीवन स्तर में सुधार होता है। अतः समस्या लोगों को रोजगार दिलाने की है, न कि जनसंख्या की अधिकता की। जनसंख्या के आर्थिक विकास पर उपरोक्त सकारात्मक प्रभाव को देखते हुए चीन की सरकार ने एक संतान पालिसी में परिवर्तन किया है। चीन समेत भारत को समझना चाहिए कि जनसंख्या सीमित करने से आर्थिक विकास मंद पड़ेगा। जरूरत ऐसी आर्थिक नीतियों की है, जिससे लोगों को रोजगार मिले और वे उत्पादन कर सकें…

1979 में डेंग जाओपिंग के नेतृत्व में चीन ने एक संतान की नीति लागू की थी। एक से अधिक संतान उत्पन्न करने पर दंपति को भारी फाइन अदा करना पड़ता था। फाइन न चुका पाने की स्थिति में जबरन गर्भपात करा दिया जाता था। इस कठोर पालिसी के कारण चीन की जनसंख्या वृद्धि नियंत्रण में आ गई। वर्तमान में चीन में दंपतियों के औसत एक से आठ संतान हो रही हैं। दो व्यक्तियों मां एवं पिता द्वारा दो से कम संतान उत्पन्न करने के कारण जनसंख्या का पुनर्नवीनीकरण नहीं हो रहा है और जनसंख्या कम हो रही है। एक संतान पालिसी का चीन को लाभ मिला है। 1950 से 1980 के बीच चीन के लोगों ने अधिक संख्या में संतान उत्पन्न की थी। माओ जेडांग ने लोगों को अधिक संख्या में संतान पैदा करने को प्रेरित किया था। 1990 के लगभग ये संतान कार्य करने लायक हो गई, परंतु ये लोग कम संख्या में संतान उत्पन्न कर रहे थे, चूंकि एक संतान की पालिसी लागू कर दी गई थी। इनकी ऊर्जा संतानोत्पत्ति के स्थान पर धनोपार्जन करने मेंलग गई। इस कारण 1990 से 2010 के बीच चीन की आर्थिक विकास दर 10 प्रतिशत की अप्रत्याशित दर पर रही। 2010 के बाद परिस्थिति ने पलटा खाया। 1950 से 1980 के बीच भारी संख्या में जो संतान उत्पन्न हुई थी, उसमें अब वृद्धि होने लगी, परंतु 1980 के बाद संतान कम उत्पन्न होने के कारण 2010 के बाद कार्यक्षेत्र में प्रवेश करने वाले वयस्कों की संख्या घटने लगी। उत्पादन में पूर्व में हो रही वृद्धि में ठहराव आ गया, चूंकि उत्पादन करने वाले लोगों की संख्या घटने लगी। साथ-साथ वृद्धों की संभाल का बोझ बढ़ता गया, जबकि उस बोझ को वहन करने वाले लोगों की संख्या घटने लगी। वर्तमान में चीन में वृद्धों की संख्या की तुलना में पांच गुणा कार्यरत वयस्क हैं। अनुमान है कि इस दशक के अंत तक कार्यरत वयस्कों की संख्या केवल दो गुणा रह जाएगी। कई ऐसे परिवार होंगे, जिसमें एक कार्यरत व्यक्ति को दो पेरेंट्स और चार ग्रैंडपेरेंट्स की संभाल करनी होगी।

देश के नागरिकों की ऊर्जा उत्पादन के स्थान पर वृद्धों की देखभाल में लगने लगी। कई विश्लेषकों का आकलन है कि 2010 के बाद चीन की विकास दर में आ रही गिरावट का कारण कार्यरत वयस्कों की यह घटती जनसंख्या है। उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि जनसंख्या नियंत्रण का लाभ अल्पकालिक होता है। संतान कम उत्पन्न होने पर कुछ दशक तक संतानोत्पत्ति का बोझ घटता है और विकास दर बढ़ती है, परंतु कुछ समय बाद कार्यरत श्रमिकों की संख्या में गिरावट आती है और उत्पादन घटता है। साथ-साथ वृद्धों का बोझ बढ़ता है और आर्थिक विकास दर घटती है। बहरहाल स्पष्ट होता है कि आर्थिक विकास की कुंजी कार्यरत वयस्कों की संख्या है। इनकी संख्या अधिक होने से आर्थिक विकास में गति आती है। ऐसा ही परिणाम दूसरे देशों के अनुभव से सत्यापित होता है। यूनिवर्सिटी आफ मेरीलैंड के प्रोफेसर जुलियन साइमन बताते हैं कि हांगकांग, सिंगापुर, हालैंड एवं जापान जैसे जनसंख्या-सघन देशों की आर्थिक विकास दर अधिक है, जबकि जनसंख्या-न्यून अफ्रीका में विकास दर धीमी है।

पापूलेशन रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार 1900 एवं 2000 के बीच अमरीका की जनसंख्या 7.6 करोड़ से बढ़कर 27 करोड़ हो गई है। इस अवधि में औसत आयु 47 वर्ष से बढ़कर 77 वर्ष हो गई है और शेयर बाजार का स्टैंडर्ड एंड प्योर इंडेक्स 6.2 से बढ़कर 1430 हो गया है। सिंगापुर के प्रधानमंत्री के अनुसार देश की जनता को अधिक संख्या में संतान उत्पन्न करने को प्रेरित करना देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। इस आशय से उनकी सरकार ने फर्टीलिटी ट्रीटमेंट, हाउजिंग अलाउंस तथा पैटर्निटी लीव में सुविधाएं बढ़ाई हैं। दक्षिणी कोरिया ने दूसरे देशों से इमिग्रेशन को प्रोत्साहन दिया है। इमिग्रेट्स की संख्या वर्तमान में आबादी का 2.8 प्रतिशत से बढ़ कर 2030 तक 6 प्रतिशत हो जाने का अनुमान है। इंगलैंड के सांसद केविन रुड ने कहा है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यदि इमिग्रेशन को प्रोत्साहन दिया होता, तो इंगलैंड की विकास दर न्यून रहती। स्पष्ट होता है कि जनसंख्या का आर्थिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। बात सीधी सी है-उत्पादन मनुष्य द्वारा किया जाता है, जितने मनुष्य होंगे उतना उत्पादन हो सकेगा और आर्थिक विकास दर बढ़ेगी। उपरोक्त तर्क के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र पापूलेशन फंड का कहना है कि जनसंख्या अधिक होने से बच्चों को शिक्षा उपलब्ध नहीं हो पाती है और उनकी उत्पादन करने की क्षमता का विकास नहीं होता है। मेरी समझ से यह तर्क सही नहीं है। शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए जनसंख्या घटाने के स्थान पर दूसरी अनावश्यक खपत पर नियंत्रण किया जा सकता है। जैसे राजा साहब के महल में स्कूल चलाया जा सकता है। यह भी याद रखना चाहिए कि अर्थव्यवस्था में शिक्षित लोगों की संख्या की जरूरत तकनीकों द्वारा निर्धारित हो जाती है। टै्रक्टर चलाने के लिए पांच ड्राइवर नहीं चाहिए होते हैं। ड्राइवर का एमए होना जरूरी नहीं होता है। देश में शिक्षित बेरोजगारों की बढ़ती संख्या इस बात का प्रमाण है कि शिक्षा मात्र से उत्पादन में वृद्धि नहीं होती है। संयुक्त राष्ट्र का दूसरा तर्क है कि बढ़ती जनसंख्या से जीवन स्तर गिरता है। मैं इससे सहमत नहीं हूं। बढ़ती जनसंख्या यदि उत्पादन में रत रहे, तो जीवन स्तर में सुधार होता है।

अतः समस्या लोगों को रोजगार दिलाने की है, न कि जनसंख्या की अधिकता की। जनसंख्या के आर्थिक विकास पर उपरोक्त सकारात्मक प्रभाव को देखते हुए चीन की सरकार ने एक संतान पालिसी में परिवर्तन किया है। अब तक केवल वे दंपति दूसरी संतान उत्पन्न कर सकते थे, जिनमें पति और पत्नी दोनों ही अपने पेरेंट्स के अकेली संतान थे। अब इसमेंछूट दी गई है, वे दंपति भी दूसरी संतान पैदा कर सकेंगे, जिनमें पति अथवा पत्नी में कोई एक अपने पेरेंट्स की अकेली संतान थी। यह सही दिशा में कदम है, लेकिन बहुत आगे जाने की जरूरत है। चीन समेत भारत को समझना चाहिए कि जनसंख्या सीमित करने से आर्थिक विकास मंद पड़ेगा। जरूरत ऐसी आर्थिक नीतियों को लागू करने की है, जिससे लोगों को रोजगार मिले और वे उत्पादन कर सकें। पर्यावरण पर बढ़ते बोझ को सादा जीवन अपना कर मैनेज करना चाहिए, न कि जनसंख्या में कटौती करके।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com

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