हिमाचल एथलेटिक तब और अब

भूपिंदर सिंह

राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक

अंकेश चौधरी, सावन वरवाल व तमन्ना सहित और भी कुछ एक नाम हैं, जो आने वाले कल में हिमाचल को राष्ट्रीय स्तर पर पदक देकर भारत का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। आज हिमाचल के धावकों व धाविकाओं तथा उनके प्रशिक्षकों को सुविधा की कोई कमी नहीं है। पुष्पा ठाकुर व सुमन रावत की तरह उन्हें राज्य में सिंथैटिक ट्रैकों की कमी नहीं खलेगी…

हिमाचल प्रदेश में अधिकतर भू-भाग पहाड़ी होने के कारण यहां पर एथलेटिक्स ट्रैक बनाने के लिए लगभग दो सौ मीटर लंबे व 100 मीटर चौड़े मैदान मिलना बहुत कठिन है। आजादी के बाद प्रदेश में मंडी का पड्डल, चंबा का चौगान, सुजानपुर का चौगान जयसिंहपुर में भी राजा संसार चंद द्वारा बनाए गए विशाल मैदान के साथ-साथ कुल्लू के ढालपुर मैदान पर ही चार सौ मीटर का ट्रैक बनाया जा सकता था। इसके बाद ऊना का इंदिरा स्टेडियम तथा धर्मशाला का पुलिस मैदान बने, यहां एथलेटिक्स ट्रैक बनाए जा सकते हैं। सुंदरनगर के महाराजा लक्ष्मण सेन स्मारक महाविद्यालय के मैदान को सन ऑफ पदम सिंह गुलेरिया की सोच ने 400 मीटर के ट्रैक में बदल दिया। यहां पर पिछली सदी के अंतिम दो दशकों में सबसे अधिक बार हिमाचल प्रदेश राज्य स्तरीय एथलेटिक तथा हिमाचल प्रदेश विश्व स्तरीय एथलेटिक प्रतियोगिता आयोजित करवाई गई। दो सौ मीटर के ट्रैक हिमाचल पुलिस द्वारा समतल किए गए कई मैदानों में बनाए जा सकते हैं। पंडोह, सपड़ी, अलाहलाल पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर का मैदान, यहां पर भी चार सौ मीटर के ट्रैक बनाए जा सकते हैं।

प्रेम कुमार धूमल ने अपने पहले मुख्यमंत्री कार्यकाल में हमीरपुर के सरकारी कालेज में सिंथैटिक ट्रैक बनाने की घोषणा सदी शुरू होते ही कर दी थी, मगर इस ट्रैक को बिछाने के लिए अभी एक दशक और इंतजार करना था। अपने दूसरे कार्यकाल में जहां प्रेम कुमार धूमल ने राज्य में अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्ले फील्ड कई खेलों के लिए बनवाई, वहीं पर धर्मशाला व हमीरपुर में दो सिंथैटिक ट्रैक भी बिछाए, जो 2012 में बनकर तैयार हुए। धर्मशाला में खेल छात्रावास होने के कारण राज्य की प्रतिभाशाली धाविकाएं बिना टै्रक के यूं ही खेल से बाहर हो जाती थीं और हमीरपुर में पुष्पा ठाकुर मिट्टी के 200 मीटर के ट्रैक पर अभ्यास कर ही 400 मीटर दौड़ में वरिष्ठ राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता में पदक जीत 2004 ओलंपिक के लिए क्वालीफाई की कतार में खड़ी हो गई थी। इस सबको देखते हुए हिमाचल में एक नहीं, दो जगह एसीसी व अंबुजा सीमेंट के आर्थिक सहयोग से ये आधुनिक अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधा भविष्य के खिलाडि़यों को मिल गई। आज बिलासपुर में सिंथैटिक ट्रैक बिछ रहा है और राजकीय महाविद्यालय सरस्वती नगर (सावड़ा) के मैदान पर भी जल्द ही चौथा सिंथैटिक ट्रैक नजर आएगा। शिलारू में भी एक सिंथैटिक ट्रैक पिछले कई दशकों से भारतीय खेल प्राधिकरण बिछाने की सोच रहा है। आज एथलेटिक्स के लिए जो अंतरराष्ट्रीय स्तर की सुविधा हिमाचल के पास है, वह बड़े-बड़े राज्यों में नहीं है। हिमाचल प्रदेश से राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने वालों के केवल चंद ही नाम हैं। इकट्ठे पंजाब  के समय में ऊना के सुरेश पठानिया पैदल चाल में पदक विजेता राष्ट्रीय स्तर पर रहे थे। उसके बाद अंतर विश्वविद्यालय स्तर पर हिमाचल की तरफ से पहली बार ऊना के भवानी अग्निहोत्री ने पांच व दस हजार मीटर की दौड़ों में स्वर्ण पदक जीतकर पहाड़ का परिचय करवाया था। इसके बाद महिला वर्ग में लंबी दूरी की दौड़ों में सुमन रावत ने एशियाई खेलों में पदक जीतकर अर्जुन अवार्ड भी पाया। वह हिमाचल की पहली विभागीय महिला निदेशक भी बनी हैं। इसी समय में बिलासपुर की स्वर्गीय कमलेश कुमारी ने अंतर विश्वविद्यालय खेलों में रिकार्ड के साथ स्वर्ण पदक जीतते हुए एशियाई एथलेटिक्स तक भारत का प्रतिनिधित्व भी किया था। लंबी दूरी की दौड़ों में शिमला के अमन सैणी ने बिलासपुर के खेल छात्रावास में रहते हुए स्वर्गीय कमलेश कुमारी की तरह ही एशियाई स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया। कई बार के इस राष्ट्रीय विजेता को नौकरी के लिए पंजाब पुलिस की शरण लेनी पड़ी। तेज गति की दौड़ों में हमीरपुर की पुष्पा ठाकुर ने पहले अंतर विश्वविद्यालय व फिर वरिष्ठ राष्ट्रीय एथलेटिक्स में स्तरीय प्रदर्शन करते हुए हिमाचली धावक-धाविकाओं को रास्ता दिखा दिया कि हिमाचल के लोग भी तेज गति की दौड़ों में पदक जीत सकते हैं। कुल्लू की संजो देवी वैसे तो खेल छात्रावास धर्मशाला में प्रशिक्षक केहर सिंह के पास कनिष्ठ स्तर पर भाला प्रक्षेपण में राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत रही थी, मगर बाद में किसी कारणवश खेल छूट गया। एक बार फिर साथी धाविका मंजू कुमारी जो भारतीय विश्वविद्यालय की सर्वश्रेष्ठ एथलीट रही है, उसके सुझाव से हमीरपुर के प्रशिक्षण केंद्र में प्रशिक्षण शुरू कर वरिष्ठ राष्ट्रीय विजेता बनी। आज खेल के दम पर वन विभाग में रेंज अधिकारी है। हिमाचल प्रदेश के केवल यह चंद नाम हैं, इनमें लंबी दूरी की दौड़ों  में वरिष्ठ राष्ट्रीय स्तर पर जोगिंद्रनगर की कलावती, सिरमौर की वनीता ठाकुर तथा शिमला की रमला देवी भी पदक जीत चुकी हैं। अंतर विश्वविद्यालय स्तर पर हमीरपुर के प्रशिक्षण केंद्र ने लगातार एक दशक तक हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय को पदक दिलाए हैं। कनिष्ठ राष्ट्रीय एथलेटिक्स में कई हिमाचली धावकों व धाविकाओं ने पदक जीते हैं। इस समय चंबा की सीमा कनिष्ठ एशियाई एथलेटिक्स में कांस्य पदक विजेता है, आजकल भोपाल में प्रशिक्षण प्राप्त कर रही है।

अंकेश चौधरी, सावन वरवाल व तमन्ना सहित और भी कुछ एक नाम हैं, जो आने वाले कल में हिमाचल को राष्ट्रीय स्तर पर पदक देकर भारत का प्रतिनिधित्व कर सकते हैं। आज हिमाचल के धावकों व धाविकाओं तथा उनके प्रशिक्षकों को सुविधा की कोई कमी नहीं है। पुष्पा ठाकुर व सुमन रावत की तरह उन्हें राज्य में सिंथैटिक ट्रैकों की कमी नहीं खलेगी। उस समय पंजाब या दिल्ली का सफर ट्रैक पर प्रशिक्षण के लिए करना पड़ता था। आज सब कुछ उपलब्ध है, देखते हैं कौन उत्तम प्रशिक्षण कर हिमाचल की पदक तालिका को राष्ट्रीय स्तर पर चमकाता है।

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