कल्याणकारी योजनाओं का पुनर्गठन

डा. भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

 

जीएसटी की प्राप्तियां वर्तमान में 12 लाख करोड़ रुपए प्रतिवर्ष हैं। सुझाव है कि इन पर 50 प्रतिशत का सेस लगाया जा सकता है। बताते चलें कि जीएसटी पर लगाए गए सेस से प्राप्ति पूर्णतया केंद्र सरकार को जाती है, जबकि जीएसटी स्वयं की प्राप्ति केंद्र और राज्य सरकार के बीच में बांटी जाती है। इस सेस से केंद्र सरकार को 6.0 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय हो सकती है। जीएसटी पर सेस लगाने का भार मुख्यतः उन लोगों पर ज्यादा पड़ेगा, जो बाजार से माल ज्यादा खरीदते हैं। इसलिए इसका प्रभाव अमीरों पर अधिक और गरीबों पर कम पड़ेगा…

बजट की एक चुनौती है कि मंद अर्थव्यवस्था में आम आदमी को राहत कैसे पहुंचाएं। एनडीए-1 सरकार द्वारा छोटे किसानों के लिए पेंशन योजना लागू की गई है। तमाम राज्यों ने वृद्धों इत्यादि को पेंशन देने की व्यवस्था कर रखी है। इन पेंशन व्यवस्थाओं को टार्गेटेड व्यवस्था कहा जा सकता है। इनके अंतर्गत समाज के किसी विशेष वर्ग को ही पेंशन दी जाती है। इस व्यवस्था में समस्या है कि रिसाव अधिक होता है। यूनिवर्सिटी आफ कैलिफोर्निया के प्रोफेसर प्रनव वर्द्धन द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि आधे गरीबों के पास बीपीएल (बिलो पावर्टी लाइन) कार्ड नहीं हैं और जो बीपीएल के नाम पर सुविधा दी जाती है, उसका तिहाई हिस्सा एपीएल (अबव पावर्टी लाइन) को जाता है। इस प्रकार यदि सरकार 75 रुपए की मदद देती है, तो उसमें 25 रुपए एपीएल को चला जाता है, केवल 50 रुपए बीपीएल को जाता है और आधे बीपीएल वंचित रह जाते हैं। यह व्यवस्था उपयुक्त नहीं है। चूंकि इसमें रिसाव भी है और सभी उपयुक्त लोगों को मदद नहीं मिलती है। सुझाव है कि देश के हर परिवार को एक निश्चित रकम सीधे उसके बैंक खाते में हर माह दे दी जाए। इसे यूनिवर्सल बेसिक इनकम स्कीम कहा जाता है। देश में तीस करोड़ परिवार हैं।

हर परिवार को यदि पांच हजार रुपए प्रति माह दिए जाएं, तो वर्ष में 60 हजार रुपए देने होंगे। इस सर्वव्यापी पेंशन व्यवस्था को लागू करने में 18 लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी। यह रकम विशाल है। वर्ष 2016-17 में केंद्र सरकार का कुल खर्च 19.6 लाख करोड़ रुपए था। वर्तमान में यह लगभग 23.0 लाख करोड़ रुपए होगा। ऐसे में 18.0 लाख करोड़ की रकम जुटाना कठिन लगता है, लेकिन यह उतना कठिन नहीं है जितना कि दिखता है। इसे निम्नलिखित 4 स्रोतों से अर्जित किया जा सकता है। पहला स्रोत पेट्रोल पर टैक्स लगाने का है। वर्तमान में पेट्रोल से लगभग 3.0 लाख करोड़ रुपए का टैक्स केंद्र सरकार को हर वर्ष मिलता है, जबकि पेट्रोल पर टैक्स की दर लगभग 15 रुपए प्रति लीटर की है। सुझाव है कि इसे तीन गुणा बढ़ा दिया जाए। पेट्रोलियम पदार्थों पर टैक्स बढ़ाकर 45 रुपए प्रति लीटर कर दिया जाए। ऐसा करने से पेट्रोल, जो वर्तमान में 70 रुपए प्रति लीटर बिक रहा है, उसका दाम 100 रुपए प्रति लीटर हो जाएगा। साथ-साथ सरकार को 6.0 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय हो जाएगी। पेट्रोल के महंगा होने से पेट्रोल की खपत में भी कुछ कमी होगी, जिससे हमारी आयातों पर निर्भरता कम होगी। आयातों के लिए विदेशी मुद्रा को अर्जित करना भी हमारे लिए जरूरी नहीं रह जाएगा। ये अतिरिक्त लाभ होंगे। यह भार मुख्यतः उन लोगों पर पड़ेगा, जो कि पेट्रोल का उपयोग अधिक करते हैं अथवा आवागमन ज्यादा करते हैं। गरीब कम ही आवागमन करता है, इसलिए उस पर भार कम पड़ेगा। दूसरा स्रोत वर्तमान में लागू तमाम जन कल्याणकारी योजनाएं हैं। इन योजनाओं का उद्देश्य गरीब को मदद पंहुचाना है, लेकिन उन पर किए गए खर्च का बड़ा हिस्सा प्रशासन में चला जाता है। वर्तमान में इन परियोजनाओं पर केंद्र सरकार द्वारा लगभग 8.4 लाख करोड़ रुपए प्रतिवर्ष खर्च किया जा रहा है। इनमें से दो-तिहाई योजनाओं को पूरी तरह समाप्त किया जा सकता है, जिससे 5.7 लाख करोड़ रुपए की बचत हो जाएगी। इसी प्रकार खाद्य सबसिडी का वर्तमान में बोझ लगभग 1.6 लाख करोड़ रुपए है। इस व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त किया जा सकता है, क्योंकि हर परिवार को पांच हजार रुपए प्रति माह की रकम सीधे दी जाएगी, जिससे वह खाद्य पदार्थ बाजार से बाजार भाव पर खरीद सकता है एवं अन्य कल्याणकारी जरूरतों को पूरा कर सकता है। इस मद से 1.6 लाख करोड़ रुपए बचाए जा सकते हैं। इन दोनों कल्याणकारी योजनाओं को बंद करने से गरीब के लिए खर्च किया जाने वाला 7.3 लाख करोड़ रुपए बंद हो जाएगा, परंतु गरीब को इतना नुकसान नहीं होगा। मेरा अनुमान है कि इन योजनाओं में प्रशासनिक खर्च आधा पड़ता है। इस प्रकार गरीब केवल 3.7 लाख करोड़ रुपए की मदद से वंचित होगा। इससे ज्यादा रकम उसे सीधे पेंशन से मिल जाएगी। अतः गरीब पर विपरीत प्रभाव नहीं पड़ेगा। इन योजनाओं को बंद करने से असल नुकसान इनमें कार्य करने वाले सरकारी कर्मियों को होगा। चौथा स्रोत जीएसटी का है। जीएसटी की प्राप्तियां वर्तमान में 12 लाख करोड़ रुपए प्रतिवर्ष हैं। सुझाव है कि इन पर 50 प्रतिशत का सेस लगाया जा सकता है। बताते चलें कि जीएसटी पर लगाए गए सेस से प्राप्ति पूर्णतया केंद्र सरकार को जाती है, जबकि जीएसटी स्वयं की प्राप्ति केंद्र और राज्य सरकार के बीच में बांटी जाती है।

इस सेस से केंद्र सरकार को 6.0 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त आय हो सकती है। जीएसटी पर सेस लगाने का भार मुख्यतः उन लोगों पर ज्यादा पड़ेगा, जो बाजार से माल ज्यादा खरीदते हैं। इसलिए इसका प्रभाव अमीरों पर अधिक और गरीबों पर कम पड़ेगा। इन चारों मदों से सरकार 19.3 लाख करोड़ रुपए अर्जित कर सकती है। इस रकम का उपयोग देश के हर परिवार को पांच हजार रुपए प्रति माह देने के लिए जरूरी 18.0 लाख करोड़ रुपए जुटाने के लिए किया जा सकता है। सही है कि जीएसटी केंद्र सरकार के सीधे नियंत्रण में नहीं है, परंतु वित्त मंत्री बजट में घोषणा कर सकते हैं कि सरकार यह प्रस्ताव जीएसटी काउंसिल में लाएगी। मेरा आकलन है कि इन परिवर्तनों से अमीर पर भार बढ़ेगा, जबकि गरीब पर कुल मिलाकर भार घटेगा। अमीर पर भार बढ़ेगा, क्योंकि वह पेट्रोलियम और बाजार से खरीदे गए माल की खपत ज्यादा करता है और गरीब पर प्रभाव न्यून होगा, क्योंकि कल्याणकारी योजनाओं से जितना उसे वंचन होगा, उससे ज्यादा रकम उसे पेंशन से सीधे मिल जाएगी। इस परिवर्तन से अर्थव्यवस्था भी चल पड़ेगी।

अर्थशास्त्र में एक कंसेप्ट है ‘प्रोपेंसिटी टू कंज्यूम’ यानी यदि आपको 100 रुपए मिलते हैं, तो उसमें आप कितना खर्च करते हैं और कितना बचत करते हैं। अमीर की प्रोपेंसिटी टू कंज्यूम कम होती है और गरीब की अधिक। अमीर को यदि 100 रुपए अतिरिक्त मिलते हैं, तो वह उसमें से 20 रुपए खर्च करता है और 80 रुपए बचाता है। गरीब को यदि 100 रुपए अतिरिक्त मिलते हैं, तो वह 80 रुपए खर्च करता है और 20 रुपए बचाता है। अमीर पर टैक्स का वजन बढ़ने से जितनी खपत में कमी होगी, उससे कई गुना ज्यादा गरीब को पेंशन मिलने से खपत बढ़ेगी। इस प्रकार पूरे बाजार में मांग बढ़ेगी और अर्थव्यवस्था चल निकलेगी। आगामी बजट के लिए जरूरी है कि इस प्रकार के मौलिक सुधारों पर ध्यान दिया जाए।

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