कश्मीर समस्या का साहसिक समाधान

प्रो. एनके सिंह

अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन सलाहकार

चूंकि भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर के संविधान से पूरी तरह अखंडित नहीं था, इसलिए इसे लागू करने के लिए पहले एक आदेश जारी किया गया।  दूसरे, बदलाव लाने की शक्ति को कायम रखने के अलावा अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया। उसी दिन एक प्रस्ताव पास करके पुनर्गठन की शक्ति हासिल की गई। अतः यह विधान आया कि जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन होगा तथा लद्दाख को केंद्र प्रशासित प्रदेश के रूप में गठित किया जाएगा। तीन, विधेयक को पास करने तथा लागू करने के लिए ऐहतियाती कदम तथा तैयारियां विस्तार से की गईं…

एक राज्य के भीतर राज्य संबंधी जम्मू-कश्मीर की अजीब समस्या के समाधान की कभी भी आशा नहीं थी। भारत द्वारा संभावनाओं की नई फिजाओं के विकास के लिए शक्ति की तलाश भी पहली बार ही हुई है। पाकिस्तान हमेशा से ही इस राज्य में शांति को जेहादी आतंक के अलावा घुसपैठ के जरिए विध्वंसकारी पेचीदगियां पैदा करता जा रहा था। भारत में कई लोग अभी भी अनुच्छेद 370 के खात्मे को लेकर सचेत नहीं थे। इसी अनुच्छेद के कारण कश्मीर में दो झंडे तथा दो संविधान थे। इस विसंगति को दूर करने के लिए पहले भी कई बार प्रयास हुए थे, किंतु कश्मीर के नेताओं की ओर से विरोध तथा धमकियों के चलते किसी ने भी इस पर कार्रवाई करने का साहस नहीं जुटाया।

मुफ्ती तथा अन्य कश्मीरी नेताओं ने धमकी भी दी कि अगर इस विशेष सुविधा को खत्म किया गया तो भूचाल आ जाएगा तथा श्रीनगर की गलियों में खून बहने लगेगा। दक्षतापूर्वक जब इस विराट बदलाव को लाया गया तो रिरियाने तक की आवाज नहीं आई। इस अनुच्छेद को हटाने की पूरी प्रक्रिया के क्या निहितार्थ हैं तथा क्या पेचीदगियां हैं, उन्हें कुछ लोग ही जानते हैं। सरकार ने साहसिक ढंग से इस प्रक्रिया को अंजाम दिया है। निहितार्थ व पेचीदगियों को आसानी से पेश करने के लिए मैं यहां कुछ चरणों का उल्लेख करना चाहूंगा। प्रथम, डेक्स साफ थीं।

चूंकि भारत का संविधान जम्मू-कश्मीर के संविधान से पूरी तरह अखंडित नहीं था, इसलिए इसे लागू करने के लिए पहले एक आदेश जारी किया गया।  दूसरे, बदलाव लाने की शक्ति को कायम रखने के अलावा अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया। उसी दिन एक प्रस्ताव पास करके पुनर्गठन की शक्ति हासिल की गई। अतः यह विधान आया कि जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन होगा तथा लद्दाख को केंद्र प्रशासित प्रदेश के रूप में गठित किया जाएगा। तीन, विधेयक को पास करने तथा लागू करने के लिए ऐहतियाती कदम तथा तैयारियां विस्तृत में की गईं। कश्मीर में ऐहतियात के लिए पूरे सुरक्षा बल तथा कानूनी व्यवस्था प्रबंध किए गए। चौथे, विधान को अंजाम देने के लिए नवाचारी रणनीति अपनाई गई।

आम तौर पर कोई विधेयक पहले लोकसभा में पेश किया जाता है, किंतु इस मामले में इसके उलट पहले राज्यसभा में इसे पारित किया गया। जिस सदन में भाजपा के पास बहुमत नहीं था, उसमें पहले शक्ति का परीक्षण किया गया। राजनीतिक दलों से आवश्यक समर्थन जुटाने के लिए लॉबिंग की गई। विधेयक न केवल इस सदन में पारित हुआ, बल्कि इसका विरोध करने वाली कांग्रेस को भी इससे क्षति पहुंची क्योंकि इसके कुछ सदस्यों ने बिल के पक्ष में मतदान किया। यह एक बड़ी राजनीतिक व वैधानिक उपलब्धि है कि इस विधेयक को दोनों सदनों ने दो-तिहाई से अधिक बहुमत से पारित कर दिया। इस विधेयक को सजगता के साथ रोपित किया गया तथा बाद में हैंडल भी किया गया कि दोनों सदनों में यह पारित हो गया।  इस बिल को पारित कराने का श्रेय गृह मंत्री अमित शाह को जाता है जिन्होंने दोनों सदनों में घोषणा की कि उन्हें विधेयक के न्यायिक जांच में भी खरा उतरने की पूरी आशा है। यह पहला मौका है जब भारतीय तिरंगा अकेले से ही जम्मू-कश्मीर सचिवालय की छत पर लहराया गया। इससे पहले वहां भारतीय झंडे के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर का अपना झंडा भी लहराया जाता था।

भारतीय इतिहास में यह पहला मौका है जब एक देश, एक झंडा व एक विधान का सपना पूरा हुआ है। इससे पाकिस्तान को गहरा धक्का लगा, किंतु यह किसी सरकार की अपने ही राज्य में कार्रवाई थी, न कि किसी दूसरे देश के राज्य में। इससे पाकिस्तान को कोई लेना-देना नहीं है। इसने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को भी हतोत्साहित कर दिया। इमरान खान को आशा थी कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस मामले में पाकिस्तान का साथ देंगे, लेकिन जी-सात मीटिंग के दौरान जिस तरह ट्रंप और मोदी आपस में गर्मजोशी से मिले, उसने इमरान के दिवास्वप्न को तोड़ कर रख दिया। सोशल मीडिया में वह फोटो तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें मोदी व ट्रंप आपस में खूब मजाक कर रहे हैं। बड़ी बात यह है कि ट्रंप इस बात पर सहमत हुए कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मसला है तथा इसे पारस्परिक रूप से सुलझाया जाना चाहिए। अब यह टिप्पणियां भी आने लगी हैं कि भारत के भारत के अंदर ही बाहर से ज्यादा दुश्मन हैं।

अब यह आलोचना शुरू हो गई है कि अनुच्छेद 370 को हटाने का क्या औचित्य है जबकि कई भारतीय राज्यों की भी अपनी सीमाएं हैं। ऐसे लोग पूरी तरह निरक्षर हैं तथा वे अंतर को जानने में अनजान हैं। इस विषय में मेरी व्याख्या कई गलत अवधारणाओं को स्पष्ट करती है। भारतीय राज्यों की अपनी कुछ सीमाएं जरूर हैं, लेकिन राज्य के भीतर राज्य का अलग अस्तित्व नहीं हो सकता। हिमाचल में कोई भी उद्योग व शिक्षा के लिए सरकार की पूर्व अनुमति से संपत्ति खरीद सकता है।

हिमाचल में संपत्ति खरीदने पर जो पाबंदियां हैं, वे इस सीमा तक हैं कि कोई बाहरी गैर-किसान कृषि भूमि को नहीं खरीद सकता है अथवा यहां तक कि हिमाचल का निवासी भी राज्य में संपत्ति नहीं खरीद सकता अगर उसके पास राज्य में कृषि योग्य जमीन नहीं है।  कई ऐसे राज्य हैं जो जनजातीय लोगों का संरक्षण करते हैं तथा पूर्वोत्तर में उनके अधिकार तथा परंपराएं संरक्षित की गई हैं। हिमाचल को पर्यटन, हस्तशिल्प तथा शिक्षा जैसे पर्यावरण मित्र उद्योगों को विकसित करने के लिए एक व्यापक नीति बनानी चाहिए। जो पाबंदियां हिमाचल व अन्य राज्यों में हैं, उन्हें जहां जरूरत हो, बुद्धिमता पूर्ण ढंग से चयनित किया जा सकता है। अनुच्छेद 370 को हटाना तथा पूर्णता में भारतीय संविधान को लागू करना बहुत समय से उन लोगों का सपना रहा है जो देश के लिए भक्ति भावनाएं रखते हैं। मैंने कभी नहीं कल्पना की थी कि यह संभव हो पाएगा। लेकिन अब कहा जा रहा है कि कोई अन्य इसे संभव नहीं कर पाया, बल्कि मोदी ने इसे संभव कर दिखाया। इस फैसले से सबसे ज्यादा खुश मेरे घर में मेरी पत्नी है जो जम्मू से है। वह जम्मू-कश्मीर में संपत्ति खरीदने में अब तक मेरी मदद नहीं कर पाई थी, जबकि पाकिस्तान में ब्याहे लोग ऐसा कर पाते हैं। हम अब एक भारत, एक झंडे से खुश हो रहे हैं। 

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