हिमाचल खेल प्राधिकरण कब बनेगा?

भूपिंदर सिंह

राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक

राज्य खेल परिषद की तरह हिमाचल प्रदेश युवा बोर्ड का भी गठन होता है। हिमाचल प्रदेश में पिछले दो दशकों से खेल प्राधिकरण गठन की घोषणा तो जरूर की थी, मगर सत्ता में आने के बाद फिर खेल प्राधिकरण पर चर्चा भी नहीं हुई थी…

हिमाचल प्रदेश में खेलों का जिम्मा हिमाचल प्रदेश युवा सेवाएं एवं खेल विभाग पर है। वैसे तो राज्य में हिमाचल प्रदेश खेल परिषद का भी गठन है। इसका अध्यक्ष राज्य का मुख्यमंत्री, वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रदेश का युवा सेवाएं एवं खेल मंत्री व सचिव मुख्य सेवाएं एवं खेल विभाग का निदेशक होता है। राज्य के सभी पंजीकृत खेल संघ इसके सदस्य होते हैं। साथ ही साथ कुछ पूर्व खिलाडि़यों व प्रशिक्षकों का भी मनोनयन किया जाता है। इस राज्य खेल परिषद की तर्ज पर जिला स्तर पर भी खेल परिषद का गठन हुआ है।  जिला का उपायुक्त इसका अध्यक्ष तथा जिला युवा सेवाएं एवं खेल अधिकारी इसका सचिव होता है तथा सभी जिला में पंजीकृत खेल संघ इसके सदस्य होते हैं। जिला स्तर पर इस समय केवल मंडी जिला खेल परिषद ही वर्ष में एक-दो बार अपनी बैठकें कर लेती है और अन्य खेल परिषदों की बैठक शायद ही किसी जिले में पिछले कई वर्षों से हुई हो। राज्य युवा सेवाएं एवं खेल विभाग के पास युवा गतिविधियों का भी जिम्मा है। राज्य खेल परिषद की तरह हिमाचल प्रदेश युवा बोर्ड का भी गठन होता है। हिमाचल प्रदेश में पिछले दो दशकों से खेल प्राधिकरण गठन की घोषणा तो जरूर की थी, मगर सत्ता में आने के बाद फिर खेल प्राधिकरण पर चर्चा भी नहीं हुई थी। अनुराग ठाकुर राज्य खेल संस्थान की  वकालत करते रहे हैं, मगर राज्य की खेलें उसी कछुआ चाल से चल रही हैं।

प्रो. प्रेम कुमार धूमल ने अपने दोनों कार्यकालों में प्रदेश को विश्वस्तरीय खेल ढांचा कई खेलों के लिए दिया है। आज हाकी, एथलेटिक्स सहित कई खेलों की प्ले फील्ड अंतरराष्ट्रीय स्तर की हिमाचल प्रदेश में उपलब्ध है, मगर इसका उपयोग ठीक ढंग से नहीं हो रहा है। प्रदेश का जलवायु खेलों के लिए बहुत ही अच्छा है। हिमाचल में यूरोप तथा अमरीका की तरह जलवायु गर्मियों में रहता है। देश की कई राष्ट्रीय टीमों के प्रशिक्षण शिविर अब हिमाचल में लगने लगे हैं। ऐसे में हिमाचल प्रदेश में खेल प्रशासन के लिए सही योजना की जरूरत है। हिमाचल प्रदेश में खेल प्राधिकरण का गठन होता है तो राज्य में खेलों को एक विशेष गति मिलेगी। जो खेल ढांचा आज करोड़ों खर्च करके लावारिस पड़ा है, उसे सही उपयोग में लाने के लिए तथा राज्य के किशोरों व युवाओं को नशे से बचाकर खेल मैदान पहुंचाने के लिए आज प्रदेश में एक राजनीतिक सोच की जरूरत है। अगर राज्य में खेल प्राधिकरण का गठन होता है तो इसके खेल संघों व प्राधिकरण के बीच जब समन्वय स्थापित होगा तो प्रदेश के लाखों किशोरों व युवाओं को फिटनेस के लिए खेल मैदानों में पहुंचाकर उनमें से भविष्य के स्टार खिलाड़ी भी खोजे जाएंगे, जो देश को एशियाई व विश्व स्तर पर पदक दिलाने में पहाड़ की भूमिका अदा करेंगे। दक्षिण के कई राज्यों ने खेल प्राधिकरण बनाकर अपने यहां खेलों के लिए सही योजना तैयार कर कई अंतरराष्ट्रीय स्तर केखिलाड़ी निकाले हैं। खेल विभाग के पास मुट्ठी भर प्रशिक्षक व अन्य कर्मचारी होने के कारण इस विभाग को आज तक नियमित निदेशक भी नहीं मिल पाया है। किसी भी प्रशासनिक अधिकारी के पास इस विभाग का अतिरिक्त निदेशक का जिम्मा होता है। खेलों से अधिक प्रदेश में युवा गतिविधियों का काम होता है। खिलाड़ी मैदान में चुपचाप सैनिक की तरह अपना प्रशिक्षण चलाता रहता है। उसकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं होता है। राज्य खेल परिषद की सालों बाद कभी बैठक हो पाती है। जब खेल शिक्षा की तरह राज्य सूची का विषय है तो राज्य में खेल उत्थान का जिम्मा भी राज्य सरकार का बनता है। विभिन्न खेल संघों द्वारा राज्य में खेलों की नियमावली व खेल प्रतियोगिताएं संचालित होती हैं। ऐसे में खेल प्राधिकरण का गठन  बहुत जरूरी हो जाता है। क्योंकि खेल संघों पर नजर रखने के साथ-साथ उन्हें आर्थिक व तकनीकी सहायता उपलब्ध कराना भी सरकार का ही काम है। यहां पर आज नशे की चपेट में प्रदेश की किशोर व युवा पीढ़ी आ चुकी है। इस सबसे बचने के लिए खेल सबसे उत्तम माध्यम है। इस पहाड़ी प्रदेश की संतानें चुस्त-दुरुस्त रहें और अति प्रतिभावना युवा खेलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे ऊपर उठाकर प्रदेश व देश का नाम रोशन करे। इस सबके लिए प्रदेश में खेल प्राधिकरण या पंजाब की तरह राज्य खेल संस्थान की स्थापना की जाए।