प्रदेश पुलिस खेलों के प्रति उदासीन क्यों?

भूपिंदर सिंह

राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रशिक्षक

हिमाचल प्रदेश में रह कर प्रशिक्षण प्राप्त कर राष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करना बहुत कठिन है। यही कारण है कि राज्य में अच्छा प्रशिक्षण कार्यक्रम न होने के कारण प्रतिभाशाली खिलाड़ी अधिकतर हिमाचल से पलायन कर जाते हैं। कनिष्ठ स्तर पर प्रतिभा खोज के बाद खिलाडि़यों के लिए स्कूली स्तर पर खेल छात्रावास हैं। बीस वर्ष आयु वर्ग के खिलाडि़यों को राज्य युवा सेवाएं एवं खेल विभाग व भारतीय खेल प्राधिकरण के छात्रावास में कुछ खेलों में प्रशिक्षण कार्यक्रम चलता है जो पर्याप्त नहीं है। अगर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर के पदक ओलंपिक में होने वाली खेलों में जीतना है तो खिलाड़ी को दस वर्ष से भी अधिक समय अवधि चाहिए होती है…

हिमाचल प्रदेश में आज विश्व स्तर की प्ले फील्ड विभिन्न खेलों के लिए उपलब्ध हैं मगर राष्ट्रीय स्तर की खेल प्रतियोगिताओं की पदक तालिका में हिमाचल प्रदेश का स्थान या तो मिलता ही नहीं है, अगर कभी मिल भी जाए तो वह बहुत नीचे होता है। हिमाचल प्रदेश में रह कर प्रशिक्षण प्राप्त कर राष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन करना बहुत कठिन है। यही कारण है कि राज्य में अच्छा प्रशिक्षण कार्यक्रम न होने के कारण प्रतिभाशाली खिलाड़ी अधिकतर हिमाचल से पलायन कर जाते हैं। कनिष्ठ स्तर पर प्रतिभा खोज के बाद खिलाडि़यों के लिए स्कूली स्तर पर खेल छात्रावास हैं। बीस वर्ष आयु वर्ग के खिलाडि़यों को राज्य युवा सेवाएं एवं खेल विभाग व भारतीय खेल प्राधिकरण के छात्रावास में कुछ खेलों में प्रशिक्षण कार्यक्रम चलता है जो प्रर्याप्त नहीं है। अगर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर के पदक ओलंपिक में होने वाली खेलों में जीतना है तो खिलाड़ी को दस वर्ष से भी अधिक समय अवधि चाहिए होती है। इतने लंबे अरसे में खिलाड़ी नौकरी तक पहुंच चुका होता है, इसलिए केंद्र सरकार के कई विभाग व राज्यों में पुलिस विभाग अच्छे खिलाडि़यों को अपने यहां भर्ती कर उन्हें प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध करवाते हैं।

हिमाचल प्रदेश में नौकरी में आने के बाद खिलाड़ी कर्मचारियों को अपना खेल जारी रखने में दिक्कतें पेश आती हैं। इसलिए अधिकतर खिलाड़ी कर्मचारी खेलों को अलविदा कह कर आम कर्मचारी या अधिकारी हो जाता है। हिमाचल प्रदेश में तीन दशक पहले राज्य विद्युत बोर्ड अपने यहां खिलाड़ी भर्ती करवा कर अपनी खेलें भी करवाता था। हिमाचल प्रदेश वन विभाग में खेल आरक्षण से कई खिलाड़ी नियुक्ति प्राप्त कर नौकरी कर रहे हैं। वन विभाग के पास सीमित कर्मचारी होने के कारण अपना अलग प्रशिक्षण कार्यक्रम नहीं है, फिर भी उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ी कर्मचारियों को वह प्रशिक्षण के लिए समय दे  देता है। हिमाचल प्रदेश पुलिस के पास नफरी हजारों में है। पुलिस विभाग चाहे तो वह अपने खिलाडि़यों के लिए प्रशिक्षण शिविर लगवा सकता है। पहले हिमाचल प्रदेश पुलिस विभाग कई खेलों में लंबी अवधि के प्रशिक्षण शिविर लगवा चुका है। मगर उचित निरीक्षण के अभाव में यह कार्यक्रम असफल रहा था। कुछ चुनिंदा खिलाडि़यों को प्रशिक्षण के लिए समय दिया भी जाता है मगर यह सब बहुत ही कम है। प्रतिभा व सुविधा के हिसाब से विभिन्न खेलों की टीमें गठित कर उन्हें लंबी अवधि के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भेजना चाहिए। वर्षों पहले पंजाब पुलिस के तत्कालीन डीजीपी एमएस भुल्लर ने जब वे अभी एडीजीपी पीएपी थे, उन्होंने सैकड़ों खिलाडि़यों को भर्ती कर उनको प्रशिक्षण सुविधा देकर राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता बनने में खूब सहायता की थी। उसी कार्यकाल में पंजाब पुलिस ने जालंधर व अन्य जगहों पर बहुत अच्छे खेल मैदान तैयार करवाए ।

पंजाब पुलिस के पास इस समय विभिन्न खेलों के दर्जनों राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता खिलाड़ी हैं, अब उन का प्रतियोगी खेल जीवन खत्म हो चुका है। इन के खेल अनुभव का सही उपयोग करने के लिए पंजाब पुलिस प्रशासन ने शिक्षा विभाग के साथ समन्वय स्थापित कर इन उत्कृष्ट खिलाडि़यों कर्मचारियों व अधिकारियों को स्कूलों व अन्य शिक्षा संस्थानों में वहां की प्ले फील्ड व अन्य खेल सुविधाओं को देखते हुए विद्यार्थी खिलाडि़यों के प्रशिक्षण के लिए प्रतिनियुक्त किया है। क्या हिमाचल प्रदेश सरकार ऐसा नहीं कर सकती है। यहां भी हिमाचल प्रदेश पुलिस के पास विभिन्न खेलों के राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी हैं जो खेल छोड़ चुके हैं। इन खिलाड़ी कर्मचारियों व अधिकारियों को शिक्षा संस्थानों में खिलाड़ी विद्यार्थियों के प्रशिक्षण के लिए प्रतिनियुक्त किया जा सकता है। पंजाब पुलिस की तरह ही कई राज्यों ने अपने कुछ विभागों तथा केंद्र सरकार में सेना, सुरक्षाबलों, रेलवे आदि कई विभागों में उभरते खिलाडि़यों की नियुक्ति कर उन्हें अच्छे प्रशिक्षण कार्यक्रम का प्रबंध किया जाता है। हिमाचल पुलिस को चाहिए कि वह भी अपने पास जो मैदान हैं उन्हें खेलने योग्य बनाए। अपने खिलाडि़यों को अच्छे प्रशिक्षकों के पास लंबी अवधि के प्रशिक्षण शिविर लगाएं तथा उन का मूल्यांकन व निरीक्षण भी समय-समय पर करते रहे। देखते हैं कौन-कौन आईपीएस  हिमाचल प्रदेश की खेलों को गति देकर हिमाचल के खेल इतिहास में दर्ज होते हैं। 

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