सार्वजनिक इकाइयों का लाभ

भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

महंगी बिजली को बेचकर टीएचडीसी भारी लाभ कमा रही है। 11 रुपए में बेची गई बिजली का बोझ अंततः देश के नागरिक पर पड़ता है जिसके द्वारा इस बिजली को खरीदा जाता है। इस प्रकार टीएचडीसी द्वारा जनता का दोहन किया जा रहा है और गंभीर बात यह है कि इस अनुचित लाभ का निवेश टीएचडीसी द्वारा एक और जल विद्युत परियोजना को बनाने में लगाया जा रहा है…

सरकार ने भारत पेट्रोलियम, शिपिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया और कोनकोर नाम की तीन सार्वजनिक इकाई का निजीकरण करने का निर्णय लिया है। निजीकरण के अंतर्गत इन इकाइयों के सरकार के पास जो शेयर हैं उन्हें किसी विशेष निजी खरीददार को एकमुश्त बेच दिया जाएगा। इस बिक्री के बाद खरीददार के हाथ में इन इकाइयों का नियंत्रण स्थानांतरित हो जाएगा। इस कदम का स्वागत करना चाहिए क्योंकि सरकारी इकाइयों द्वारा जनहित नहीं बल्कि जनता की हानि की जाती है। ये अकुशल हैं अतः इन्हें सरकारी दायरे में रखने से इनके द्वारा अर्जित घाटे की भरपाई जनता की गाढ़ी कमाई से की जाती है। इनके निजीकरण से जनता को राहत मिलेगी, साथ-साथ सरकार ने दो जल विद्युत कंपनियों को नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन ‘एनटीपीसी’ को बेचने का निर्णय लिया है। इन दोनों सरकारी कंपनियों को तीसरी सरकारी विद्युत कंपनी को बेचा जाएगा। ये दो कंपनियां है नॉर्थ ईस्ट इलेक्ट्रिक पावर कंपनी ‘नीपको’ जो कि पूर्वोत्तर राज्यों में जल विद्युत बनाती है और टिहरी हाइड्रो डिवेलपमेंट कारपोरेशन ‘टीएचडीसी’ जो उत्तराखंड में जल विद्युत बनाती है। इन दोनों इकाइयों के सरकारी शेयरों को तीसरी सरकारी इकाई एनटीपीसी को बेच दिया जाएगा। इन इकाइयों पर सरकार का नियंत्रण पूर्ववत बरकरार रहेगा। वर्तमान में इन इकाइयों पर सरकार का नियंत्रण सीधा है। ऊर्जा मंत्रालय के सचिव इनका नियंत्रण करते हैं।

प्रस्तावित विनिवेश के बाद भी ऊर्जा मंत्रालय के सचिव ही इन कंपनियों पर नियंत्रण करेंगे। अंतर सिर्फ  यह होगा कि ऊर्जा मंत्रालय के सचिव द्वारा नेशनल थर्मल पावर कारर्पोरेशन ‘एनटीपीसी’ पर नियंत्रण किया जाएगा और नेशनल थर्मल पावर कारर्पोरेशन के मुख्य अधिकारी इन इकाइयों का नियंत्रण करेंगे। केवल टोपी बदल जाएगी। यह घुमावदार नियंत्रण अनुचित है क्योंकि इन इकाइयों द्वारा जनता का शोषण किया जा रहा है। टीएचडीसी द्वारा उत्पादित बिजली को विभिन्न राज्यों को 11 रुपए प्रति यूनिट में बेचा जा रहा है। यह बिजली आज इंडिया एनर्जी एक्सचेंज में 3 रुपए में उपलब्ध है। इंडिया एनर्जी एक्सचेंज में बिजली की खरीद-बिक्री निरंतर चलती रहती है।

अतः किसी भी राज्य के पास विकल्प है कि वह टीएचडीसी से 11 रुपए में बिजली खरीदे अथवा 3 रुपए में इंडिया एनर्जी एक्सचेंज से, लेकिन तमाम राज्यों ने टीएचडीसी से खरीद के अनुबंध कर रखे हैं, इसलिए ये महंगी बिजली खरीदने को मजबूर हैं। इस महंगी बिजली को बेचकर टीएचडीसी भारी लाभ कमा रही है। 11 रुपए में बेची गई इस बिजली का बोझ अंततः देश के नागरिक पर पड़ता है जिसके द्वारा इस बिजली को खरीदा जाता है। इस प्रकार टीएचडीसी द्वारा जनता का दोहन किया जा रहा है और गंभीर बात यह है कि इस अनुचित लाभ का निवेश टीएचडीसी द्वारा एक और जल विद्युत परियोजना को बनाने में लगाया जा रहा है जो पुनः महंगी बिजली बनाकर हानि करेगी। जैसे दुकानदार घटिया माल बेचकर पहले उपभोक्ता को बेवकूफ बनाए और उसके बाद इस घटिया माल की बिक्री से हुए लाभ से पुनः और अधिक घटिया माल खरीदे, उसी प्रकार की टीएचडीसी की हालत है। टीएचडीसी द्वारा विष्णुगाड-पीपलकोटी जल विद्युत परियोजना बनाई जा रही है। इस परियोजना को 2008 में केंद्र सरकार द्वारा 2400 करोड़ रुपए में बनाने की स्वीकृति दी गई थी। उस समय इस परियोजना से उत्पादित बिजली का दाम 2.26 रुपए प्रति यूनिट था। इस परियोजना को 2013 में बनकर तैयार होना था, लेकिन टीएचडीसी की अकुशलता के कारण यह परियोजना आज 2020 में भी बनकर तैयार नहीं हुई है। टीएचडीसी का कहना है कि यह 2022 में बनकर तैयार हो जाएगी। 2013 से 2023 की अवधि में इस परियोजना की लागत 2400 करोड़ से बढ़कर 4400 करोड़ रुपए हो गई है। तदानुसार इस परियोजना द्वारा उत्पादित बिजली की लागत 2.26 रुपए से बढ़कर 5.06 रुपए प्रति यूनिट हो गई है। जिस प्रकार अभी तक इस परियोजना को बनाने में देरी हुई है, यदि टीएचडीसी का यही रवैया जारी रहा तो यह परियोजना 2022 में भी बनकर तैयार नहीं होगी और इस परियोजना से उत्पादित बिजली का मूल्य 5 रुपए से बढ़कर 10 रुपए भी हो सकता है। विष्णुगाड-पीपलकोटी परियोजना द्वारा बनाई गई बिजली से जनता को नुकसान होगा क्योंकि वही बिजली इंडिया एनर्जी एक्सचेंज पर वर्तमान में 3.07 रुपए प्रति यूनिट में उपलब्ध है। वर्ष 2011-14 में इंडिया एनर्जी एक्सचेंज में बिजली का औसत मूल्य 3.38 रुपए प्रति यूनिट था। वर्ष 2015-19 में यह मूल्य घटकर 3.07 रुपए प्रति यूनिट हो गया है।

यदि बिजली के मूल्य में गिरावट का यह कदम जारी रहा तो 2022 में यह घटकर 2.76 रुपए प्रति यूनिट हो जाएगा। अर्थ हुआ कि विष्णुगाड-पीपलकोटी परियोजना द्वारा उत्पादित बिजली जो 5.06 रुपए में बेची जाएगी, वह वास्तव में बाजार में 2.76 रुपए में उपलब्ध है। इस बिजली को महंगा बेचकर टीएचडीसी लाभ कमाएगी, यद्यपि यह जनता के लिए हानिप्रद है क्योंकि उसे अनायास ही महंगी बिजली खरीदनी पड़ेगी। प्रश्न उठता है कि राज्य के बिजली बोर्डों द्वारा यह महंगी बिजली क्यों खरीदी जाए? टीएचडीसी ने कई राज्यों के बिजली बोर्डों के साथ अनुबंध कर रखे हैं जिसके अंतर्गत परियोजना से उत्पादित बिजली का मूल्य परियोजना की लागत के आधार पर तय होता है। जैसे यदि परियोजना पूर्व निर्धारित 2400 करोड़ रुपए में पूरी हो जाती तो बिजली का मूल्य 2.26 रुपए प्रति यूनिट होता, लेकिन परियोजना की लागत बढ़कर 4400 करोड़ हो गई है, इसलिए बिजली का मूल्य भी 5.06 रुपए प्रति यूनिट हो गया है, लेकिन क्योंकि राज्यों ने इस बिजली को खरीदने का अनुबंध कर रखा है और परियोजना द्वारा उत्पादित बिजली का मूल्य सेंट्रल रेगुलेटरी अथॉरिटी द्वारा तय होता है, इसलिए राज्यों को इस महंगी बिजली को खरीदने पर मजबूर होना पड़ेगा। लगभग यही हालत दूसरी इकाई नीपको की है। इस परियोजना द्वारा भी कथित रूप से लाभ कमाया जा रहा है, लेकिन महंगी बिजली बेची जा रही है। इस परियोजना की आंतरिक हालत का अंदाज इस बात से पता लगता है कि नीपको द्वारा 300 करोड़ रुपए का बांड बाजार में बेचने के प्रयास किया था, लेकिन केवल 13 करोड़ रुपए के ही बिके। यानी बाजार को इस कंपनी पर भरोसा नहीं है। टीएचडीसी और नीपको के शेयरों की बिक्री अपनी ही दूसरी इकाई को करने का उद्देश्य सिर्फ  यह दिखता है कि सरकार अपने निवेश की उगाही कर सके। एनटीपीसी ने कुछ लाभ कमा रखे हैं। उस रकम का उपयोग वह टीएचडीसी और नीपको को खरीदने में लगाएगा और वह रकम केंद्र सरकार के हाथ में आ जाएगी। सरकार के दोनों हाथ में लड्डू हैं। शेयर का मूल्य मिल जाएगा और नियंत्रण भी सचिव महोदय के हाथ में ही रहेगा। इस प्रकार टोपी घुमाने से इन कंपनियों द्वारा जनता को महंगी बिजली बेचने का क्रम जारी रहेगा। सरकार को चाहिए कि समस्त सार्वजनिक इकाइयों की सामाजिक आकलन अथवा सोशल ऑडिट कराए कि इनके द्वारा जनहित वास्तव में हासिल हो रहा है या नहीं। इन्हें सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर इनका पूर्ण निजीकरण कर दे जिससे कि बाजार के आधार पर इनके कार्यकलाप का संचालन हो और इनके द्वारा महंगी बिजली बेच कर जनता का दोहन बंद हो।

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