अर्थव्यवस्था बचाव के उपाय

भरत झुनझुनवाला

आर्थिक विश्लेषक

सबसिडी के बल पर निर्यातक माल का निर्यात चालू रख सकें, मेरे आकलन में यह दीवार पर सिर फोड़ने जैसा होगा। जिस समय संपूर्ण विश्व में मांग में लॉकडाउन चल रहा है और यह कब तक चलेगा इसका कोई अनुमान नहीं है, ऐसी परिस्थिति में सबसिडी देकर निर्यातों को बनाए रखना लगभग असंभव है। इसमें केवल धन की बर्बादी होनी है। हां, उन उद्योगों को मदद की जा सकती है जिन्हें लॉकडाउन समाप्त होने के बाद माल देश में ही बेचना है। इस सबसिडी की दिशा पर और विचार नहीं किया जाएगा…

लॉकडाउन के कारण हमारी अर्थव्यवस्था संकट में आ गई है। विदेशी पर्यटन ही नहीं अपितु हमारे उद्योग और निर्यात भी प्रभावित हो गए हैं। आने वाले समय में इनके प्रभावित रहने की संभावना बन रही है क्योंकि संपूर्ण विश्व लॉकडाउन की चपेट में आ गया। इस परिस्थिति में व्यापारियों और निर्यातकों द्वारा मांग की जा रही है कि उन्हें सरकार सबसिडी दे ताकि वे इस संकट से उबर सकें। सबसिडी के बल पर निर्यातक माल का निर्यात चालू रख सकें। मेरे आकलन में यह दीवार पर सिर फोड़ने जैसा होगा। जिस समय संपूर्ण विश्व में मांग में लॉकडाउन चल रहा है और यह कब तक चलेगा इसका कोई अनुमान नहीं है, ऐसी परिस्थिति में सबसिडी देकर निर्यातों को बनाए रखना लगभग असंभव है। इसमें केवल धन की बर्बादी होनी है। हां, उन उद्योगों को मदद की जा सकती है जिन्हें लॉकडाउन समाप्त होने के बाद माल देश में ही बेचना है। इस सबसिडी की दिशा पर और विचार नहीं किया जाएगा। कोरोना से निपटने को दूसरा सुझाव है कि रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दर में कटौती करके निवेश और खपत बढ़ाए जाएं। हमें संज्ञान में लेना चाहिए कि व्यापारी निवेश तब करता है जब उसे भरोसा होता है कि उत्पादित माल को ऊंचे दाम पर बेच कर वह लाभ कमा सकेगा और कमाए गए लाभ से वह ऋण की भरपाई कर सकेगा। इसी प्रकार आम उपभोक्ता ऋण लेकर खपत तब करता है, जैसे ऋण लेकर कार तब खरीदता है, जब उसे आने वाले समय में अपने रोजगार से होने वाली आय पर भरोसा हो। भविष्य की आय से वह ऋण की अदायगी कर देता है। यानी ब्याज दर में कटौती तभी प्रभावी होती है जब निवेशकों को भविष्य की मांग और उपभोक्ता को भविष्य की आय पर भरोसा हो। जिस समय संपूर्ण विश्व कोरोना के संकट से जूझ रहा है, अर्थव्यवस्था जर्जर है, मांग का सर्वथा अभाव है, रोजगार में अनिश्चितता है, उस समय आप ब्याज दर शून्य भी कर लें तब भी निवेशक और उपभोक्ता ऋण लेकर खपत नहीं करेंगे, चूंकि उन्हें अपने भविष्य की आय पर भरोसा नहीं है। तीसरा सुझाव है कि सरकार अपने खर्च बढ़ाकर मांग पैदा करे। यह सुझाव सही दिशा में है।

इस समय कोरोना वायरस से निपटने के लिए स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं में निवेश करना जरूरी है, जैसे जनता को साफ  पानी मिले तो लोगों की रोग की प्रतिरोधक क्षमता में सुधार होता है और वे कोरोना जैसे वायरस से लड़ने को सक्षम हो जाते हैं। साफ पानी और हवा के लिए निवेश करना जरूरी है, लेकिन यह कार्य निवेश का कम और वर्तमान व्यवस्था में सुधार का अधिक है। जैसे पानी के प्रदूषण को दूर करना हो तो ‘रिवर्स अस्मोसिस’ लगाने के स्थान पर जिन उद्योगों द्वारा नदी में या भूमि जल में गंदा पानी डाला जा रहा है उन पर सख्ती करना जरूरी है। इसी प्रकार हवा शुद्ध करने के लिए फैक्टरियों एवं कारों द्वारा उत्सर्जित कार्बन एवं नाइट्रोजन पर रोक लगाना जरूरी है। अतः सरकार को चाहिए कि इस कार्य को खर्च बढ़ाकर हासिल करने के स्थान पर इस कार्य को करने में राजस्व कमाए। जैसे जिन उद्योगों द्वारा हवा अथवा पानी को प्रदूषित किया जा रहा है उन पर टैक्स अथवा पेनल्टी आरोपित करके सरकार को राजस्व एकत्रित करना चाहिए जिससे कि हवा और पानी शुद्ध हो जाए और सरकार का राजस्व बढ़े। इस राजस्व से आम आदमी के खाते में एक रकम सीधे डाल देनी चाहिए। ऐसा करने से जनता पर कुल टैक्स का भार पूर्ववत रहेगा, लेकिन प्रदूषण करने वालों को रकम ज्यादा देनी होगी जबकि आम आदमी को रकम मिलेगी। अतः वर्तमान मंदी को तोड़ने के लिए साफ  पानी और हवा के लिए निवेश करना उचित नहीं है, चूंकि जिस कार्य को करने में हम कमाई कर सकते हैं उसी कार्य को अपनी पॉकेट से खर्च करने का कोई औचित्य नहीं बनता है। ऐसा निवेश सही दिशा में है, परंतु इसके दूसरे उत्तम विकल्प उपलब्ध हैं। प्रश्न है कि 21 दिन के लॉकडाउन से हो रही आर्थिक हानि से कैसे उबरा जाए। सरकार को चाहिए कि वर्तमान संकट से उबरने के लिए अपनी अर्थव्यवस्था की दिशा को बदले। मूल बात यह है कि कोरोना का संकट उन क्षेत्रों में ज्यादा आया है जहां पर विश्व अर्थव्यवस्था से हमारा गहरा जुड़ाव है। जैसे हमारे देश में विदेशी पर्यटक आते हैं और हमारे इंजीनियर विदेशों में जाकर काम करते हैं। इनके द्वारा देश में कोरोना का वायरस अधिकतर लाया गया है।

दूसरी बात यह कि जिन क्षेत्रों में हम निर्यातों और आयातों पर ज्यादा निर्भर हैं, जैसे हमारे कार उद्योग में ऑटो पार्ट्स का हम चीन से आयात करते हैं, ऐसे उद्योग चीन पर आश्रित हो गए हैं। ऐसे उद्योगों पर कोरोना का संकट ज्यादा आया है। हमारे दूसरे उद्योग जैसे टेक्सटाइल मिल चीन पर आश्रित नहीं हैं। कोरोना वायरस से हमारी अर्थव्यवस्था के वे हिस्से ज्यादा प्रभावित हुए हैं जिनका विश्व अर्थव्यवस्था से गहरा जुड़ाव है। सरकार के सामने चुनौती यह है कि इस जुड़ाव को सीमित कर दे और उन क्षेत्रों को बढ़ावा दे जिनमें स्थानीय उत्पादन और स्थानीय खपत बढ़ सकती है। हमें मूल रूप से वैश्वीकरण पर पुनर्विचार करना चाहिए। वैश्वीकरण के अंतर्गत हर माल को उस देश में उत्पादित किया जाता है जहां उसके उत्पादन की लगत न्यूनतम हो, लेकिन सस्ते माल के लालच में हम अपना विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ाव बढ़ा लेते हैं और कोरोना जैसे संकट से हमारी अर्थव्यवस्था संकट में पड़ जाती है। यदि हम सस्ते माल के प्रति अपने लालच को कुछ सीमित कर दें और स्वदेश में ही माल को बनाएं, जैसे सस्ते कार पार्ट का चीन से आयात करने के स्थान पर हम अपने देश में उन्हीं पार्ट्स को कुछ महंगा बनाएं, तो हमारा विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ाव कम हो जाएगा और इस प्रकार के संकट से हमारी अर्थव्यवस्था कम प्रभावित होगी। इसलिए सरकार को चाहिए कि मिशन मोड में इंपोर्ट सबिसच्चूशन यानी आयातित माल को स्वदेश में बनाने पर निवेश करे। उन नए उद्योगों को स्थापित कराए और उन्हें इनकी स्थापना के किए सबसिडी दे जो कि ऐसे माल बनाते हैं जो कि वर्तमान में विदेश से आयात किए जाते हैं। विशेषकर इसमें छोटे उद्योगों को प्राथमिकता दे। ऐसा करने से कई कार्य एक साथ हो जाएंगे। पहला, हमारा विश्व अर्थव्यवस्था से जुड़ाव कम हो जाएगा जिससे हम कोरोना जैसे संकटों से बचे रहेंगे। दूसरा, छोटे उद्योगों को बढ़ावा देने से रोजगार बढे़ंगे, आम आदमी की आय बढ़ेगी और उसकी क्रय शक्ति बढ़ेगी। तीसरा, इस प्रकार के उद्योगों को लगाने के लिए सबसिडी देने से घरेलू उत्पादन बढे़गा और हम इस मंदी से निकलने में सफल हो सकते हैं।

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