पंजाब में आग से खेलने का प्रयास

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

वरिष्ठ स्तंभकार

यदि किसी तरह लोगों का ध्यान तबलीगी जमात की ओर से हटा कर किसी दूसरे समुदाय की ओर मोड़ दिया जाए तो इसका लाभ लंबी रणनीति में कांग्रेस की इतालवी लॉबी को मिल सकता है और पार्टी के भीतर उसकी ताकत भी बढ़ सकती है। शायद इसी को आधार बनाकर दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारा गया। इससे अमरेंद्र सिंह भी शिकंजे में फंसते और सहायता के लिए इतालवी लॉबी की ओर दौड़ते। इसलिए नांदेड़ साहिब के श्रद्धालुओं की आड़ लेकर सिखों की ओर तोप मोड़ दी। लेकिन यह आरोप शरारतन ही नहीं, बल्कि आपराधिक भी है। नांदेड़ साहिब में गए हुए लोग किसी संगठन का प्रतिनिधित्व नहीं करते थे। वे व्यक्तिगत हैसियत से गुरुद्वारा में मत्था टेकने गए थे। वहां व्यक्तिगत हैसियत से ही ठहरे थे। लॉकडाउन में फंस गए। संक्रमण का शिकार हो गए। सरकार उनको वापस पंजाब ले आई। इसमें क्या गलत हुआ? पंजाब सरकार ने इन पंजाबियों को लाने में प्रोटोकॉल के हिसाब से नियमों का पालन नहीं किया, यह तो हो सकता है लेकिन पंजाब में कोरोना फैलाने में सिख जिम्मेदार हैं, यह कैसे कहा जा सकता है…

दिग्विजय सिंह का नाम और काम सभी जानते हैं। वह मध्य प्रदेश के किसी राज परिवार से ताल्लुक रखते हैं। मध्य प्रदेश के दस साल तक  मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। केंद्र में भी मंत्री रह चुके हैं। कांग्रेस के भीतर की इतालवी लॉबी में उनका प्रमुख स्थान है। इसलिए यह माना जा सकता है कि उनका कोई भी बयान या कथन कांग्रेस की इतालवी लॉबी की रणनीति का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संकेत करता है। पिछले दिनों उन्होंने एक बहुत ही रहस्यपूर्ण बयान दिया। उनका कहना था कि पंजाब में कोरोना के संक्रमण में नांदेड़ से आए सिख श्रद्धालुओं का बहुत बड़ा हाथ है।

ऐसा उन्होंने क्यों कहा? तबलीगी जमात और उसके सक्रिय सदस्यों को हिंदुस्तान के अलग-अलग हिस्सों में कुछ सीमा तक कोरोना संक्रमण फैलाने के लिए उत्तरदायी माना जा रहा था। तमिलनाडु में तो अधिकांश मामले ही तबलीगी जमात के सदस्यों के कारण आए थे। फिलहाल जमात का सरगना अनेक आपराधिक मामलों के चलते फरार है। उसने नियमों का उल्लंघन करते हुए दिल्ली में तबलीगी जमात की बहुत बड़ी मरकज़ अमल में लाई। लेकिन जब कोरोना को लेकर इस मरकज़ पर उंगलियां उठने लगी तो मरकज़ के अधिकांश सदस्य अपने-अपने घरों को जाने की बजाय देश के विभिन्न प्रांतों में चले गए और वहां के सदस्यों की सहायता से वहां की मस्जिदों में छिप भी गए। इनमें केवल देशी लोग ही नहीं थे, बल्कि हजारों की संख्या में विदेशी नागरिक भी थे जो हिंदुस्तान में टूरिस्ट वीज़ा लेकर घुसे थे। लेकिन यहां आकर तबलीगी गतिविधियों में मशगुल हो गए। वे भी विभिन्न प्रांतों में गए और छिप गए। वे उन प्रांतों की भाषा भी नहीं जानते थे। तब भी वहां क्या कर रहे थे?

वे केवल छिपे हुए ही नहीं थे, बल्कि पकड़े जाने पर कोरोना टेस्ट का भी विरोध कर रहे थे। जाहिर है इससे यह शक मजबूत होता कि तबलीगी जमात कुछ सीमा तक हिंदुस्तान में संक्रमण के लिए जिम्मेदार है। लेकिन यह सच्चाई कांग्रेस की इतालवी लॉबी को अपने राजनीतिक हितों के अनुकूल नहीं लगती थी। ऐसा नहीं कि सारी कांग्रेस पार्टी तबलीगी जमात के समर्थन में उतर आई थी। कांग्रेस के भीतर की बहुत बड़ी भारतीय लॉबी इसके लिए जमात को ही जिम्मेदार मानती थी। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह तो खुल कर यह कहते भी हैं।

भारतीय लॉबी के दूसरे अधिकांश लोग भी इसी मत के हैं। लेकिन सभी जानते हैं कि कांग्रेस के भीतर इतालवी लॉबी का आधार धीरे-धीरे सिकुड़ता जा रहा है। गुलाम नबी आजाद, अहमद पटेल, सलमान खुर्शीद, राशिद अलवी, शकील अहमद, मोहसिना किदवई, हर्ष मंदेर, अरुणा राय, जार्ज विंसेट को छोड़ कर घेरा सिमटता जा रहा है। या फिर कपिल सिब्बल जैसे ऐसे लोग बचे हैं जिनका अपना आधार नहीं हैं। यही कारण था कि अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए इस इतालवी लॉबी ने तबलीगी जमात को देश के मुसलमानों से जोड़ना शुरू कर दिया। जबकि जमात का नियंत्रण एसटीएम के पास है और भारतीय मुसलमान तो इस जमात का शिकार है। वह शिकारी नहीं बल्कि शिकार है। लेकिन इतालवी लॉबी को लगता है यदि जमात को भारतीय मुसलमान से जोड़ दिया जाए तो उसको विश्वास दिलाया जा सकता है कि सरकार आपको टारगेट कर रही है और आपकी रक्षा केवल कांग्रेस की इतालवी लॉबी ही कर सकती है। लेकिन इतालवी लॉबी की रणनीति में शायद इतना ही काफी नहीं था।

यदि किसी तरह लोगों का ध्यान तबलीगी जमात की ओर से हटा कर किसी दूसरे समुदाय की ओर मोड़ दिया जाए तो इसका लाभ लंबी रणनीति में कांग्रेस की इतालवी लॉबी को मिल सकता है और पार्टी के भीतर उसकी ताकत भी बढ़ सकती है। शायद इसी को आधार बनाकर दिग्विजय सिंह को मैदान में उतारा गया। इससे अमरेंद्र सिंह भी शिकंजे में फंसते और सहायता के लिए इतालवी लॉबी की ओर दौड़ते। इसलिए नांदेड़ साहिब के श्रद्धालुओं की आड़ लेकर सिखों की ओर तोप मोड़ दी। लेकिन यह आरोप शरारतन ही नहीं, बल्कि आपराधिक भी है। नांदेड़ साहिब में गए हुए लोग किसी संगठन का प्रतिनिधित्व नहीं करते थे।

वे व्यक्तिगत हैसियत से गुरुद्वारा में मत्था टेकने गए थे। वहां व्यक्तिगत हैसियत से ही ठहरे थे। लॉकडाउन में फंस गए। संक्रमण का शिकार हो गए। सरकार उनको वापस पंजाब ले आई। इसमें क्या गलत हुआ? पंजाब सरकार ने इन पंजाबियों को लाने में प्रोटोकॉल के हिसाब से नियमों का पालन नहीं किया, यह तो हो सकता है लेकिन पंजाब में कोरोना फैलाने में सिख जिम्मेदार हैं, यह कैसे कहा जा सकता है। जाहिर है ऐसा कह कर कांग्रेस की इतालवी लॉबी एक बार फिर जानबूझकर कर पंजाब का माहौल बिगाड़ने का प्रयास कर रही है। 1984 के दंगों के केस लड़ रहे जाने माने वकील एचएस फुल्का ने शायद यही देख कर टिप्पणी की कि दिल्ली के दंगे हिंदू-सिख दंगे नहीं थे, बल्कि सिख कांग्रेस दंगे थे। लगता है दिग्विजय को आगे करके इतालवी लॉबी उसी पुराने रास्ते पर चल पड़ी है। यह रास्ता बहुत ही खतरनाक रास्ता है।

इस रास्ते ने पहले ही देश को बहुत नुकसान पहुंचाया है। इतालवी लॉबी को इस रास्ते को दोबारा खोलने से बचना चाहिए। दिग्विजय का पुराना रिकार्ड ऐसे खतरनाक रास्तों के निर्माण का रहा है, जो दरारें डालता है। लेकिन इतालवी लॉबी को समझना चाहिए कि वह एक बार फिर आग से खेलने का प्रयास कर रही है। पंजाब पहले भी आतंकवाद की आग में जल चुका है। अब वहां बड़ी मुश्किल से शांति स्थापित हुई है जिसे भंग नहीं किया जाना चाहिए। पंजाब के आतंकवाद के जख्म आज भी हरे हैं। इसलिए ऐसा कुछ भी नहीं किया जाना चाहिए जिससे इस राज्य की शांति को फिर खतरा पैदा हो।

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