अमानवीय है पुलिस कर्मी को पीटना

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पुष्पदीप जसवाल

लेखक शिमला से हैं

ऐसी घटनाएं भविष्य में दोबारा न हों, उसके लिए यह जरूरी है कि प्रदेश पुलिस महिलाओं के साथ-साथ उन लोगों के ऊपर भी कार्रवाई करे जो पीछे से महिलाओं को पुलिस अधिकारी को मारने के लिए उकसा रहे थे। इसके साथ-साथ लोगों को भी यह समझना होगा कि किसी भी इनसान के साथ, चाहे वह जन-सेवक हो या आम नागरिक, मारपीट करना किसी भी सूरत में समस्या का हल नहीं है और ऐसे मामलों में भावनात्मक न होते हुए एक सभ्य और कानून का पालन करने वाले नागरिक होने के नाते लोगों को कानून के दायरे में रहकर ही अपना विरोध और गुस्सा जाहिर करना चाहिए। लोगों को ऐसी किसी भी भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहिए, जो कानून को अपने हाथों में लेकर किसी की जान ले लेती है…

शुक्रवार तीन जुलाई को कांगड़ा के पुलिस थाना देहरा की डाडासीबा पुलिस चौकी के एएसआई के साथ ऑन ड्यूटी मारपीट करने का जो वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहा है, वह बहुत ही निंदनीय है। अभी तक की जानकारी के अनुसार आरोपी महिलाओं के विरुद्ध कार्रवाई करते हुए देहरा पुलिस ने 12 महिलाओं को हिरासत में लिया है। पुलिस ने वायरल वीडियो की जांच से महिलाओं की पहचान कर उन्हें हिरासत में लिया है। गुरुवार को डाडासीबा के टिप्परी गांव में 35 वर्षीय एक युवक की संदिग्ध मौत हो गई थी जिस कारण शुक्रवार सुबह गांववासियों की भीड़ शव को लेकर डाडासीबा में प्रदर्शन करने जा रही थी, जिसकी सूचना मिलते ही डाडासीबा पुलिस चौकी के इंचार्ज एएसआई ने बीच रास्ते में जाकर भीड़ को शांत करने की कोशिश की। लेकिन गुस्साई महिलाओं ने उन्हें ही पीट दिया। कोरोना काल में जहां प्रदेश पुलिस दिन-रात कोरोना योद्धाओं की तरह आम जन की सुरक्षा के लिए ड्यूटी पर तैनात है तथा कानून और व्यवस्था को संभाले हुए है, तो ऐसे में ऐसी घटनाओं का घटित होना न केवल पुलिस विभाग के आत्मविश्वास को कम करने जैसा है, बल्कि साथ ही इससे पुलिस और जनता के बीच के रिश्ते और भरोसे में भी कमी और कड़वाहट आएगी। वायरल वीडियो में न केवल स्थानीय महिलाएं दोषी हैं, बल्कि साथ ही वे लोग भी बराबर दोषी हैं जो पीछे से ‘मारो इसको मारो’ जैसे शब्द इस्तेमाल कर महिलाओं को पुलिस अधिकारी को पीटने के लिए उकसा रहे थे। वीडियो को देखकर यह भी लग रहा है कि जैसे स्थानीय महिलाओं को पुलिस पर गुस्सा निकालने के लिए एक साधन की तरह आगे करके इस्तेमाल किया गया है और महिलाओं को पहले से उकसाया गया था। सोशल मीडिया में वायरल हो रहा वीडियो और ग्रामीणों के अनुसार उक्त पुलिस अधिकारी 35 वर्षीय स्थानीय व्यक्ति की संदिग्ध हालत में मृत्यु के मामले में संज्ञान नहीं ले रहा था, जिस कारण स्थानीय महिलाओं का गुस्सा उन पर फूटा, लेकिन भीड़तंत्र का यह मामला पूर्णतया आपराधिक है और समाज में पनप रही उस रुग्ण मानसिकता का भी एक उदाहरण पेश करता है जिसके चलते न जाने देश में कितने मासूम लोगों की भीड़ या भेड़तंत्र द्वारा हत्या की गई है, जिसे न प्रशासनिक व्यवस्था पर विश्वास है और न ही देश की संवैधानिक और न्यायिक व्यवस्था पर विश्वास है। ऑन ड्यूटी एक लोक-सेवक के साथ मारपीट करना, वर्दी फाड़ना जैसी हरकतें पूरी तरह से आपराधिक हैं और महिलाओं का कानून की अवहेलना करते हुए भावनात्मक होकर एक पुलिस अधिकारी को मारना-पीटना किसी भी सूरत में न्यायोचित नहीं है। ग्रामीणों को किसी भी तरह से अपना विरोध और गुस्सा पुलिस प्रशासन के प्रति जाहिर करना था तो वह शांतिपूर्वक या कानून के दायरे में रहकर कर सकते थे, लेकिन मारपीट करना किसी भी संदर्भ में तर्कसंगत नहीं था क्योंकि इसमें उक्त पुलिस अधिकारी की जान भी जा सकती थी, अगर महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी मारपीट करते। अगर उक्त पुलिस अधिकारी मामले में संज्ञान नहीं ले रहा था तो वहां के ग्रामीणों ने स्थानीय पुलिस स्टेशन के एसएचओ या एसपी या डीसी कांगड़ा को शिकायत क्यों नहीं की या की होगी तो पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने तक का इंतजार क्यों नहीं किया गया। आखिर महिलाओं को कानून को हाथ में लेने का अधिकार किसने दिया? ग्रामीणों को प्रदर्शन करने के लिए पूरा समय मिल गया, लेकिन मामले की पुलिस जांच या शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने तक का इंतजार भी नहीं किया गया जिससे कि मृत्यु के असली कारणों का पता चल पाए। लोग आजकल वीडियो बनाने में एक सेकंड की देरी भी नहीं करते, लेकिन किसी भी मामले में कोर्ट का  फैसला आने से पहले ही मीडिया ट्रायल द्वारा लोग किसी को भी दोषी बना देते हैं, फिर चाहे न्यायालय अपने फैसले में मीडिया ट्रायल द्वारा बनाए गए दोषी को बेगुनाह ही क्यों न साबित करे। ऐसी घटनाएं भविष्य में दोबारा न हों, उसके लिए यह जरूरी है कि प्रदेश पुलिस महिलाओं के साथ-साथ उन लोगों के ऊपर भी कार्रवाई करे जो पीछे से महिलाओं को पुलिस अधिकारी को मारने के लिए उकसा रहे थे। इसके साथ-साथ लोगों को भी यह समझना होगा कि किसी भी इनसान के साथ, चाहे वह जन-सेवक हो या आम नागरिक, मारपीट करना किसी भी सूरत में समस्या का हल नहीं है और ऐसे मामलों में भावनात्मक न होते हुए एक सभ्य और कानून का पालन करने वाले नागरिक होने के नाते लोगों को कानून के दायरे में रहकर ही अपना विरोध और गुस्सा जाहिर करना चाहिए। लोगों को ऐसी किसी भी भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहिए, जो कानून को अपने हाथों में लेकर किसी की जान ले लेती है। बहकावे में नहीं आना चाहिए और हर हालत में विवेक का प्रयोग करना चाहिए।

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