आत्मनिर्भर हिमाचल की नींव जल विद्युत: प्रवीण कुमार शर्मा, सतत विकास चिंतक

इसमें कोई दो राय नहीं कि जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण में पूर्व  की अपेक्षा अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। प्रति यूनिट विद्युत उत्पादन में अधिक लागत के कारण भी निवेशक हाथ पीछे खींच रहे हैं। परंतु धौलासिद्ध और लुहरी में एसजेवीएनएल ने निवेश करके यह साबित कर दिया कि जलविद्युत परियोजनाएं घाटे का सौदा नहीं हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार को बची हुई विद्युत क्षमता के दोहन को प्रभावी कदम उठाने चाहिएं…

गठन के 70 वर्षों के पश्चात् भी  अपनी शासन व्यवस्था को बनाए रखने में 60 फीसदी से अधिक केंद्रीय सहायता और आर्थिक अनुदान पर निर्भर एक प्रदेश के लिए  ‘आत्मनिर्भरता’ की कल्पना जितनी सुखद है, वास्तविकता में उसे परिवर्तित करना उतना ही मुश्किल है। ऐसा नहीं है कि यह कार्य असंभव है, परंतु यह भी  सत्य है  है कि सत्ता प्राप्त करने और उसे बनाए रखने में हम इतना उलझ रहे हैं कि ‘आत्मनिर्भर हिमाचल’ के दीर्घकालीन लक्ष्यों के प्रति राजनीतिज्ञ और ब्यूरोक्रेट्स की उदासीनता स्पष्ट नजर आती है।  ऐसे परिदृश्य में जब कुछ गिने-चुने प्रयास नज़र आते हैं तो सुखद एहसास होता है। इस कड़ी में धर्मशाला में आयोजित ‘राइजिंग हिमाचल-ग्लोबल इन्वेस्टर मीट 2019’ एक बड़ा प्रयास कहा जा सकता है। इसी इन्वेस्टर मीट के दौरान हुए कुछ एमओयू जब धरातल पर आकार लेना शुरू करते हैं तो प्रदेश के 10 लाख से ज्यादा बेरोजगार युवाओं की फौज में आशा की किरण का उदय  होना स्वाभाविक है।

हिमाचल प्रदेश का सबसे मजबूत पक्ष  उसके प्राकृतिक संसाधन हैं और आत्मनिर्भरता की नींव भी इन्हीं संसाधनों का दोहन करके रखी जा सकती है,  जिसमें जल विद्युत का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। वर्तमान स्थिति यह है कि कुल विद्युत क्षमता का आधा भी हम दोहन नहीं कर पाए हैं। इस क्षमता का दोहन करने में प्रो. प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में भाजपा की वर्ष 1998-2003 की सरकार को ‘स्वर्णिम काल’ कहा जा सकता है। अटल जी के आशीर्वाद से उस दौरान 2050 मेगावाट की पार्वती पन बिजली परियोजना, 800 मेगावाट की कोल डैम जैसी बड़ी परियोजनाओं की नींव रखी गई। निजी क्षेत्र में भी 160 से अधिक परियोजनाओं को शुरू किया गया। यह आश्चर्यजनक पर सत्य है कि वर्तमान में  प्रदेश में उत्पादित 10645 मेगावाट में से 9500 मेगावाट  से अधिक का उत्पादन उस दौरान शुरू की गई परियोजनाओं से हो रहा है।  प्रदेश की विद्युत नीति को बाद में अन्य हिमालयी राज्यों ने भी अपनाया। इन परियोजनाओं के कारण प्रदेश की आर्थिकी को काफी संबल मिला है।

ग्लोबल इन्वेस्टर मीट के दौरान हुए समझौतों के परिणामस्वरूप प्रदेश में दो बड़ी विद्युत परियोजनाओं के निर्माण के लिए केंद्र सरकार ने निवेश को हरी झंडी दी है।   सतलुज नदी पर बनने वाली  210 मेगावाट की लुहरी स्टेज-1 जल विद्युत परियोजना और ब्यास नदी पर बनने वाली 66 मेगावाट की धौलासिद्ध जल विद्युत परियोजना प्रदेश की जल विद्युत क्षमता के दोहन की दिशा में बड़ा कदम साबित होगी।    एसजेवीएनएल  द्वारा बनाई जा रही इन परियोजनाओं में केंद्र सरकार  लुहरी में 1810 करोड़ रुपए और धौलासिद्ध में लगभग 687 करोड़ रुपए का निवेश करेगी। इसके  साथ आधारभूत ढांचे के विकास के लिए 66.19 करोड़ रुपए अतिरिक्त व्यय करेगी। निर्माण कार्य पूरा होने के पश्चात् अगले चालीस  वर्षों के दौरान हिमाचल प्रदेश को इन दोनों परियोजनाओं से करीब 1500 करोड़ रुपए की आय होगी और निर्माण के दौरान ही 5000 से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा।  साथ में प्रभावित परिवारों को अगले दस वर्षों के लिए 100 यूनिट बिजली भी मुफ्त में मिलेगी। सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान यह होगा कि देश से 7.5 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड वार्षिक रूप से खत्म होगा।

ऊर्जा विभाग के अनुसार प्रदेश की कुल जल विद्युत क्षमता 27436 मेगावाट है। भौगोलिक परिस्थितियों व कुछ अन्य कारणों के चलते जिसमें से  3856 मेगावाट  जल विद्युत का दोहन करना संभव नहीं है। बची हुई 23580 मेगावाट की क्षमता में से हम अभी तक 10646 मेगावाट का उत्पादन कर रहे हैं और 12934 मेगावाट का दोहन अभी बाकी है। वर्तमान में लगभग 2358 मेगावाट की परियोजनाओं पर कार्य चल रहा है। धौलासिद्ध और लुहरी की स्वीकृति के पश्चात् इसमें लगभग 276 मेगावाट की वृद्धि होगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण में पूर्व  की अपेक्षा अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। प्रति यूनिट विद्युत उत्पादन में अधिक लागत के कारण भी निवेशक हाथ पीछे खींच रहे हैं। परंतु धौलासिद्ध और लुहरी में एसजेवीएनएल ने निवेश करके यह साबित कर दिया कि जलविद्युत परियोजनाएं घाटे का सौदा नहीं हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार को इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाते हुए बची हुई विद्युत क्षमता के दोहन के लिए प्रभावी कदम उठाने चाहिए। यह सशक्त व संपन्न हिमाचल के निर्माण में सबसे मजबूत कड़ी साबित होगा।

विद्युत उत्पादन में हिमाचल आज आत्मनिर्भर है।  पर अगर हम बची हुई विद्युत क्षमता का भी दोहन कर लेते हैं तो प्रदेश आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जाएगा।  केंद्र की बैसाखियों के सहारे चलने से ज्यादा गौरवपूर्ण है कि हम अपने पांव पर खड़े हों। आधारभूत ढांचे के विकास से लेकर प्रत्येक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करना आसान लक्ष्य नहीं है और केवल मात्र एक-दो परियोजनाओं के निर्माण से ही आत्मनिर्भर हिमाचल के सपने को साकार नहीं किया जा सकता है।  इस लक्ष्य को प्राप्त  करने के लिए  दीर्घकालीन योजना के साथ छोटी-बड़ी अनेकों परियोजनाओं पर कार्य करना होगा। पर्यटन, बागवानी, शिक्षा, गैर मौसमी सब्जियां, वन व जल जैसे संसाधनों का पूर्ण दोहन करना होगा। हिमाचल के पास आज सबसे अनुकूल समय और श्रेष्ठ नेतृत्व है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रदेश के प्रति अगाध स्नेह, जगत प्रकाश नड्डा जी का महत्त्वपूर्ण पद पर होना, युवा अनुराग ठाकुर की असीम ऊर्जा और मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व में प्रदेश सरकार ‘आत्मनिर्भर हिमाचल’ के इस सपने को साकार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। हिमाचली पुरुषार्थ को दिखाने के साथ-साथ अपने दो पूर्व श्रेष्ठ मुख्यमंत्रियों के अनुभवों को भुनाने की  भी आवश्यकता है। सामूहिक प्रयासों से ही ‘सशक्त और आत्मनिर्भर हिमाचल’ का निर्माण संभव है।  नहीं तो यह सर्वविदित है कि समय दूसरा अवसर नहीं देता है। इतिहास केवल उन्हीं की गाथा लिखता है जो कुछ नया रचते हैं।