पौंग बांध विस्थापितों को न्याय कब: सुखदेव सिंह, लेखक नूरपुर से हैं

सुखदेव सिंह

लेखक नूरपुर से हैं

विस्थापित, जो वहां पर खुद खेतीबाड़ी कर रहे हैं, वही अपनी जमीनों पर काबिज हैं। कुछेक पौंग बांध विस्थापितों ने अपने मुरब्बे राजस्थान के लोगों को खेतीबाड़ी करने के लिए सौंप रखे थे। नतीजतन ऐसे लोगों के साथ जालसाजी की गई है। गंगानगर में हिमाचली लोगों की अधिकतर जमीनों पर राजस्थान के प्रभावशाली लोगों ने जबरदस्ती कब्जा करके रखा है। ऐसे हालात में राजस्थान सरकार अवैध कब्जाधारियों पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं कर पा रही है…

पौंग बांध विस्थापितों में ऐसे किसान भी हैं जिनमें से कुछेक को अभी भी जमीनें नहीं मिली हैं। इन असहाय पौंग बांध विस्थापितों की जमीनों पर राजस्थान में भूमाफिया जबरदस्ती कब्जा करके उन्हें वहां से खदेड़ रहा है। हिमाचल प्रदेश के चार ऐसे पौंग विस्थापितों की जमीनें हड़प ली गईं जो प्रदेश सरकार से न्याय की गुहार लगा रहे हैं। मगर आज दिन तक किसी ने ऐसे बेघर हुए लोगों को न्याय दिलाने की मांग नहीं उठाई। सात दशकों बाद पौंग बांध विस्थापितों को उनके हक मिल सके, इसके लिए हाई पावर कमेटी एक बार फिर से अगले महीने सर्वोच्च न्यायालय में अपना पक्ष रखने वाली है। इस कमेटी का चयन सर्वोच्च न्यायलय की तर्ज पर ही किया गया जिससे बेघर हुए लोगों को जल्दी न्याय मिल सके। सरकारें और उच्च न्यायालय तो बेघर हुए लोगों को आज दिन तक न्याय नहीं दिला पाए। अब पौंग बांध विस्थापितों को न्याय की आस तो बस सिर्फ  सर्वोच्च न्यायालय से है। दशकों से विस्थापन का दंश झेल रहे पौंग बांध विस्थापितों को राजस्थान में मिलने वाले मुरब्बों की प्रक्रिया कब पूरी होगी, यह कोई नहीं जानता है। हिमाचल प्रदेश की सरकारों ने राजस्थान सरकार से मिलकर कुछ पौंग बांध विस्थापितों को राजस्थान में मुरब्बे दिलाने की पहल की थी, मगर विस्थापितों ने राजस्थान सरकार के इस फैसले पर एतराज जताया कि जमीन एक जगह की बजाय टुकड़ों में उन्हें दी जाएगी। इसलिए ऐसी जगह पर न तो बिजली, पानी और सड़क नाम की सुविधा है। ऐसे मुरब्बे लेने का ही क्या औचित्य जहां पर खेतीबाड़ी भी न की जा सके। विस्थापितों ने इसके बाद बैठक करके अपने हकों के लिए लड़ने की आगामी रणनीति बनाई। वे ऐसे हालात में अपने आपको दशकों से ठगा महसूस कर रहे हैं।

एक तो उपजाऊ भूमि गंवा चुके हैं, ऊपर से इसके बदले अभी तक कुछ हासिल नहीं कर पाए। कभी कांगड़ा जिला की सबसे उपजाऊ हल्दून घाटी के लोग खेतीबाड़ी करके अपना जीबन यापन करते थे। सन् 1926 में पंजाब सरकार की ओर से पौंग बांध बनाने का प्रपोजल तैयार किया गया। सन् 1955 में जीओलॉजिकल सर्वे विभाग ने पूरे एरिया का अध्ययन किया। सन् 1959 में पौंग बांध का डिजाइन बनाया गया और अंतिम रूप सन् 1961 को दिया गया। इस परियोजना के पावर स्टेशन सन् 1974 को बनकर पूरे हुए। पौंग बांध कार्य सन् 1978 को शुरू होकर 1983 में पूरा हुआ। परियोजना के लिए विस्थापित हुए लोगों का पुनर्वास आज दिन तक नहीं हो पाया है। इस घाटी के लोगों को राजस्थान में बसाने को लेकर एक योजना बनाई गई थी। हिमाचल और राजस्थान सरकारों ने समझौते करके निर्णय लिया था कि पौंग बांध विस्थापितों को राजस्थान में मुरब्बे दिए जाएंगे। कई दशकों के लंबे इंतजार के बाद मुरब्बे आबंटन की प्रक्रिया शुरू हो पाई। राजस्थान सरकार गंगानगर की बजाय पौंग बांध विस्थापितों को जैसलमेर में बसाना चाहती थी। शुरुआती दौर में ही राजस्थान सरकार की नीयत में खोट साफ  देखी जा सकती थी, इसलिए ही विस्थापित अभी तक मुरब्बों पर सही ढंग से काबिज नहीं हो पा रहे हैं। विस्थापितों को जैसलमेर के दूरदराज इलाकों रामगढ़ और मोहनगढ़ में मुरब्बे दिए गए। इन अति पिछड़े इलाकों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव था। वहां बेघर हुए हिमाचली लोगों को बसाया गया। इस बीच विस्थापितों की स्थायी समिति ने पुनर्वास का स्थान बढ़ाने की पुरजोर मांग की, मगर भूमि चयन का अधिकार केवल मात्र भारत सरकार और दोनों राज्यों की सरकारों का था। इसलिए यह प्रक्रिया सिरे न चढ़ सकी। उस समय राजस्थान में गंगानगर जिले में 220 लाख एकड़ भूमि पुनर्वास के लिए अधिसूचित हुई। हालांकि दोनों राज्यों की सरकारों के समझौते के अनुसार जिन पौंग बांध विस्थापितों को राजस्थान में मुरब्बा नहीं मिलेगा, उन्हें हिमाचल प्रदेश में ही बसाया जाएगा।

 पौंग बांध निर्माण में उजड़े परिवारों में प्रदेश सरकार ने 16342 परिवारों को ही राजस्थान में भूमि आबंटन के लिए योग्य करार दिया था। अभी तक प्रदेश सरकार 105824 को राजस्थान में भूमि आबंटन करवाने में सफल हो पाई है। 143 लाख एकड़ जमीन का आबंटन होना अभी बाकी है। विस्थापित, जो वहां पर खुद खेतीबाड़ी कर रहे हैं, वही अपनी जमीनों पर काबिज हैं। कुछेक पौंग बांध विस्थापितों ने अपने मुरब्बे राजस्थान के लोगों को खेतीबाड़ी करने के लिए सौंप रखे थे। नतीजतन ऐसे लोगों के साथ जालसाजी की गई है। गंगानगर में हिमाचली लोगों की अधिकतर जमीनों पर राजस्थान के प्रभावशाली लोगों ने जबरदस्ती कब्जा करके रखा है। ऐसे हालात में राजस्थान सरकार अवैध कब्जाधारियों पर कोई कड़ी कार्रवाई नहीं कर पा रही है। यही नहीं, विस्थापितों के कुछ मुरब्बों का अवैध कब्जाधारियों ने जाली दस्तावेज तैयार करके आगे उन्हें किसी दूसरे व्यक्ति के पास बेच दिया है। ऐसे हालात में कब्जा दोबारा से ले पाना विस्थापितों के लिए मुसीबत बना हुआ है। पुनर्वास के चक्कर में कई लोगों पर आत्मघाती हमले करके उन्हें मौत के घाट उतार दिया गया है। प्रदेश सरकार भी ऐसे अवैध कब्जाधारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई न करके पुनः विस्थापितों के कब्जे दिलाने में कोई पहल नहीं कर रही है। राजा का तालाब स्थित भू-अर्जुन अधिकारी कार्यालय के सहयोग से नाजायज कब्जे हटाकर पुनः विस्थापितों को बसाने की कोशिशें जारी हैं, लेकिन इस समस्या का पूरी तरह समाधान कब होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।