सामुदायिक पुलिसिंग निखार सकती है चेहरा: राजेंद्र मोहन शर्मा, सेवानिवृत्त डीआईजी

वर्तमान में प्रदेश पुलिस का नेतृत्व एक अनुभवी व कार्यकुशल पुलिस अधिकारी श्री संजय कुंडू के हाथ में है जो निरंतर पूरे प्रदेश का भ्रमण करते रहते हैं तथा लोगों की शिकायतों का निपटारा करते रहते हैं। मगर इन प्रयासों के बावजूद अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। स्वयंसेवकों को आकर्षित करने के लिए उन्हें पहचान पत्र दिए जाने जरूरी हैं। पुलिस भर्ती में स्वयंसेवकों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए…

सामुदायिक पुलिस व्यवस्था पुलिस के कार्यों में नागरिकों की भागीदारी हासिल करने का एक एहम तरीका है। यह एक ऐसा वातावरण निर्मित कर सकती है जिससे पुलिस-जनता के संबंधों में सुधार लाया जा सकता है। प्रोएक्टिव या सक्रिय पुलिसिंग के लिए यह आवश्यक है कि जनता को अपने साथ मिला कर अपराधियों या असामाजिक तत्त्वों पर शिकंजा कसा जाए। विभिन्न अपराध जैसे नशीली दवाओं का बढ़ता प्रयोग, शराब व अवैध खनन का गोरख धंधा, मानव तस्करी व महिलाओं के विरुद्ध बढ़ता अपराध और आपदाओं से निपटने व सांप्रदायिक दंगों पर नियंत्रण करने के लिए यह एक बहुत ही कारगर तरीका है। पुलिस और जनता के कटु रिश्तों का मुख्य कारण यही रहा है कि केवल पांच प्रतिशत से 10 प्रतिशत लोग अपराधी या शिकायतकर्ता के रूप में पुलिस के संपर्क में आते हैं तथा उनके साथ पुलिस जैसा- तैसा भी व्यवहार करती है, वैसा ही संदेश बाकी 90 प्रतिशत जनता के दिलो-दिमाग पर पड़ता रहता है।

पुलिस की क्या कानूनी या प्रशासनिक मजबूरियां हैं, इसका जनता को कुछ पता नहीं होता तथा वह हमेशा एकतरफा ढिंढोरा पीट कर पुलिस के मुंह पर कालिख लेप देती है। यदि कोई अपराधी न्यायालय द्वारा अपराधमुक्त हो जाता है तो जनता यही सोचती है कि यह सब कुछ पुलिस की निष्क्रियता व नाकामियों की वजह से ही संभव हुआ है। उन्हें इस बात का जरा भी ज्ञान नहीं होता है कि इस पूरी आपराधिक न्याय प्रणाली में अभियोजन पक्ष (सरकारी वकील) व न्यायालय भी शामिल है जो अपराधी को कई प्रकार की छूट देकर उसे अपराधमुक्त कर देती है। आखिर क्या कारण है कि हर व्यक्ति, चाहे बुद्धिजीवी लोग हों, चाहे पत्रकार हो, फिल्म निर्माता हो या न्यायपालिका हो, पुलिस को हमेशा नकारात्मक दृष्टि से देखते हैं। राजनीतिज्ञ तो पुलिस को अपना हथियार बनाकर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकते ही रहते हैं तथा समाज की सेवा व सुरक्षा के लिए व्यवस्थित की गई पुलिस हर जगह अपनी तौहीन करती रहती है। इसका मुख्य कारण यही रहा है कि समाज के लोगों, विशेषतः गांवों, कस्बों व शहरों में जाकर पुलिस ने अपनी स्थिति, लाचारी, कानूनी जिम्मेदारियों इत्यादि से जनता को कभी भी अवगत नहीं करवाया। कुछ वर्ष पहले तक भारत की पुलिस अंग्रेजों द्वारा बनाए गए 1861 के एक्ट के अधीन ही कार्य करती रही जिसमें सामुदायिक पुलिसिंग का कहीं भी वर्णन नहीं था। अब पिछले कुछ वर्षों से तथा वह भी सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से प्रत्येक राज्य ने अपने-अपने पुलिस एक्ट बनाए हैं जिनमें सामुदायिक पुलिसिंग के महत्त्व को समझा जाने लगा है। प्रत्येक राज्य की पुलिस ने सामुदायिक पुलिस प्रणाली की किसी न किसी रूप में कार्यान्वित करने का प्रयास किया है, मगर यह भी देखा गया है कि कुछ ही समय बाद इस महत्त्वपूर्ण पहलू को भुलाया जा रहा है तथा फिर वही ढाक के तीन पात वाली उक्ति चरितार्थ होने लगी है।

अगर हम हिमाचल की बात करें तो हिमाचल पुलिस ने इन योजनाओं के माध्यम से पुलिसिंग के क्षेत्र में अभूतपूर्व काम किया है तथा आज हिमाचल पुलिस पारदर्शिता व कार्यकुशलता के क्षेत्र में पूरे देश में शीर्ष स्थान पर है। हिमाचल में बीट प्रणाली के अंतर्गत शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों को विभिन्न बीटों में बांटा गया है तथा प्रत्येक बीट में एक पुलिस मैन, एक होमगार्ड, स्थानीय  चौकीदार व स्थानीय युवक व युवतियों को सदस्य बनाया गया है जो प्रत्येक सप्ताह आपसी बैठक में अपने-अपने क्षेत्र की विभिन्न गतिविधियों का संज्ञान लेते हैं। इसी तरह मैत्री योजना के अंतर्गत थाना प्रभारी व उप पुलिस/प्रवेक्षक अधिकारी आम जनता के साथ कभी थाने में तो कभी इलाके में जाकर जनता की शिकायतों को सुनते हैं तथा उनमें जागरूकता अभियान चलाते हैं। तीसरे, विश्वास योजना के अंतर्गत जिला पुलिस प्रमुख महीने में 4-5 बार विभिन्न क्षेत्रों में जाकर आम जनता के संपर्क में आकर उनकी शिकायतों का मौका पर ही निपटारा करते हैं। चौथे, समर्थ योजना के अंतर्गत स्कूलों व कालेजों में पढ़ रही लड़कियों को आत्म-सुरक्षा के लिए जूडो व कराटे का प्रशिक्षण दिया जाता है तथा उन्हें अपनी सुरक्षा के प्रति सबल व सक्षम बनाया जाता है। पांचवें, संरक्षण योजना के अंतर्गत प्रत्येक बीट में वरिष्ठ नागरिकों, अपंग व असहाय की पहचान की जाती है तथा उनकी किसी भी प्रकार की समस्या का निपटारा किया जाता है। इस योजना की फीडबैक लेने के लिए पुलिस मुख्यालय में भी एक सैल बनाया गया है जो लगातार ऐसे लोगों से जानकारी हासिल करता रहता है।

छठे, सुविधा योजना के अंतर्गत कोई भी व्यक्ति अपनी रिपोर्ट किसी भी नजदीकी पुलिस पोस्ट या थाने में दे सकता है तथा उसका निपटारा एक निश्चित समय के बीच में कर दिया जाता है। महिलाओं की सुरक्षा व तुरंत कार्रवाई हेतु प्रत्येक जिला स्तर पर हेल्पलाइन बनाई गई है तथा इसी तरह एक विशेष एैप तैयार किया गया है जिसको शिकायतकर्ता द्वारा प्रेस करने पर उसकी लोकेशन का तुरंत पता लगाया जाता है। वर्तमान में प्रदेश पुलिस का नेतृत्व एक अनुभवी व कार्यकुशल पुलिस अधिकारी श्री संजय कुंडू के हाथ में है जो निरंतर पूरे प्रदेश का भ्रमण करते रहते हैं तथा लोगों की शिकायतों का निपटारा करते रहते हैं। मगर इन प्रयासों के बावजूद अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है। स्वयंसेवकों को आकर्षित करने के लिए उन्हें पहचान पत्र दिए जाने जरूरी हैं तथा इसी तरह उनके चायपान/रिफरैशमेंट के लिए जिला अधीक्षकों को वित्तीय सहायता देना आवश्यक है। पुलिस भर्ती में ऐसे सहयोगी स्वयंसेवकों को किसी न किसी रूप में प्राथमिकता भी दी जानी चाहिए। संक्षेप में कहा जा सकता है कि पुलिस को आम जन- मानस को अपने साथ लाने की बहुत ही आवश्यकता है।