विकास ही न बन जाए विनाश का द्योतक: नीलम सूद, लेखिका पालमपुर से हैं

पेड़ कटेंगे तो क्या नए पेड़ इतनी शीघ्रता से बड़े हो जाएंगे जो हमारे ग्लेशियरों को पिघलने से बचा सकें। अभी भी वक्त है, अगर अपनी आने वाली पीढि़यों को बचाना चाहते हैं तो सरकार को ऐसे निर्णयों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। अवैज्ञानिक एवं अंधाधुंध विकास मानवजाति के विनाश का कारण बन जाए, हमें ऐसे विकास पर रोक लगानी पड़ेगी क्योंकि अभी तो कोरोना वायरस ने केवल आगाह किया है, वक्त दिया है संभलने का, अभी भी नहीं संभले तो विनाश निश्चित है। ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय तथा स्थानीय स्तर पर प्रयास किए जाने अति जरूरी हैं। ऐसे प्रयास न केवल सरकारी स्तर पर होने चाहिए, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी जरूरी हैं। सख्त नियम बनाने तथा उन पर अक्षरशः आचरण करने की जरूरत है…

पूरी दुनिया कोरोना वायरस से परेशान एवं भयभीत है, परंतु सब अनजान हैं कि ऐसे तैंतीस वायरस अमरीका और चीन के वैज्ञानिकों ने खोज निकाले हैं जिनमें 28 वायरस ऐसे हैं जो वैज्ञानिकों के लिए बिल्कुल नए हैं और पूरी दुनिया पर कभी भी कहर बरपा सकते हैं। चीन और अमरीका के वैज्ञानिकों ने तिब्बत के पंद्रह हजार साल पुराने ग्लेशियर में से एक सौ चौंसठ फीट की गहराई में ऐसे तैंतीस वायरस खोज निकाले और उन पर उनका शोध जारी है। खतरा वायरस से नहीं, अपितु पृथ्वी के बढ़ते तापमान एवं ग्लोबल वार्मिंग से है। धीरे-धीरे हमारे ग्लेशियर पिघल रहे हैं और इन ग्लेशियर का पानी नदी, नालों, बादल, बारिश या अन्य माध्यमों से हम तक पहुंच रहा है। भूविज्ञान में स्थायीतुषार या पर्माफरोस्ट ऐसी धरती को बोलते हैं जिसमें मिट्टी लगातार कम से कम दो वर्षों तक पानी जमने के तापमान (यानी शून्य सेंटीग्रेड) से कम तापमान पर रही हो। जलवायु परिवर्तन से यही स्थायी तुषार पिघलने की अवस्था तक यदि पहुंच पाता है तो इस मिट्टी में लाखों वर्षों से निष्क्रिय रूप में दबे पड़े वायरस एवं बैक्टीरिया समूची मानव जाति को बीमारियों का वह पिंडोरा बॉक्स बन कर कयामत ढा सकती है जिसकी हमने कभी कल्पना भी नहीं की होगी। जमे हुए पर्माफरोस्ट मिट्टी जीवाणुओं के लिए बहुत लंबे समय तक जीवित रहने के लिए सही जगह है, शायद एक मिलियन साल तक।

अगस्त 2016 में साइबेरियाई टुंड्रा के एक दूरदराज के कोने में, आर्कटिक सर्कल में यमल प्रायद्वीप में कहा जाता है, एक 12 वर्षीय लड़के की मृत्यु हो गई और कम से कम बीस लोग एंथ्रेक्स से संक्रमित होने के बाद अस्पताल में भर्ती हुए। शोध के बाद पता चला कि 75 साल पहले, एंथ्रेक्स से संक्रमित एक बारहसिंगा की मृत्यु हो गई और उसके जमे हुए शव जमी हुई मिट्टी की एक परत के नीचे फंस गए, जिसे पर्माफरोस्ट के रूप में जाना जाता है। वहां यह 2016 की गर्मियों में एक प्रचंड गर्मी तक रहा। जब पर्माफरोस्ट पिघल गया तो एंथ्रेक्स पानी के साथ मिलकर नदी-नालों व खेतों तक पहुंच गया जिससे 2000 और बारहसिंगे संक्रमित हुए जो ऐसी जगहों पर चरते रहे।

जैसे-जैसे पृथ्वी गर्म होगी, अधिक से अधिक पर्माफरोस्ट पिघलेंगे। सामान्य परिस्थितियों में, हर गर्मियों में लगभग 50 सेमी गहरी सतही परतें पिघल जाती हैं। लेकिन अब ग्लोबल वार्मिंग धीरे-धीरे पुराने पर्माफरोस्ट परतों को भी पिघलने की अवस्था तक ले आई है। अगर हम पर्यावरण के प्रति इसी प्रकार उदासीन रहे तो ग्लेशियर और पर्माफरोस्ट शीघ्र ही पिघल कर अपने अंदर दबे वायरसों को पानी के साथ बहा कर हम तक पहुंचा देंगे। बढ़ती आबादी, विकास के नाम पर औद्योगिकीकरण, बढ़ते मकान-घटते वन, आधुनिक जीवनशैली ही विनाश की ओर धकेल रही है हमें। सब जानते हैं कि एक पेड़ को बढ़ने में और अपना पूरा आकार लेने में पूरे पंद्रह से बीस वर्ष लगते हैं, जबकि एक हरे-भरे पेड़ को काटने में मात्र चंद घंटे। हाल ही में हिमाचल सरकार द्वारा कैबिनेट में लिया गया निर्णय सवाल के घेरे में है। क्या ऐसी परिस्थितियों में यह न्यायसंगत है जिसके तहत डीएफओ को एक वर्ष में 50 पेड़ों के स्थान पर 200 पेड़ काटने की अनुमति प्रदान करने का अधिकार, संबंधित मुख्य अरण्यपाल वन को एक वर्ष में 100 के स्थान पर 300 पेड़, प्रधान मुख्य अरण्यपाल वन को एक वर्ष में 200 पेड़ के स्थान पर 400 पेड़ और हिमाचल प्रदेश सरकार को 200 से अधिक पेड़ों के स्थान पर 400 से अधिक पेड़ काटने की अनुमति देने का अधिकार प्रदान किया गया है।

पेड़ कटेंगे तो क्या नए पेड़ इतनी शीघ्रता से बड़े हो जाएंगे जो हमारे ग्लेशियरों को पिघलने से बचा सकें। अभी भी वक्त है, अगर अपनी आने वाली पीढि़यों को बचाना चाहते हैं तो सरकार को ऐसे निर्णयों पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। अवैज्ञानिक एवं अंधाधुंध विकास मानवजाति के विनाश का कारण बन जाए, हमें ऐसे विकास पर रोक लगानी पड़ेगी क्योंकि अभी तो कोरोना वायरस ने केवल आगाह किया है, वक्त दिया है संभलने का, अभी भी नहीं संभले तो विनाश निश्चित है। ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय तथा स्थानीय स्तर पर प्रयास किए जाने अति जरूरी हैं। ऐसे प्रयास न केवल सरकारी स्तर पर होने चाहिए, बल्कि सामाजिक स्तर पर भी जरूरी हैं। सख्त नियम बनाने तथा उन पर अक्षरशः आचरण करने की जरूरत है, अन्यथा हमें विनाश से कोई नहीं बचा सकता है। यह सही समय है जब हमें सचेत हो जाना चाहिए। हिमाचल सरकार को अधिक पेड़ काटने की अनुमति का अधिकार देने वाले इस फैसले को वापस लेना चाहिए।

हमारी नीति यह होनी चाहिए कि जितने पेड़ काटने की अनुमति दी जाए, उतने ही पेड़ न केवल लगाने होंगे, बल्कि उनका पालन-पोषण भी करना होगा। अगर इस तरह के अधिकार दे दिए गए तो जंगल एक दिन खाली हो जाएंगे। जंगलों के खाली होने से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाएगा और देश तथा प्रदेश पर आपदाएं ही आपदाएं आती रहेंगी। उस स्थिति में इन आपदाओं के लिए किसे दोषी ठहराया जाएगा? इसलिए मेरा मानना है कि यह फैसला विवेकशील नहीं है। इस तरह के फैसलों से तबाही की आशंकाएं बनी रहती हैं।