पंचायतों का निर्विरोध चुनाव समय की जरूरत: राकेश शर्मा, लेखक जसवां से हैं

इस प्रकार संक्रमण के एक घर से दूसरे घर पहुंचने की संभावना बहुत ज्यादा है। इसके अलावा पंचायत चुनावों के लिए कर्मचारियों की होने वाली चुनावी रिहर्सल और अन्य चुनाव संबंधी कार्यों में भी संक्रमण के फैलने की आशंका बहुत अधिक है। पंचायत चुनाव प्रदेश के लिए बड़ी मुसीबत न बन जाएं, इसके लिए सरकार को ही नहीं समाज को भी पहल करने की आवश्यकता है। यह पहल निर्विरोध पंचायतों के गठन के लिए मुहिम बनाकर की जा सकती है। 2015-16 के पंचायत चुनावों के दौरान भी पूरे प्रदेश में 100 से अधिक पंचायतों का चुनाव निर्विरोध किया गया था…

तेजी से फैल रहे कोरोना संक्रमण के इस मुश्किल वक्त में अब पंचायत चुनावों की आहट भी प्रदेश में सुनाई देने लगी है। हालांकि अभी तक पंचायत चुनावों के लिए प्रदेश सरकार द्वारा तारीखों का ऐलान नहीं किया गया है, फिर भी इन चुनावों की गरमाहट का एहसास प्रदेश की सर्द फिजाओं में होने लगा है। गांव की चौपालों और चौराहों पर सजने वाली महफिलें अब पंचायत चुनावों की चर्चाओं पर केंद्रित होती जा रही हैं। ये चर्चाएं अब आम लोगों के कानों को भी रस प्रदान कर रही हैं। पंचायत चुनावों का रोस्टर जारी होने से पहले ही चुनावी समीकरणों का ताना-बाना हर पंचायत में बुना जा रहा है। संभावित उम्मीदवारों और उनकी जीत-हार के दावों का दौर भी शुरू हो चुका है।  पंचायत चुनाव आम जनता के लिए हमेशा से ही केंद्र सरकार और राज्य सरकार चुनने के लिए होने वाले चुनावों से ज्यादा मायने रखते हैं। इसका कारण है स्थानीय उम्मीदवार और जनता के स्थानीय मुद्दे। प्रधान, उपप्रधान, वार्ड पंच, ब्लॉक समिति और जिला परिषद के लिए एक साथ चुनाव भी इस चुनाव को अधिक जोशीला बना देते हैं। राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह पर बेशक ये चुनाव न हों, फिर भी ये चुनाव राजनीति से अछूते नहीं रहते और राजनीतिक दलों की महत्त्वाकांक्षा भी इन चुनावों को काफी हद तक प्रभावित करती है। इन बातों से अंदाजा लगाया जा सकता है कि आने वाले पंचायत चुनावों का नशा किस कदर लोगों के दिलो-दिमाग पर छाने वाला है।

पंचायत चुनावों के लिए बलबती होती इन सभी चर्चाओं के बीच अगर कुछ गायब है तो वह है चुनावों के दौरान कोराना संक्रमण को लेकर एहतियात और बचाव के उपायों की चर्चा। हिमाचल प्रदेश में कोरोना संक्रमण रोज नए रिकॉर्ड बना रहा है। इस छोटे प्रदेश की संक्रमण दर पूरे देश में सबसे बड़ी हो चुकी है। सरकार चिंतित है और इस संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए बंदिशों के नित नए फरमान जारी कर रही है। शिक्षण संस्थान बंद हैं, समारोहों पर रोक है और शादियों में मेहमानों की गिनती की जा रही है। इतना सब कुछ होने के बावजूद सरकार पंचायत चुनावों को समय पर करवाने के लिए आश्वस्त है। सरकार द्वारा बार-बार यह कहा जा रहा है कि पंचायत चुनाव तय वक्त पर ही करवा दिए जाएंगे।

ऐसे में पंचायत चुनावों और कोरोना संक्रमण की रोकथाम में कैसे तालमेल बिठाया जाए, यह एक विचारणीय पहलू है। पंचायत चुनावों में उम्मीदवारों के लिए जनसंपर्क सबसे बड़ा हथियार होता है और यह कहा भी जाता है कि इन चुनावों में जो उम्मीदवार सबसे ज्यादा जनसंपर्क करता है, वही चुनाव भी जीतता है। पंचायत चुनावों में अमूमन प्रत्याशियों की संख्या बहुत अधिक होती है और इन प्रत्याशियों द्वारा जन समर्थन हासिल करने के लिए घर-घर लगाई जाने वाली हाजिरी से कोरोना संक्रमण के लिए उपयुक्त माहौल बनने की गुंजाइश बहुत अधिक है। अगर ऐसा होता है तो प्रदेश में संक्रमण का आंकड़ा कहां तक पहुंच जाएगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। यह सही है कि इस बार के चुनावों में सरकार कुछ नए दिशानिर्देशों के अधीन ही चुनाव संपन्न करवाएगी। इन निर्देशों का पालन पोलिंग बूथों पर पुलिस के सहयोग से तो करवाया जा सकता है, लेकिन प्रत्याशियों को घर-घर घूमने से रोक पाना असंभव है। इस प्रकार संक्रमण के एक घर से दूसरे घर पहुंचने की संभावना बहुत ज्यादा है। इसके अलावा पंचायत चुनावों के लिए कर्मचारियों की होने वाली चुनावी रिहर्सल और अन्य चुनाव संबंधी कार्यों में भी संक्रमण के फैलने की आशंका बहुत अधिक है।

 पंचायत चुनाव प्रदेश के लिए बड़ी मुसीबत न बन जाएं, इसके लिए सरकार को ही नहीं समाज को भी पहल करने की आवश्यकता है। यह पहल निर्विरोध पंचायतों के गठन के लिए मुहिम बनाकर की जा सकती है। हम एक लोकतांत्रिक देश के निवासी हैं और चुनाव ही लोकतंत्र की  सबसे बड़ी विशेषता है। इसलिए चुनावों से दूर नहीं भागा जा सकता। लेकिन पंचायतों के लिए होने वाले इन चुनावों में राज्य सरकार द्वारा पंचायतों के निर्विरोध चुनाव का दिया जाने वाला विकल्प एक बहुत बड़ी विशेषता है। महामारी के दौर में पंचायतों के निर्विरोध चुनाव के विकल्प को ध्यान में रखना सबसे अधिक जरूरी है। आज के इस कठिन समय में एक निर्विरोध पंचायत का चुनाव उस पंचायत के निवासियों का अपने समाज के कल्याण के प्रति एक बड़ा कदम साबित हो सकता है। पंचायत प्रधान, उपप्रधान और पंचायत के सदस्यों के लिए ग्रामवासियों द्वारा की गई सहमति न केवल पंचायत के विकास के लिए अवसर प्रदान करती है, बल्कि उस पंचायत के निवासियों की बुद्धिमता और विकासवादी दृष्टिकोण को भी परिलक्षित करती है। हिमाचल प्रदेश में इस वर्ष नई पंचायतों के गठन के बाद इस बार प्रदेश में कुल 3456 पंचायतों के लिए चुनाव करवाए जाएंगे।

 पंचायत चुनावों का यह कार्य बहुत बड़ा, काफी लंबा और पेचीदगी भरा होता है। पूर्व के वर्षों में इस चुनाव को तीन चरणों में करवाया जाता रहा है और इस बार यह चुनाव इससे भी अधिक चरणों में होगा, ऐसी उम्मीद की जा रही है। कर्मचारियों की पोलिंग पार्टियां एक जगह चुनाव करवाने के बाद दूसरी जगह और उसके बाद तीसरी जगह जाकर चुनाव करवाती हैं। कोविड के इस भयानक दौर में ये सब संक्रमण को फैलने में मदद करने वाला है। इसलिए निर्विरोध पंचायतों का अधिक से अधिक चुनाव ही इस समस्या का एकमात्र हल नजर आ रहा है। 2015-16 के पंचायत चुनावों के दौरान भी पूरे प्रदेश में 100 से अधिक पंचायतों का चुनाव निर्विरोध किया गया था। इन पंचायतों को प्रति पंचायत 25 लाख रुपए की राशि सरकार ने इनाम स्वरूप दी थी।