स्वदेशी से ही स्वावलंबन संभव: डा. अंजनी कुमार झा, लेखक बिहार से हैं

स्वदेशी जागरण मंच कई दशकों से देशी उत्पादों को अपनाने को लेकर आंदोलनरत है। मंच के राष्ट्रीय संयोजक अश्विनी महाजन का मानना है कि देश का विकास तेजी से तभी होगा जब वह स्थानीय स्तर के आधार पर होगा। स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए भाजपा सरकार ने आर्थिक सहयोग, मार्केट और तकनीकी सहयोग देना शुरू कर दिया है। केंद्र सरकार का वोकल फॉर लोकल का कदम मेक इन इंडिया से भी काफी आगे है। जरूरत में स्वदेशी और मजबूरी में विदेशी नारे को साकार करने की जरूरत है…

स्वदेशी से स्वावलंबन, स्वाभिमान, आत्मरक्षा के अलावा राष्ट्रीयता का भाव पैदा होता है। यह मनुष्य के सर्वांगीण विकास के साथ संपूर्ण चर-अचर के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। निश्चित रूप से स्वदेशी तकनीक को हर विधा में अपनाकर हम आत्मनिर्भर बन सकते हैं। प्राचीन भारत की पहचान भी इसी कारण पूरी दुनिया में बनी थी। इसी कारण हिंदुस्तान को एक अलग नजरिए से देखा जाता था। औपनिवेशिक काल में स्व को नष्ट करने की जी-तोड़ कोशिश की गई। आज आजादी के 72 सालों बाद भी इसकी महत्ता को समझने के बावजूद हम स्वदेशी को लेकर संशय में हैं।

तभी तो उदारीकरण, विदेशी पूंजी निवेश के जरिए न केवल बाजार को खुला छोड़ दिया गया, बल्कि समाज-संस्कृति पर हो रहे  कुठाराघात पर भी हमने खामोश रहना कहीं ज्यादा उचित समझा। बार-बार संघ परिवार के विभिन्न मंचों पर विरोध को छोड़ दें तो भयावह उदासीनता पसरी है। खेती-किसानी की बदतर हालत, दम तोड़ते कल-कारखाने, ऑनलाइन शॉपिंग की गांव-गांव तक पहुंच से भारतीय व्यावसायिकों बड़े, मझोले, लघु और असंगठित कामगारों की स्थिति चरमरा रही है। चीनी वस्तुओं के सैकड़ों उत्पादों पर रोक भले ही लगी हो, किंतु भारतीय बाजार गुलज़ार नहीं हो सका। आयात दरों में वृद्धि के बावजूद स्वदेशी के मर्म को नहीं समझा जा रहा है। कोरोना संक्रमण से भी हम सबक नहीं ले पाए। बार-बार प्रधानमंत्री के आह्वान के बाद भी यह हरित या श्वेत क्रांति की तरह जनांदोलन नहीं बन सका। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि महंगाई और बेरोजगारी बढ़ रही है। दोषपूर्ण व्यवस्था और नौकरशाही के कारण असमानता बढ़ रही है। आज अंतरिक्ष क्षेत्र में हम स्वदेशी तकनीक के जरिए कई उत्पादों का निर्यात भी कर रहे हैं। कुछ ऐसा ही कृषि-उद्योग क्षेत्र में करने की आवश्यकता है।

वस्तुतः यह केवल उत्पाद से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह एक विचार है। इससे स्थानीय प्रतिभा को आगे बढ़ने का अवसर मिलेगा। गांधीजी कहते थे ः ‘स्वदेशी केवल रोटी, कपड़ा और मकान का नहीं, अपितु संपूर्ण जीवन का दृष्टिकोण है। यह देश की प्राणवायु है, स्वराज्य और स्वाधीनता की गारंटी है। गरीबी-गुलामी-भुखमरी से मुक्ति का उपाय है। इसके अभाव में राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और मानसिक स्वतंत्रता सर्वथा असंभव है।’ गांधी-इरविन पैक्ट के समय चर्चा चल रही थी। दोपहर में चाय का समय था। वाइसराय साहब के लिए चाय आई और गांधीजी के लिए नींबू पानी। वाइसराय को समझ नहीं आया कि गांधीजी ने क्या किया तो उन्होंने पूछा कि आपने यह क्या डाला पानी में? उन्होने उत्तर दिया ः ‘आपके नमक कानून का उल्लंघन कर मैंने जो नमक बनाया था, उस नमक की पुड़ी को मैंने इसमें डाला है।’ इतना मजबूत और विस्तृत है स्वदेशी का विचार। प्रख्यात  स्वदेशी  चिंतक दत्तोपंत ठेंगड़ी ने कहा ः ‘यह मानना भूल है कि स्वदेशी का संबंध केवल माल या सेवाओं से है। यह फौरी किस्म की सोच होगी। इसका मतलब है देश को आत्मनिर्भर बनाने की प्रबल भावना, राष्ट्र की सार्वभौमिकता और स्वतंत्रता की रक्षा तथा समानता के आधार पर अंतरराष्ट्रीय सहयोग।’ उनका स्पष्ट मानना था कि स्वदेशी देशप्रेम की साकार और व्यावहारिक अभिव्यक्ति है। हम खुद क्यों नहीं विदेशी उत्पाद से दूरी बना लेते। जब हम खरीदेंगे ही नहीं तो भविष्य में कभी वह माल बिकने के लिए यहां आएगा ही नहीं। एक साल अमरीका में प्रचुर मात्रा में संतरे का उत्पादन हुआ।

जापान की महिलाओं को संतरे बहुत पसंद थे। अमरीका ने जापान को अपने संतरे बेचने के लिए उचित बाजार समझा और जापान पर दबाव बनाया कि वह अमरीका के संतरे अपने बाजार में बिकने दे। पहले तो जापान ने इंकार किया, लेकिन अमरीका की धौंस-पट्टी के कारण उसे अपने बाजार खोलने पड़े। लेकिन जैसे ही जापान की महिलाओं और अन्य नागरिकों को यह ज्ञात हुआ कि हमारे बाजारों में जो संतरे की भारी आवक दिख रही है, उसके पीछे अमरीका की धौंस-पट्टी है तो उन्होंने बहुत पसंद होने के बाद भी संतरे नहीं खरीदे। यह है स्वदेशी का नागरिक बोध। देश में नमक आंदोलन, विदेशी वस्तुओं की होली जलाने से ही सबक लेकर इस बार भी चीनी निर्मित वस्तुओं का बहिष्कार किया तो स्वदेशी निर्मित उत्पादों की खपत काफी बढ़ गई। संघ प्रमुख डा. मोहन भगवत के स्वदेशी सामानों को अपनाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लोगों से लोकल फॉर वोकल की बात पर जोर दिया। स्वदेशी जागरण मंच कई दशकों से देशी उत्पादों को अपनाने को लेकर आंदोलनरत है। मंच के राष्ट्रीय संयोजक अश्विनी महाजन का मानना है कि देश का विकास तेजी से तभी होगा जब वह स्थानीय स्तर के आधार पर होगा। स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए भाजपा सरकार ने आर्थिक सहयोग, मार्केट और तकनीकी सहयोग देना शुरू कर दिया है। केंद्र सरकार का वोकल फॉर लोकल का कदम मेक इन इंडिया से भी काफी आगे है। जरूरत में स्वदेशी और मजबूरी में विदेशी नारे को साकार करने की जरूरत है।

आर्थिक सलाहकार आरडी चौधरी के मत में इसका असर लंबे समय बाद अर्थव्यवस्था पर नजर आएगा। पीएम नरेंद्र मोदी ने ठीक ही कहा कि कोरोना ने हमें लोकल मार्केट की चेन का महत्त्व भी समझा दिया है। स्थानीय बाजार केवल जरूरत नहीं, बल्कि हम सबकी जिम्मेदारी है। लोकल को हमें अपने जीवन का मंत्र बनाना ही होगा।