सेना और नैतिक नीचता

कर्नल (रि.) मनीष धीमान

स्वतंत्र लेखक

इस बीते सप्ताह हिमाचल में ग्राम पंचायत के लिए चुनाव की तैयारी कर रहे कुछ प्रत्याशियों ने अपना नामांकन वापस ले लिया तथा बचे हुए को चुनाव चिन्ह मिल जाने से जहां मौसमी पारा दिन प्रतिदिन नीचे गिरता जा रहा है, उसी के विपरीत सियासी पारा उसी गति से उछाल ले रहा है। दिल्ली के चारों तरफ  कृषि कानून के विरोध में धरने पर बैठे किसानों ने ट्रैक्टर रैली के साथ अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की है। दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमरीका में जब राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम पर फाइनल मोहर लगी तो ट्रंप समर्थकों का कैपिटल बिल्डिंग में घुसकर तोड़फोड़ करना, उपराष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठना, ट्रंप का भड़काऊ भाषण अमरीका के इतिहास में काले अध्याय के रूप में दर्ज किया जाएगा। जो ट्रंप ने किया, वह नैतिक नीचता का एक उदाहरण है। नैतिक नीचता को परिभाषा के अनुसार ‘ऐसा कृत्य जो एक सभ्य समाज को स्वीकार्य नहीं है।’ सेना में चोरी, बलात्कार, भ्रष्टाचार,  घूसखोरी आदि कृत्यों के आधार पर एक सैनिक पर नैतिक नीचता या मोरल ट्रपिच्युडड का मुकदमा लगाकर कोर्ट मार्शल तक की बड़ी से बड़ी सजा दी जाती है, पर अगर ढंग से समझा जाए तो जब एक आदमी या संस्था अपने स्वार्थ के लिए जूनियर लोगों को कानून के बजाय अपने तरीके से चलाने की कोशिश करे और विरोध करने वाले को मानसिक और शारीरिक तौर पर तंग करे तो वह भी नैतिक नीचता ही है। सेना में ऐसे उदाहरण मिलेंगे जब एक वरिष्ठ अधिकारी ऐसे जूनियर जो उनकी ग़लत बात नहीं मानते, उन्हें इस तरह से तंग किया जाता है कि काबिलियत होने के बावजूद तरक्की न देना, सही जगह सही काम पर न लगाना।

उसी का नतीजा है कि आज सैनिक सरहद में गोलीबारी से कम और तनाव से ज्यादा जान दे रहे हैं। समय-समय पर  डिफेंस मैगजीन में इस बात को उजागर किया जाता है कि जिस तरह से बाबू लोग अपने राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए किसी भी तरह से कानून को तोड़ मरोड़ कर अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं, उसी तरह से सेना में भी अपने वरिष्ठ अधिकारियों की खुशी तथा तरक्की पाने के लिए लोग सैन्य कानूनों को तोड़ मरोड़ कर इस्तेमाल करते हैं। मेरा मानना है कि जब भी कोई आदमी अपने को संस्था से बड़ा या कोई नेता अपने को देश से बड़ा समझने लग जाए और उसके लिए झूठ का प्रोपेगेंडा चलाए, वह नैतिक नीचता का हिस्सा है। ट्रंप समर्थित लोगों में भारत के राष्ट्रध्वज का दिखना शर्म की बात है। आज समय आ गया है कि जब अमरीका जैसे सशक्त लोकतंत्र और शक्तिशाली देश में ट्रंप जैसे झूठे राष्ट्रवादी शख्स ने अपने असली व्यक्तित्व को तब उजागर किया जब फैसले उसके विरुद्ध गए और उसके समर्थकों ने नैतिकता का सही मतलब समझे बिना एक व्यक्ति विशेष को देश मान कर किए कृत्य से सम्पूर्ण विश्व में थू-थू करवाई है। इससे बड़ी नैतिक नीचता कुछ और नहीं हो सकती। भारत में भी हम लोगों को इस घटना से सबक लेते हुए चोरी, बलात्कार, भ्रष्टाचार के साथ-साथ इस तरह की अंधभक्ति से होने वाले समाज के नुक़सान के बारे में भी समझने की जरूरत है।