बजट का शिक्षा क्षेत्र पर असर

डा. वरिंदर भाटिया

कालेज प्रिंसिपल

घर पर कंप्यूटर या पर्याप्त संख्या में मोबाइल न होने के कारण जहां ऑनलाइन पढ़ाई में लड़कों को लड़कियों पर प्राथमिकता दी गई, वहीं कोरोना के कारण आर्थिक तंगी से भी लड़कियों की पढ़ाई छूटने का डर शामिल हो गया। इस सर्वे के अनुसार 37 फीसदी लड़कों की तुलना में महज 26 फीसदी लड़कियों को ही पढ़ाई के लिए फोन मिल पाया…

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन के बजट 2021-22 को शिक्षा क्षेत्र के लिए अत्यंत संयमित और संकुचित कहा जा सकता है। वित्त मंत्री ने इस बार के बजट में शिक्षा के क्षेत्र में पिछले वर्षों की तुलना में कई बदलाव किए हैं। अगर हम पिछले साल के बजट पर नजर डालें तो देखा जा सकता है कि सरकार की ओर से एजुकेशनल स्कीम कम कर दी गई है। कोरोना वायरस महामारी की वजह से एजुकेशन सेक्टर में भारी फेरबदल देखे गए हैं। अचानक देशभर में लगे लॉकडाउन के बीच ऑनलाइन क्लासेज से लेकर ऑनलाइन एग्जाम लगभग हर स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी में कराए जाने लगे। ऐसे में शिक्षा बजट को लेकर यह कयास लगाई जा रही थी कि सरकार की ओर से कुछ ऐसी पॉलिसी लाई जाएगी जिससे महामारी के दौर में भी शिक्षा को और मजबूत किया जा सके। पिछले साल के बजट में एजुकेशन सेक्टर के लिए 99300 करोड़ रुपए की घोषणा की गई थी। इसके बाद लॉकडाउन के दौरान देश के सभी शिक्षण संस्थानों को बंद कर दिया गया। बजट के दौरान कहा गया था कि 2021 तक देश भर में 150 शिक्षण संस्थान खोले जाएंगे। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने नेशनल पुलिस यूनिवर्सिटी और नेशनल फॉरेंसिक यूनिवर्सिटी खोलने की भी घोषणा की थी। वहीं अगर साल 2019-20 के शिक्षा बजट को देखें तो मोदी सरकार ने 94853.24 करोड़ रुपए खर्च करने का फैसल लिया था।

इसमें हायर एजुकेशन के लिए 38317 करोड़ और स्कूली शिक्षा के लिए 56536.63 करोड़ रुपए खर्च करने की घोषणा की गई थी। वहीं सरकार की ओर से घोषित बजट में देश में रिसर्च एंड डेवलपमेंट को बढ़ावा देने पर ज्यादा जोर दिया गया है। इसके तहत शोध को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय शोध प्रतिष्ठान की स्थापना करने का फैसला लिया गया है। इसमें 50 हजार करोड़ रुपए खर्च किए जाएंगे। वहीं हायर एजुकेशन को बढ़ावा देने के लिए उच्च शिक्षा आयोग बनाने का प्रस्ताव पास किया गया है। पिछले साल के बजट में 150 शिक्षण संस्थानों को खोलने का फैसला लिया गया था। इस बार 100 नए सैनिक स्कूल खोले जाने की घोषणा हुई है। वहीं देश भर के करीब 15 हजार स्कूलों को मजबूती देने का काम किया जाएगा। लद्दाख में उच्च शिक्षा मुहैया कराने के लिए लेह में सेंट्रल यूनिवर्सिटी खोलने का फैसला लिया गया है। इसके अलावा आदिवासी बच्चों पर खास ध्यान देते हुए आदिवासी क्षेत्रों में 750 एकलव्य आदर्श आवासीय विद्यालय खोले जाएंगे। इसके लिए बजट 20 करोड़ से बढ़ाकर 38 करोड़ किया गया है। साथ ही 100 नए सैनिक स्कूल खोले जाने की घोषणा की गई है।

 ये स्कूल निजी स्कूलों और गैर-सरकारी संगठनों के साथ मिलकर पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप पर खोले जाएंगे। देश के वर्कफोर्स को वैश्विक स्तर पर स्किल्ड बनाने के लिए जापान के साथ इंटर ट्रेनिंग प्रोग्राम की जानकारी दी गई है। वित्त मंत्री ने कहा है कि इसे अन्य कई देशों के साथ भी शुरू किया जाएगा। यूएई के साथ ऐसी एक ट्रेनिंग पार्टनरशिप पर काम चल रहा है। 2024 तक शिपयार्ड में करीब 1.5 लाख नौकरियों की घोषणा की गई है। यह सब कुछ पर्याप्त नहीं लग रहा है। हालांकि इस बजट ने उन लाखों-करोड़ों युवाओं को निराश किया है जो सरकारी नौकरियों  के लिए घोषणाओं का इंतजार कर रहे थे। कोरोना लॉकडाउन के कारण पिछले दस महीने से बंद स्कूलों को बजट से कुछ खास नहीं मिल सका है। कोविड की प्रतिकूल परिस्थितियों, डिजिटल शिक्षा पर बढ़ती निर्भरता और नई शिक्षा नीति को देखते हुए इस साल स्कूली शिक्षा के बजट में खासी बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही थी। वहीं कई शिक्षा अधिकार कार्यकर्ता शिक्षा क्षेत्र के लिए विशेष कोविड पैकेज की मांग कर रहे थे, जिसमें शिक्षा बजट में कम से कम 10 फीसदी की बढ़ोतरी का मांग शामिल थी। लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि इस साल भी शिक्षा बजट में कुछ खास वृद्धि नहीं की गई है (बल्कि यह 2020-21 के मूल बजट की घोषणा से कम ही है)।

 एक फरवरी 2020 को जब वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2020-21 का बजट पेश किया था तो शिक्षा मंत्रालय को 99311.52 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। लेकिन संशोधित अनुमानों में इस राशि को कम कर 85089 करोड़ रुपए कर दिया गया। अब इस साल के बजट में शिक्षा क्षेत्र को 93224.31 करोड़ रुपए का बजट मिला है जो कि 2020-21 के बजट से लगभग 8 हजार करोड़ रुपए अधिक तो है, लेकिन यह 2020-21 के मूल बजट से 6 हजार करोड़ रुपए कम है, जो कि शिक्षा की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए निराशाजनक है। इस साल के स्कूली शिक्षा बजट में 54873 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया। 2020-21 के बजट में यह राशि 52189 करोड़ रुपए थी, जबकि फरवरी 2020 में पेश बजट में इसके लिए 59845 करोड़ रुपए का आवंटन किया गया था। यानी संशोधित अनुमानों में इसे लगभग 7 हजार करोड़ रुपए कम कर दिया गया। जबकि 2019-20 में इस मद पर 52520 करोड़ रुपए ख़र्च किए गए थे। कोविड महामारी के कारण शिक्षा जगत पर बेहद प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। शिक्षा जगत से जुड़े लोगों ने महामारी के कारण स्कूली शिक्षा के इंफ्रास्ट्रक्चर और डिजिटाइजेशन को बढ़ावा देने के लिए इसमें कम से कम 10 फीसदी की बढ़ोतरी की मांग की थी। नई शिक्षा नीति के लागू होने और उसके इर्द-गिर्द नई संस्थाओं, पाठ्यक्रमों व अन्य इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण होने के कारण भी शिक्षा बजट में बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही थी। इस समय देश की सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था पहले से ही ढेर सारी चुनौतियों से जूझ रही है। कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी ने भी शिक्षा क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। ऐसे में जरूरी था कि सरकार शिक्षा के मद में सामान्य से अधिक बजट और अतिरिक्त कोविड पैकेज की घोषणा करे।

 लेकिन ऐसा नहीं हुआ है। कोरोना लॉकडाउन और उससे हुई स्कूल बंदी के कारण बालिकाओं की शिक्षा सबसे अधिक प्रभावित हुई है और उन्हें घरेलू कामों और बाल विवाह की तरफ मजबूरन जाना पड़ा है। हाल ही में सेंटर फॉर बजट एंड पॉलिसी स्टडीज  चैंपियंस फॉर गर्ल्स एजुकेशन और राइट टू एजुकेशन फोरम  ने एक साथ मिलकर देश के 5 राज्यों में एक सर्वे किया था, जिसके मुताबिक कोरोना के कारण स्कूली लड़कियों की पढ़ाई पर बहुत ही प्रतिकूल असर पड़ा है। घर पर कंप्यूटर या पर्याप्त संख्या में मोबाइल न होने के कारण जहां ऑनलाइन पढ़ाई में लड़कों को लड़कियों पर प्राथमिकता दी गई, वहीं कोरोना के कारण आर्थिक तंगी से भी लड़कियों की पढ़ाई छूटने का डर शामिल हो गया। इस सर्वे के अनुसार 37 फीसदी लड़कों की तुलना में महज 26 फीसदी लड़कियों को ही पढ़ाई के लिए फोन मिल पाया। इस तरह मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा देने में घर और परिवार वाले लड़कों को ही प्राथमिकता देते हैं। इसी सर्वे में ही 71 प्रतिशत लड़कियों ने माना था कि कोरोना के बाद से वे केवल घर पर हैं और ऑनलाइन पढ़ाई के समय में भी उन्हें घरेलू काम करने के लिए कहा जाता है। इसके अलावा गरीब बच्चे डिजिटल डिवाइड का भी शिकार हो रहे हैं। उनके बारे में भी कोई प्रावधान इस वर्ष के बजट में नहीं किया गया है। नीति निर्माताओं को इस तरफ  गंभीरता से सोचना होगा।

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