कभी यहां लगते थे मेले, आज पसरा है सन्नाटा, अस्तित्व खो रहे व्यास नदी के पत्तन और बेडिय़ां

ठाकुरद्वारा — जब पुल नहीं थे, तो नदियों को विशेष स्थानों पर किश्ती के माध्यम से पार किया जाता था। उन स्थानों को पत्तन और किश्ती को बेड़ी कहा जाता था। अब आलम यह है कि पुलों के निर्माण के बाद पत्तन और बेडिय़ां दोनों का ही अस्तित्व खत्म होने की कगार पर है। हिमाचल-पंजाब की सीमा के साथ-साथ शाहनहर बैराज से नीचे पड़ते व्यास दरिया में रे से लेकर मिरथल तक नदी में कई पत्तन थे, जो कि इंदौरा को मंड क्षेत्र और पंजाब के क्षेत्र से जोड़ते थे।

व्यास नदी किनारे बसने वाले मल्लाह जाति के लोगों का यह मुख्य पेशा बेड़ी चलाना ही था। हिमाचल सरकार हर वर्ष इन व्यास नदी के पत्तनों की बोली करवाकर लाखों रुपए का राजस्व जुटाती थी। अब तो मात्र इन बेडिय़ों के माध्यम से व्यास नदी पार करने का सहारा किसान ही लेते हैं।