कोरोना को लेकर लापरवाही पड़ेगी भारी

भयमुक्त होना अच्छा है, लेकिन बेपरवाह होना कोरोना से जीतने की लड़ाई में कतई बर्दाश्त योग्य नहीं है। मास्क व शारीरिक दूरी, जिसे कोरोना की प्रारंभिक वैक्सीन कहा जाता है, आज जनता इस वैक्सीन को भुला चुकी है जिसका परिणाम आज हम सभी के समक्ष कोरोना मामलों में अत्यधिक वृद्धि के रूप में सामने है। आज देश में लापरवाहियों से कुछ राज्यों के हालात इस कदर बिगड़ गए हैं कि लॉकडाउन की नौबत आ चुकी है। यहां तक कि कुछ राज्यों ने प्रथम व अंतिम विकल्प के रूप में लॉकडाउन को अपना लिया है…

कोरोना महामारी से आज पूरा विश्व प्रभावित है। किसी ने नहीं सोचा था कि यह महामारी इतने लंबे वक्त तक अस्तित्व में रहेगी, लेकिन कोरोना ने पूरे वैश्विक मानव समाज को जीवन बचाने के संघर्ष में रुलाकर रख दिया है। लोगों ने सोचा था कि मास्क से कभी छुटकारा नहीं मिल पाएगा और न ही स्थिति पहले की तरह सामान्य होगी, लेकिन घूमते वक्त के पहिए के साथ धीरे-धीरे 2021 की शुरुआत तक कोरोना महामारी का रंग फीका-सा पड़ गया था। लोगों ने उम्मीदें लगा ली थीं कि मानो अब कोरोना का अंत निश्चित है। हुआ भी इसी प्रकार, कोरोना लगभग समाप्त होता दिख रहा था और उम्मीदों पर मोहर लगाने का काम किया कोरोना वैक्सीन ने, परंतु लोगों की बेपरवाही व असंवेदनशील रवैये ने बेजान होते, खत्म होते कोरोना को एक बार फिर सक्रिय कर दिया। आज पूरा देश कोरोना की दूसरी लहर से जूझ रहा है।

भारत में कोरोना की दूसरी लहर पर सावधानी बहुत जरूरी है। आज अगर भारतवर्ष में देखा जाए तो 10 से अधिक राज्य कोरोना की दृष्टि से संवेदनशील स्थिति में हैं। इन राज्यों में सरकारें लॉकडाउन लगाने के पक्ष में दिख रही हैं और लगाने की तैयारी भी हो चुकी है। कई राज्यों ने रात्रि कर्फ्यू को लगा दिया है और कुछ राज्यों में 30 मई तक आठवीं कक्षा तक स्कूल बंद रखने का निर्णय भी किया गया है। अगर यह लापरवाही जारी रही तो भविष्य में इस महामारी से मौत के आंकड़े बढ़ सकते हैं। इसलिए लापरवाही को छोड़कर और राज्य सरकारें भी सख्ती से आदेश जारी करें क्योंकि कुछ राज्यों में अगर आज भी देखा जाए तो कोरोना के इस भयावह दौर में बसों में ओवरलोडिंग होना एक बहुत ही चिंताजनक विषय है। इसलिए हमें चाहिए कि हम स्वयं ही सतर्कता बरतना शुरू कर दें। सरकारों को भी मानक संचालन प्रक्रिया नियमों (एसओपी) का पालन करते हुए सख्त आदेश जारी करने की आवश्यकता है। भले ही सख्ती हो क्योंकि यह सख्ती ही स्वास्थ्य की रक्षा कर सकती है। हाल ही में जिस तरह से पंजाब में 30 मार्च तक स्कूल और कॉलेज बंद किए गए हैं, उसी तर्ज पर इससे सटे हुए राज्यों के स्कूल और कॉलेज भी बंद होने चाहिएं। तभी कोरोना की रफ्तार कम हो सकती है क्योंकि जब तक पंजाब से आवाजाही चलती रहेगी या अन्य राज्यों से आवाजाही होती रहेगी तो कोरोना के ऊपर रोक लगाना बहुत ही कठिन है और सच में यह बहुत बड़ा चिंता का विषय बन चुका है कि भारत में कोरोना एक बार फिर बहुत तेजी से अपने उखड़े पैर पसार रहा है। इसका क्या कारण है, यह चिंतित करता है। हालांकि भारत में वैक्सीन भी करोड़ों लोगों को लग चुकी है, लेकिन फिर भी कोरोना का स्तर अभी तक गिरा नहीं है, बल्कि बढ़ा ही है। इसलिए आम जनमानस को बहुत ही सावधानी बरतनी होगी। जहां पर भीड़भाड़ के क्षेत्र हैं, उनके ऊपर रोक लगानी होगी। हालांकि कुछ सरकारों ने मेलों और त्योहारों पर रोक लगा दी है, लेकिन फिर भी हमें देखना है कि किस तरह से इस महामारी पर काबू पाया जा सकता है, अन्यथा मानव जीवन एक बार फिर घरों में कैद होने की संभावना बढ़ती जा रही है। पिछले वर्ष 22 मार्च 2020 को सरकार ने जनता कर्फ्यू लगाया था ताकि देश की जनता की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित हो।

 यह काफी हद तक ठीक भी था, लेकिन अब 2021 का 22 मार्च भी आ चुका है, लेकिन स्वास्थ्य सुरक्षा तो छोड़ो, कोरोना अब उस समय से काफी संवेदनशील स्थिति में समाज में फैला हुआ है, जिससे बचने के लिए आज सरकारों व लोगों द्वारा शारीरिक दूरी व मास्क है जरूरी, दवाई भी कड़ाई भी, दो गज की दूरी है जरूरी व जान है तो जहान है जैसी धारणाओं की संज्ञा दी जा रही है, लेकिन केवल संज्ञा देने से सब कुछ सामान्य नहीं हो सकता। इसके लिए आवश्यकता है अपनी स्वास्थ्य व दैनिक स्वच्छता को सुनिश्चित करने व भीड़ से बचने की। देश की केंद्र व राज्य सरकारें पिछले एक वर्ष से, जबसे कोरोना महामारी का प्रकोप देश में फैला है, तब से सक्रिय रूप से कोरोना की रोकथाम के लिए क्रियाशील हैं तथा समय-समय पर विशेष नियमों-उपनियमों को अपना कर कोरोना से जनता को बचाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही हैं, लेकिन अत्यंत खेद का विषय यह है कि कोरोना से सरकार तो भयभीत है, लेकिन जनता भयमुक्त होकर बिना किन्हीं सुरक्षा उपायों को अपनाकर भीड़ लगाकर कोरोना को बुलावा दे रही है।

भयमुक्त होना अच्छा है, लेकिन बेपरवाह होना कोरोना से जीतने की लड़ाई में कतई बर्दाश्त योग्य नहीं है। मास्क व शारीरिक दूरी, जिसे कोरोना की प्रारंभिक वैक्सीन कहा जाता है, आज जनता इस वैक्सीन को भुला चुकी है जिसका परिणाम आज हम सभी के समक्ष कोरोना मामलों में अत्यधिक वृद्धि के रूप में सामने है। आज देश में लापरवाहियों से कुछ राज्यों के हालात इस कदर बिगड़ गए हैं कि लॉकडाउन की नौबत आ चुकी है। यहां तक कि कुछ राज्यों ने प्रथम व अंतिम विकल्प के रूप में लॉकडाउन को अपना लिया है। देश की प्रबुद्ध जनता को आत्मचिंतन करते हुए विवेक का इस्तेमाल करके सोचना-समझना होगा कि कोरोना के प्रति उन्होंने अपने व्यवहार में बदलाव नहीं किया तो कोरोना महामारी की दूसरी तीव्र भयंकर लहर से बच पाना मुश्किल होगा। कोरोना से बचना कोई बड़ी चुनौती नहीं है, बस केवल परिस्थितियों को समझने की आवश्यकता है।