तेल से आय का सदुपयोग हो

मैं समझता हूं कि कपड़े और कागज जैसी आवश्यक एवं उपयोगी वस्तुओं के स्थान पर तेल पर अधिक टैक्स वसूल करना ही उचित होगा। विशेषकर इसलिए कि तेल पर टैक्स वसूल करने का बोझ आम आदमी पर कम और समृद्ध वर्ग पर ज्यादा पड़ेगा। तेल के ऊंचे मूल्य सही हों तो भी सरकार की आलोचना इस बिंदु पर की जानी चाहिए कि तेल के ऊंचे दामों से अर्जित रकम का उपयोग तेल की खपत को और कम करने के लिए किया जाए, जैसे सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाए अथवा सार्वजनिक यातायात जैसे बसों, मेट्रो आदि में सुधार किया जाए, जिससे कि आने वाले समय में हम तेल की खपत को और भी कम कर सकें। दूसरी आलोचना यह कि तेल से अर्जित रकम का उपयोग सरकारी खपत को पोषित करने के स्थान पर निवेश के लिए किया जाए तो तेल के ऊंचे दाम अंततः देश के लिए लाभकारी होंगे…

जनता तेल के बढ़ते दामों को लेकर परेशान है। बीते चार वर्षों में विश्व बाजार में कच्चे ईंधन तेल का दाम लगभग 40 से 70 डालर प्रति बैरल रहा था। इस संपूर्ण अवधि में भारत में पेट्रोल का दाम लगभग 70 से 75 रुपए प्रति लीटर रहा था। वर्तमान में विश्व बाजार में कच्चे तेल का दाम 65 डालर प्रति बैरल है। इसलिए आशा की जाती थी कि भारत में पेट्रोल का दाम भी लगभग 70 से 75 रुपए प्रति लीटर ही रहेगा, लेकिन अपने देश में पेट्रोल का दाम 90 से 100 रुपए प्रति लीटर हो गया है जो कि प्रथम दृष्टया अनुचित दिखता है। वर्तमान में तेल के ऊंचे दाम को समझने के लिए कोविड के प्रभाव को समझना होगा। हुआ यह है कि बीते वर्ष जून के माह में कोविड संकट के कारण तमाम देशों ने लॉकडाउन लगा दिए थे जिससे यातायात और उद्योग ठप हो गए थे और विश्व बाजार में कच्चे तेल की मांग काफी गिर गई थी। यहां तक कि कई तेल कंपनियों ने जिस तेल को जहाज़ों पर भर रखा था उसे वे शून्य मूल्य पर भी बेचने को तैयार थे, ताकि जहाज को खाली किया जा सके और जहाज को खड़े रखने का डैमरेज न पड़े।

 उस समय अपने देश में भी आयातित कच्चे माल का दाम कुछ कम हुआ था। बताते चलें कि कुछ तेल का आयात तत्काल बाजार भाव पर किया जाता है, लेकिन अधिकतर तेल का आयात लंबी अवधि के समझौतों के अंतर्गत किया जाता है जिनके अंतर्गत आयत किए गए तेल का मूल्य तात्कालिक बाजार भाव से प्रभावित नहीं होता है। इसलिए यदि बाजार में तेल का भाव शून्य हो गया तो इसका अर्थ यह नहीं है कि शून्य मूल्य पर भारत मनचाही मात्रा का तेल खरीद सके। यदि भारत कुछ तेल शून्य मूल्य पर खरीदता भी है तो भी लंबी अवधि के समझौतों के अंतर्गत पूर्व में निर्धारित मूल्यों पर तेल को खरीदते रहना पड़ेगा। फिर भी बीते वर्ष कोविड संकट के समय भारत द्वारा खरीदे गए तेल के मूल्य में गिरावट आई थी। उस समय भारत सरकार ने तेल पर वसूल किए जाने वाले एक्साइज ड्यूटी को बढ़ा दिया। जैसे यदि कच्चे तेल का दाम 10 रुपए कम हुआ तो सरकार ने उसी 10 रुपए का तेल पर टैक्स को बढ़ा दिया।

 फलस्वरूप जब विश्व बजार में तेल के दाम गिर रहे थे तो भारत में तेल के दाम में गिरावट नहीं आई और तेल का दाम पूर्ववत 70 से 75 रुपए प्रति लीटर का बना रहा। लेकिन बीते तीन माह में विश्व बाजार में तेल के दाम पुनः बढ़ने लगे और आज ये पुराने 65 रुपए प्रति बैरल पर आ गए हैं। लेकिन सरकार ने इस अवधि में तेल पर वसूल किए जाने वाले टैक्स में कटौती नहीं की और टैक्स की ऊंची दर को बरकरार रखा जिस कारण आज अपने देश में पेट्रोल का दाम 90 से 100 रुपया प्रति लीटर हो गया है। कहा जा सकता है कि विश्व बाजार में तेल के दाम में गिरावट का सरकार ने टैक्स बढ़ने के अवसर के रूप में उपयोग किया है। तेल के ऊंचे दाम के कई लाभ हैं जिन पर ध्यान देना चाहिए। फल यह कि तेल के ऊंचे दाम का प्रभाव मुख्यतः ऊपरी वर्ग पर पड़ता है। अपने देश में तेल के मूल्य का ऊपरी और कमजोर वर्गों पर अलग-अलग प्रभाव के आंकड़े मुझे उपलब्ध नहीं हुए हैं, लेकिन अफ्रीका के माली नामक देश के आंकड़ों के अनुसार यदि तेल के मूल्य की वृद्धि से 20 प्रतिशत ऊपरी वर्ग को एक रुपया अधिक अदा करना पड़ता है तो निचले 20 प्रतिशत वर्ग को केवल छह पैसे, यानी ऊपरी वर्ग पर तेल के बढ़े हुए मूल्यों का सोलह गुना प्रभाव अधिक पड़ता है। इसलिए यह कहना उचित नहीं है कि तेल का प्रभाव आम आदमी पर पड़ता है। बल्कि यह कहना उचित होगा कि तेल के ऊंचे मूल्यों का विरोध करने के लिए ऊपरी वर्ग द्वारा निचले वर्ग को ढाल के रूप में उपयोग किया जा रहा है। तेल के ऊंचे मूल्य का दूसरा लाभ यह है कि देश में तेल की खपत कम होगी। एक अध्ययन में पाया गया कि तेल के दाम में यदि 10 प्रतिशत की वृद्धि होती है तो खपत में 0.4 प्रतिशत की ही मामूली गिरावट आती है। यद्यपि खपत में यह गिरावट कम ही है, फिर भी इसे नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता है। लंबे समय में यह गिरावट अधिक होगी क्योंकि लोगों के लिए अपने घरों पर सोलर पैनल लगाना लाभप्रद हो जाएगा। तेल की खपत कम होने से हमारे आयात कम होंगे और हमारी आर्थिक संप्रभुता सुरक्षित रहेगी। ज्ञात हो कि अपने देश में खपत किए गए तेल में 85 प्रतिशत तेल का आयात होता है।

 इसलिए हम यदि आयातित तेल की खपत कम करते हैं तो हमें आयात भी कम करने होंगे। हम दूसरे देशों पर परावलंबित नहीं होंगे। तेल के ऊंचे मूल्यों का तीसरा लाभ पर्यावरण का है। खपत कम होने से तेल से उत्सर्जित कार्बन की मात्रा कम होगी जिससे धरती के तापमान में वृद्धि कम होगी और अपने देश समेत संपूर्ण विश्व में बाढ़ और सूखे जैसी आपदाएं कम होंगी। चौथा और संभवतः प्रमुख लाभ यह है कि कोविड संकट के दौरान सरकार का वित्तीय घाटा बहुत बढ़ गया है, इसलिए सरकार को जनता पर टैक्स लगा कर इस घाटे की पूर्ति तो करनी ही पड़ेगी। प्रश्न सिर्फ  यह बचता है कि सरकार तेल पर टैक्स लगाकर अपने घाटे की भरपाई करेगी या फिर कपड़े और कागज पर लगाकर। मैं समझता हूं कि कपड़े और कागज जैसी आवश्यक एवं उपयोगी वस्तुओं के स्थान पर तेल पर अधिक टैक्स वसूल करना ही उचित होगा। विशेषकर इसलिए कि तेल पर टैक्स वसूल करने का बोझ आम आदमी पर कम और समृद्ध वर्ग पर ज्यादा पड़ेगा। तेल के ऊंचे मूल्य सही हों तो भी सरकार की आलोचना इस बिंदु पर की जानी चाहिए कि तेल के ऊंचे दामों से अर्जित रकम का उपयोग तेल की खपत को और कम करने के लिए किया जाए, जैसे सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया जाए अथवा सार्वजनिक यातायात जैसे बसों, मेट्रो आदि में सुधार किया जाए, जिससे कि आने वाले समय में हम तेल की खपत को और भी कम कर सकें। दूसरी आलोचना यह कि तेल से अर्जित रकम का उपयोग सरकारी खपत को पोषित करने के स्थान पर निवेश के लिए किया जाए तो तेल के ऊंचे दाम अंततः देश के लिए लाभकारी होंगे। यदि ऊंचे दाम से अर्जित रकम का उपयोग नए सरकारी दफ्तरों को बनाने के लिए किया गया तो ये बढे़ हुए दाम हानिप्रद हो जाएंगे।

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