पर्यटन से संवरेगा प्रदेश का भविष्य

पर्यटकों को लुभाने के लिए पहाड़, नदियां, जंगल, डैम, चिडि़याघर, मंदिर, नामी शहर, खजियार झील, बीड़-बिलिंग जैसे पैराग्लाइडिंग स्थल भी यहां हैं। इसके बावजूद हम लोग न तो युवाओं को रोजगार से जोड़ पाए और न ही सरकारों का खाली खजाना भरने में कामयाब बन पाए हैं। हैरानी की बात यह है कि विदेशी लोग प्राकृतिक सौंदर्य का नजारा लेने के लिए हिमाचल प्रदेश की ओर रुख कर रहे हैं, वहीं हिमाचली लोग विदेश घूमने के नाम पर अपनी जेबें खाली करते जा रहे हैं। पहाड़ी राज्य में धार्मिक पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, मगर कनेक्टिविटी की समस्या की वजह से कोई भी सरकार सफल नहीं हो पा रही है…

प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण हिमाचल प्रदेश भारत का एक अति सुंदर प्रदेश है। हिमाचल प्रदेश का शाब्दिक अर्थ हिम और आंचल है। कहने का भावार्थ बर्फीले पहाड़ों का प्रांत है। देवभूमि का नामकरण संस्कृत विद्वान दिवाकर दत्त शर्मा ने किया था। हिमाचल प्रदेश की सुंदरता की जितनी प्रशंसा की जाए, उतनी ही कम है। यही वजह है कि देश-विदेश के पर्यटक यहां की अपार सुंदरता का नजारा देखने के लिए वर्ष भर चले रहते हैं। हिमाचल प्रदेश की पावन धरती पर धार्मिक भावना की ज्योति सदैव प्रज्वलित रहती है। इसी वजह से यह देवभूमि नाम से विख्यात है। हिमाचल प्रदेश आज विकास पथ की ओर लगातार अग्रसर हो रहा है। हिमाचल प्रदेश का गठन 15 अप्रैल 1948 को किया गया था। प्रत्येक वर्ष 15 अप्रैल को हिमाचल प्रदेश में हिमाचल दिवस बड़े ही हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। हिमाचल दिवस की बेला पर प्रदेश के सरकारी संस्थानों, स्कूलों व कालेजों में सांस्कृतिक और देश भक्ति से ओत प्रोत कार्यक्रमों का आयोजन करके इस जश्न को मनाया जाता है। हिमाचल प्रदेश को जब पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिला था तो वह केंद्र शासित राज्य के नाम से जाना जाता था। भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी मिलने के बाद हिमाचल प्रदेश 15 अप्रैल 1948 को अस्तित्व में आया था। हिमाचल प्रदेश के प्राकृतिक सौंदर्य से युक्त होने की वजह से ही इसे पूर्ण राज्य बनाए जाने की मांग जोर पकड़ने लगी थी।

प्रदेश की जनता की मांग आखिर 25 जनवरी 1971 को केंद्र सरकार ने इसे पूर्ण राज्य का दर्जा देकर पूरी की। हिमाचल प्रदेश को जब पूर्ण राज्य घोषित किया गया, उस समय वह भारत का 18वां राज्य बना था। पहाड़ी राज्य को विशेष राज्य का दर्जा मिलने की वजह से वह विकास के आयाम स्थापित किए जा रहा है। केंद्र सरकारें सदैव इस पहाड़ी राज्य पर अपनी कृपादृष्टि बनाए रखती हैं। हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य घोषित किए जाने के बाद स्वर्गीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सर्वप्रथम शिमला रिज मैदान में भारी जनसभा को संबोधित किया था। हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य बनाने से पहले 1948 में देश की तकरीबन 30 रियासतों को मिलाकर इसका गठन किया गया था। यहां मनाए जाने वाले पर्वों में शिमला समर फेस्टीवल, लोहड़ी, होली, बसंत पंचमी, शिवरात्रि, नलवाड़ी मेला और बैसाखी आदि पर्व प्रमुख हैं। कांगड़ी, पहाड़ी, पंजाबी, मंडियाली आदि 32 बोलियां यहां बोली जाती हैं, मगर आपसी एकता की मिसाल यहां की जनता है।

 हिमाचल प्रदेश पांच नदियों यमुना, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज के संगम से मिलकर बना है। विधानसभा में कुल 68 सीटे हैं, बारह जिले हैं, लोकसभा की चार और राज्यसभा की तीन सीटें हैं। हिमाचल प्रदेश के उच्च न्यायालय की स्थापना 1971 को हुई थी। प्रदेश में सड़कों की लंबाई लगभग 36246 किलोमीटर बताई जाती है। यही नहीं दो रेलमार्ग पठानकोट-जोगिंद्रनगर और शिमला-कालका हैं। हिमाचल प्रदेश का अपना अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा भी हो, जयराम ठाकुर सरकार इसके लिए प्रयासरत है। वैसे गगल, भुंतर और जुब्बड़हट्टी में पहले से हवाई अड्डे हैं। हिमाचल प्रदेश की 90 फीसदी आबादी गांवों और छोटे कस्बों में रहती है। प्रकृति की गोद में रहने के लिए हिमाचल प्रदेश से बेहतरीन कोई और दूसरा स्थान नहीं हो सकता है। हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था बिजली, पर्यटन, खेतीबाड़ी और बागबानी पर निर्भर करती है। प्रदेश में विद्युत विभाग परियोजनाओं के सहारे बिजली तैयार करके अन्य राज्यों को बेचकर राजस्व कमाता है। यह बात अलग है कि जिस राज्य में बिजली उत्पादन होता है, वहां की जनता को कोई खास सुविधा नहीं है। प्रदेश की अधिकांश जनता खेतीबाड़ी करके अपना जीवन-यापन करती है। गेहूं, मक्की, धान, सब्जियां, फल उगाना लोगों की आय के प्रमुख स्रोत हैं। पहाड़ के लोग जितने मेहनती हैं, उतने ही ईमानदार छवि के मालिक होते हैं। बागबान आम, संतरा, लीची, सेब की खेतीबाड़ी करके भी इसे अपनी आजीविका का साधन बनाए हुए हैं। हिमाचल प्रदेश पर्यटन की दृष्टि से बेहतरीन राज्य के रूप में उभर कर लाखों युवाओं सहित सरकार की आर्थिकी का स्रोत भी बन सकता है, मगर  प्रदेश में कनेक्टिविटी की समस्या की वजह से इसमें सफल नहीं हो पा रहे हैं।

सड़कों की दयनीय हालत और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे की दरकार होने की वजह से हम पर्यटन के क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। पर्यटकों को लुभाने के लिए पहाड़, नदियां, जंगल, डैम, चिडि़याघर, मंदिर, नामी शहर, खजियार झील, बीड़-बिलिंग जैसे पैराग्लाइडिंग स्थल भी यहां हैं। इसके बावजूद हम लोग न तो युवाओं को रोजगार से जोड़ पाए और न ही सरकारों का खाली खजाना भरने में कामयाब बन पाए हैं। हैरानी की बात यह है कि विदेशी लोग प्राकृतिक सौंदर्य का नजारा लेने के लिए हिमाचल प्रदेश की ओर रुख कर रहे हैं, वहीं हिमाचली लोग विदेश घूमने के नाम पर अपनी जेबें खाली करते जा रहे हैं। पहाड़ी राज्य में धार्मिक पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं, मगर कनेक्टिविटी की समस्या की वजह से कोई भी सरकार सफल नहीं हो पा रही है। देवभूमि को पांच दानव निगल रहे हैं। इसका ऐलान स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर चुके हैं। कोरोना वायरस भी किसी दानव से कम नहीं आंका जा सकता, जिसकी वजह से आम जनमानस का जीवन अस्त-व्यस्त होकर रह गया है। जय राम ठाकुर सरकार वैसे प्रदेश को शिखर की ओर ले जाने के लिए प्रयासरत चल रही है। मंडी में हिमाचल प्रदेश को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा मिलते ही विकास को गति मिलेगी।