सेना के मार्गदर्शक थे जनरल बिपिन रावत

जनरल रावत सीमाओं पर पहुंचे तो जवानों का साहस बढ़ाया, गांव पहुंचे तो लोगों के बेटे हो गए, दिल्ली से पाकिस्तान के सरपरस्तों को सीधा सा जवाब दिया, सीधी भाषा में बताया कि हिंदुस्तान पर उठी हर आंख निकाल ली जाएगी। स्वॉर्ड ऑफ ऑनर से लेकर परम विशिष्ट सेवा मेडल तक, 11 गोरखा राइफल्स से देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ तक, गढ़वाल के गांव से लेकर कश्मीर के ऊंचे पहाड़ों तक, जनरल रावत ने जितना विशाल जीवन जिया, वो हर सैन्यकर्मी के लिए एक प्रेरणा बनकर शाश्वत रहेगा। कश्मीर के उरी में कर्नल बिपिन रावत, सोपोर में रावत साहब और दिल्ली में जनरल रावत बने बिपिन रावत अब एक अनंत यात्रा पर चले गए हैं। लेकिन न रैंक गई, न जनरल रावत का फौजी होना। कश्मीर के एक समारोह में उन्होंने कहा था, ‘फौजी और उनकी रैंक कभी रिटायर नहीं होते।’….

दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन दुखी मन से स्वीकारना होगा कि देश के प्रथम चीफ ऑफ डिंफेस स्टाफ और अन्य सेना के कई स्टाफ अधिकारी आज हम सभी के बीच नहीं हैं। सेनाध्यक्ष रहे, फिर सेना के सर्वोच्च पद पर कार्यरत जनरल बिपिन सिंह रावत जी सैनिक दक्षता के साथ-साथ सेना के लिए एक मार्गदर्शक की भांति थे। हर सुख-दुख के क्षणों में सैनिकों के साथ खड़े रहते थे, भावनात्मक रूप से मार्गदर्शन करते रहते थे। कई ऐसे किस्से थे जिनसे उनके जिंदादिल होने की मिसालें दी जाती थी। सीडीएस जनरल बिपिन रावत जी रक्षा मामलों पर राजनीतिक बिरादरी के लिए एक मार्गदर्शक शक्ति थे। वह अपने काम के प्रति जुनूनी थे और स्वभाव से एक साधारण तथा रणनीतिक व सेना मामलों में असाधारण समझ के धनी व्यक्ति थे।

 उनका देश व सेना के लिए योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता। उनके कार्यों से भारत हमेशा गौरवान्वित रहेगा। चार दशक से भी लंबे सैन्य जीवन में जनरल रावत को सेना में बहादुरी और योगदान के लिए जाना जाता था। अदम्य साहस व योगदान के लिए परम विशिष्ट सेवा मेडल, उत्तम युद्ध सेवा मेडल, अति विशिष्ट सेवा मेडल, युद्ध सेवा मेडल, सेना मेडल और विशिष्ट सेवा मेडल के अलावा और कई प्रशस्तियों से सम्मानित किया जा चुका था। चार दशक के लंबे सैन्य जीवन में जनरल रावत ने ब्रिगेड कमांडर, जनरल ऑफिसर कमांडिंग चीफ, दक्षिणी कमांड, मिलिट्री ऑपरेशंस डायरेक्टोरेट में जनरल स्टाफ ऑफिसर ग्रेड जैसे महत्वपूर्ण पदों पर काम किया। उत्तर-पूर्व में चरमपंथ में कमी के लिए उनके योगदान की सराहना आज भी की जाती है। रिपोर्टों के मुताबिक साल 2015 में म्यांमार में घुसकर एनएससीएन के चरमपंथियों के खिलाफ भारतीय सेना की कार्रवाई के लिए भी उन्हें सराहा गया।

 2018 के बालाकोट हमले में भी उनकी भूमिका बताई गई। उन्होंने भारत के पूर्व में चीन के साथ लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल या एलएसी पर तैनात एक इन्फैंट्री बटालियन के अलावा कश्मीर घाटी में एक राष्ट्रीय राइफल्स सेक्टर की कमान संभाली। इसके अलावा रिपब्लिक ऑफ कांगो में उन्होंने विभिन्न देशों के सैनिकों की एक ब्रिगेड की भी कमान संभाली। जनरल रावत भारत के उत्तर-पूर्व में कोर कमांडर भी रहे थे। उनके लंबे सैन्य जीवन से प्रतीत हो जाता है कि जनरल रावत रणनीतिक व सैन्य कार्रवाइयों के विशेषज्ञ रहे तथा अदम्य नेतृत्व कौशल से उन्होंने भारत की सेना को एक आदर्श स्थान पर पहुंचा दिया। उनका देश की सेना का आधुनिकीकरण करने में विशेष योगदान सदैव स्मरणीय रहेगा। गढ़वाल के एक सामान्य गांव से निकलकर रायसीना के सबसे ऊंचे सैन्य ओहदे तक पहुंचे जनरल रावत उस विभूति पुरुष की तरह जाने जाएंगे, जिन्होंने भारत की सेनाओं को सशक्त करने, समन्वित करने और देश की रक्षा के कर्त्तव्यों को पूरी निष्ठा से निभाने को अपना जीवन दे दिया। नेशनल डिफेंस अकादमी से अपने सैन्य सफर की शुरुआत करने वाले रावत कभी रुके नहीं, दोपहर की उस अंतिम उड़ान तक, जिसके बाद उनके जाने की दुखद खबर सामने आई। वो चलते रहे एक अभूतपूर्व यात्रा पर, गोरखा राइफल्स के उस जवान के रूप में ही, फिर चाहे ओहदे कितने बड़े हुए हों। जनरल रावत सीमाओं पर पहुंचे तो जवानों का साहस बढ़ाया, गांव पहुंचे तो लोगों के बेटे हो गए, दिल्ली से पाकिस्तान के सरपरस्तों को सीधा सा जवाब दिया, सीधी भाषा में बताया कि हिंदुस्तान पर उठी हर आंख निकाल ली जाएगी। स्वॉर्ड ऑफ ऑनर से लेकर परम विशिष्ट सेवा मेडल तक, 11 गोरखा राइफल्स से देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ तक, गढ़वाल के गांव से लेकर कश्मीर के ऊंचे पहाड़ों तक, जनरल रावत ने जितना विशाल जीवन जिया वो हर सैन्यकर्मी के लिए एक प्रेरणा बनकर शाश्वत रहेगा।

 कश्मीर के उरी में कर्नल बिपिन रावत, सोपोर में रावत साहब और दिल्ली में जनरल रावत बने बिपिन रावत अब एक अनंत यात्रा पर चले गए हैं। लेकिन न रैंक गई, ना जनरल रावत का फौजी होना। कश्मीर के एक समारोह में उन्होंने कहा था, ‘फौजी और उनकी रैंक कभी रिटायर नहीं होते।’ आज उनकी कही वे बातें जीवंत हो गईं, ऐसा लगता है। जनरल रावत हमेशा याद किए जाएंगे, उस शख्स की तरह जिसने पुलवामा के हमले के बाद पाकिस्तान को विध्वंस की भाषा में जवाब दिया, चीन को उसकी हरकतों में नाकाम किया, भारत की तीनों सेनाओं के बीच समन्वय बैठाने के सैकड़ों सार्थक कदम उठाए। जनरल रावत का निधन देश के लिए एक अपूर्णीय क्षति है, एक ऐसी कमी जो शायद कभी पूरी न हो सके। लेकिन वो तो फौजी थे, फौजी मुल्क की हिफाजत का कर्त्तव्य हमेशा निभाता है, दुश्मन चाहे कोई भी क्यों न हो। यह दुखद है कि जनरल रावत की मृत्यु पर चीन ने अभद्र टिप्पणी की है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि चीन के वास्तविक इरादे हैं क्या? शायद चीन जनरल रावत के आक्रामक अंदाज से चिढ़ गया था। जनरल रावत ही थे जिन्होंने चीन जैसी साम्राज्यवादी ताकत को भी नकेल डाले रखी। रावत चीन तथा पाकिस्तान को एक साथ धूल चटाने के लिए हमेशा प्रतिज्ञाबद्ध रहे। तभी ये दोनों देश उनसे चिढ़ते थे।

प्रो. मनोज डोगरा

लेखक हमीरपुर से हैं